एक ऐसा गांव जहां 40 की उम्र में हावी हो जाता है 'बुढ़ापा'

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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एक ऐसा गांव जहां 40 की उम्र में हावी हो जाता है 'बुढ़ापा'

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के एक गांव में रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून .. रहीम की ये पंक्ति पानी की महत्ता को दर्षा रही है कि यदि पानी नहीं रहेगा तो कुछ भी नहीं रहेगा, लेकिन जब पानी अमृत के बजाए जहर बन जाए तो पूरा जीवन अपंगता की


एक ऐसा गांव जहां 40 की उम्र में हावी हो जाता है 'बुढ़ापा'छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के एक गांव में रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून .. रहीम की ये पंक्ति पानी की महत्ता को दर्षा रही है कि यदि पानी नहीं रहेगा तो कुछ भी नहीं रहेगा, लेकिन जब पानी अमृत के बजाए जहर बन जाए तो पूरा जीवन अपंगता की ओर बढ़ चलता है। यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है।

बीजापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 60 किमी दूर भोपालपट्नम में स्थित छत्तीसगढ़ का एक ऐसा गांव जहां पर युवा 25 वर्ष की आयु में ही लाठी लेकर चलने को मजबूर हो जाते हैं और 40 साल के पड़ाव में प्रकृति के नियम के विपरित बुढ़े होने लग जाते हैं।

यहां 40 फीसदी लोग उम्र से पहले ही या तो लाठी के सहारे चलने लगते हैं या तो बुढ़े हो जाते हैं। इसकी वजह कोई षारीरिक दोश नहीं बल्कि यहां के भूगर्भ में ठहरा पानी है, जो इनके लिए अमृत नहीं बल्कि जहर साबित हो रहा है। यहां के हैंडपंपों और कुओं से निकलने वाले पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण पूरा गांव का गांव समय से पहले ही अपंगता के साथ-साथ लगातार मौत की ओर बढ़ रहा हैं।

शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण मजबूरन आज भी यहां के लोग फलोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं, बावजूद षासन-प्रषासन मौत की ओर बढ़ रहे इस गांव और ग्रामीणों की ना तो सुध ले रहा है ना ही इस खतरनाक हालात से बचने के लिए कोई कार्ययोजना तैयार करता नजर आ रहा है, जबकी इस गांव में आठ वर्श के उम्र से लेकर 40 वर्श तक का हर तीसरे व्यक्ति में कुबड़पन, दांतों में सडऩ, पीलापन और बुढ़ापा नजर आता है। प्रषासन ने यहां तक सड़क तो बना दी पर विडंबना तो देखिए कि सड़क बनाने वाले प्रषासन की नजर इन पीडि़तों पर अब तक नहीं पड़ पाई।

यहां के सेवानिवृत्त शिक्षक तामड़ी नागैया, जनप्रतिनिधि नीलम गणपत और फलोराइय युक्त पानी से पीडि़त तामड़ी गोपाल का कहना है कि गांव में पांच नलकूप और चार कुएं हैं, इनमें से सभी नलकूपों और कुओं में फलोराइड युक्त पानी निकलता है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने सभी नलकूपों को सील कर दिया था लेकिन गांव के लोग अब भी दो नलकूपों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि हर व्यक्ति षहर से खरीदकर पानी नहीं ला सकता है, इसलिए यही पानी पीने में इस्तेमाल होता है। यही नहीं बल्कि गर्मी के दिनों में कुछ लोग तीन किमी दूर इंद्रावती नदी से पानी लाकर उबालकर पीते हैं।

इनमें से तामड़ी नागैया का कहना है कि यह समस्या पिछले तीस सालों से ज्यादा बढ़ी है, क्योंकि तीस साल पहले तक यहां के लोग कुएं का पानी पीने के लिए उपयोग किया करते थे, परंतु जब से नलकूपों का खनन किया गया तब से यह समस्या विराट रूप लेने लगा और अब स्थिति ऐसी है कि गांव की 40 फ ीसदी आबादी 25 वर्श की उम्र में लाठी के सहारे चलने , कुबड़पन को ढोने और 40 वर्श की अवस्था में ही बुढ़े होकर जीवन जीने को मजबूर है। यहां पर लगभग 60 फीसदी लोगों के दांत पीले होकर सडऩे लगे हैं। बताया जा रहा है कि यह पूरा गांव भू गर्भ में स्थित चट्टान पर बसा हुआ है और यही वजह है कि पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक है और इस भू गर्भ से निकलने वाला पानी यहां के ग्रामीणों के लिए जहर बना हुआ है।

जनकार बताते हैं कि वन पार्ट पर मिलियन यानि पीपीएम तक फलोराइड की मौजूदगी इस्तेमाल करने लायक है, जबकि पीपीएम को मार्जिनल सेप माना गया है। डेढ़ पीएम से अधिक फलोराइड की मौजूदगी को खतरनाक माना गया है और गेर्रागुड़ा में डेढ़ से दो पीपीएम तक इसकी मौजूदगी का पता चला है और लोगों पर इसका खतरनाक असर साफ नजर आ रहा है। इस समस्या से निजात पाने के लिए एक साल पहले पीएचई विभाग ने इस गांव में एक ओवरहेड टैंक का निर्माण कर गांव के हर मकान तक पाइप लाइन विस्तार के साथ नल कनेक्षन भी दे रखा है, परंतु प्रषासन की लापरवाही के चलते आज पर्यंत तक पाइप लाइन के सहारे घरों में मौजूद नल कनेक्षनों में शुद्ध पेयजल की सप्लाई करने में प्रषासन और विभाग असफल रहा है। परिणामस्वरूप गांव के संपन्न लोग किसी तरह भोपालपटनम स्थित वाटर प्लांट से शुद्ध पेयजल खरीदकर पीने में उपयोग तो कर लेते हैं, परंतु गरीब तबके के लोग अब भी फलोराइड युक्त पानी पीकर जवानी में ही बुढ़ापे को समय से पहले पाने को मजबूर हैं।

लगाया गया था कैम्प,किया ईलाज-सीएमएचओ
इस मामले में सीएमएचओ डॉ बीआर पुजारी का कहना है कि ग्रामीणों के षिकायत के बाद गांव में कैम्प लगाकर लोगों का इलाज किया गया था और कुछ लोगों को बीजापुर भी बुलाया गया था, चूंकि इस गांव के पानी में फलोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण हड्डियों में टेड़ापन, कुबड़पन और दांतों में पीलेपन के साथ सडऩ की समस्या आती है। जिसका इलाज सिर्फ शुद्ध पेयजल से ही हो पाएगा। षिकायत के बाद गांव के अधिकांष हैंडपंपों को सील करवा दिया गया था।

पेयजल आपूर्ति की जिम्मेदारी पंचायत की-ईई पीएचई
वही फलोराइड समस्या के निदान के लिए पीएचई द्वारा निर्मित वाटर ओवरहेड टैंक से पेयजल आपूर्ति ना होने की बात पर ईई जगदीष कुमार का कहना है कि विभाग द्वारा टैंक के निर्माण पश्चात् पंचायत को हैण्डओवर किया जा चुका है। पेयजल आपूर्ति शुद्ध करने की जिम्मेदारी अब पंचायत की है फिर भी अगर पानी की सप्लाई नहीं की जा रही है तो विभाग इसे अवष्य संज्ञान में लेगा।