दिव्यांग बुज़ुर्ग ने उठाया 200 गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च

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दिव्यांग बुज़ुर्ग ने उठाया 200 गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च

मुंबई। फेसबुक पेज Humans of Bombay ने एक शानदार कहानी शेयर की है। ये कहानी एक ऐसे बुजुर्ग की है जिसका दायां पैर खराब है और बायीं आंख से नहीं दिखता फिर भी 200 गरीब बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया। बुजुर्ग कहते हैं, करीब15 साल पहले मेरी पत्नी एक छो


दिव्यांग बुज़ुर्ग ने उठाया 200 गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च
मुंबई। फेसबुक पेज Humans of Bombay ने एक शानदार कहानी शेयर की है। ये कहानी एक ऐसे बुजुर्ग की है जिसका दायां पैर खराब है और बायीं आंख से नहीं दिखता फिर भी 200 गरीब बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया।

बुजुर्ग कहते हैं, करीब15 साल पहले मेरी पत्नी एक छोटी सी लड़की को लेकर घर आई। उसने बताया कि जल्द ही उसका स्कूल छूटने वाला है क्यूंकि उसके माता पिता अब उसके स्कूल का खर्चा नहीं उठा सकते। पढाई के प्रति उस नन्ही सी बच्ची का झुकाव देख कर मैं तुरंत उसकी पढाई का खर्चा उठाने के लिए तैयार हो गया।

इसके बाद मैं और मेरी पत्नी जब भी सड़क पर किसी गरीब बच्चे को देखते तो उसे ज़रूर पूछते कि वो स्कूल जाते है या नहीं। जो भी बच्चा ये कहता कि गरीबी की वजह से वह स्कूल नहीं जा पाता, हम उसकी पढाई का खर्चा उठाते। अब तक हमने कुल 200 बच्चो की पढाई का खर्चा उठाया है, उनके कॉलेज और उच्च शिक्षा समेत।

2001 में जब मैंने यह काम शुरू किया था तब सब कुछ ठीक था। मेरी तनख्वाह भी अच्छी थी और मुझे इन बच्चो की पढाई का खर्च उठाने में भी कोई दिक्कत नहीं आती थी। पर फिर एक दिन मेरा एक्सीडेंट हो गया और सब कुछ बदल गया। मैं करीब 4 साल तक बिस्तर पर पडा रहा। मेरे दायें पैर में छेद हो गया और बायीं आँख से दिखना बंद हो गया। मेरे इलाज में हमारे सारे पैसे लग गए और रोज़मर्रा के खर्चे भी मुश्किल लगने लगे पर हमने इस बात का हमेशा ध्यान रखा कि जिन बच्चो की पढाई का जिम्मा हमने उठाया है वो किसी भी तरह प्रभावित न हो।

आज भी मैं और मेरी पत्नी 40 बच्चों की पढाई का खर्चा उठाते है। एक बच्चे की पढाई पूरी हो जाती है तो हम एक और की तलाश में निकल पड़ते है। वक्त कुछ ऐसा है कि अगर मुझे बिरयानी खाने का मन करे तो सौ बार सोचना पड़ता है क्यूंकि पैसो की तंगी है पर खुशियों की नहीं…. हमारे पास खुशियों की कोई कमी नहीं है। हमारे कई बच्चे अब बड़ी बड़ी कंपनियों में काम करते है और कहते है कि अब वो मेरी ज़िम्मेदारी उठाना चाहते है पर मैं उनसे एक ही बात कहता हूँ – इन पैसो को तुम और ज़रूरतमंद बच्चो को पढ़ाने में लगाओ तो मैं समझूंगा कि तुमने मुझे 100 गुना ज्यादा वापस लौटा दिया।

मैंने और मेरी पत्नी ने पंद्रह साल पहले जो बीज बोया था आज उस पढ़ की कई शाखाएं है। जिन बच्चो की पढाई का खर्चा कभी हमने उठाया था, आज वो दुसरे ऐसे बच्चो की पढाई का खर्चा उठा रहे है जिनके माँ बाप उन्हें नहीं पढ़ा सकते। बस! यही तो हम हमेशा से चाहते थे !