देश में 40% लड़कियां बाल तस्करी का हो सकती हैं शिकार

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देश में 40% लड़कियां बाल तस्करी का हो सकती हैं शिकार

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के मुताबिक भारत में 18 साल से कम उम्र की 40 फीसदी लड़कियां और 35 फीसदी लड़के स्कूलों से बाहर हैं, जो बाल तस्करी का शिकार हो सकते हैं। विशेषज्ञों ने 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की जरूरत पर जो


देश में 40% लड़कियां बाल तस्करी का हो सकती हैं शिकारराष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के मुताबिक भारत में 18 साल से कम उम्र की 40 फीसदी लड़कियां और 35 फीसदी लड़के स्कूलों से बाहर हैं, जो बाल तस्करी का शिकार हो सकते हैं। विशेषज्ञों ने 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया गया, ताकि हाशिए और कमजोर तबके के बच्चों को शिक्षा प्रणाली से जोड़कर बाल तस्करी से निपटा जा सके। दिल्ली में बुधवार को एक राष्ट्रीय सम्मेलन में बाल तस्करी से निपटने में शिक्षा की भूमिका के महत्व को रेखांकित किया गया और बाल तस्करी के खिलाफ लड़ाई में उपायों की चर्चा की गई।

इस सम्मेलन का आयोजन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ), दिल्ली लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (डीएलएसए) और दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (डीसीपीसीआर) ने मिलकर किया। इस सम्मेलन में 12वीं कक्षा तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की जरूरत पर जोर दिया गया, ताकि हाशिए और कमजोर तबके के बच्चों को शिक्षा प्रणाली से जोड़कर बाल तस्करी से निपटा जा सके।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के सदस्य प्रियांक कानूनगो ने कहा, "भारत में 18 साल से कम उम्र की 40 फीसदी लड़कियां और 35 फीसदी लड़के स्कूलों से बाहर हैं। जो बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं वे बाल तस्करी के शिकार हो सकते हैं। वे गरीब परिवारों से आते हैं और उनके माता-पिता स्कूलों की फीस जमा करने में असमर्थ होते हैं। ऐसे बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, उनमें आत्म-सम्मान पैदा करेगी और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करेगी। शिक्षा से सशक्तीकरण होगा और उस सशक्तीकरण से बाल दुर्व्यापार से निपटने में मदद मिल सकती है।"

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहैवियर एंड एलाइड साइंसेस के निदेशक डा. निमेश देसाई ने कहा कि बाल तस्करी के शिकार बच्चों का पुनर्वास एक छोटी अवधि के लिए होना चाहिए और फिर बच्चों को उनके परिवार से मिलाना चाहिए। बाल तस्करी से बच्चों को निकालने के बाद उनका मानसिक स्वास्थ्य और उनकी मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक समस्या एक बड़ी चिंता है। इस स्थिति में दुर्व्यापार से छूटे बच्चों को आराम के साथ-साथ सामाजिक सहायता की भी जरूरत होती है।

नेशनल क्राइम रिकॉर्डस ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार सिर्फ साल 2016 में 9,034 बच्चों की तस्करी की गई। यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 131 प्रतिशत तक बढ़ गया है। इसलिए इस संख्या को देखते हुए बाल तस्करी जैसे संगठित अपराध से निपटने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की तत्काल आवश्यकता है।