जातीय समीकरण मे उलझा विकास पुरुष का पहिया पूछते है "ठीक है"!

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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जातीय समीकरण मे उलझा विकास पुरुष का पहिया पूछते है "ठीक है"!

राकेश पाण्डेय केंद्रीय संचार और रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा रात नौ बजे जमानिया रेलवे स्टेशन के पास एक छोटी सी जनसभा संबोधित कर रहे हैं।कहते है सुबह से यह 17वीं मीटिंग है। एक-एक कर अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं। हर उपलब्धि बताने के बाद जनता से पूछते ह


जातीय समीकरण मे उलझा विकास पुरुष का पहिया पूछते है "ठीक है"!
राकेश पाण्डेय 
केंद्रीय संचार और रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा रात नौ बजे जमानिया रेलवे स्टेशन के पास एक छोटी सी जनसभा संबोधित कर रहे हैं।कहते है सुबह से यह 17वीं मीटिंग है। एक-एक कर अपनी उपलब्धियां गिना रहे हैं। हर उपलब्धि बताने के बाद जनता से पूछते हैं, ठीक हो? एक स्वर में सभी उत्तर देते हैं, ठीक हैं। यहा की जातीय गणित मे सवर्ण- 3.80 लाख,एससी- 3.00 लाख मुस्लिम- 2.00 लाख है।

जातीय काकश मे फंसा मोदी का सिपासालार
कभी हिंदी में तो कभी भोजपुरी में। वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने हाईवे बनवाए, नई ट्रेनें चलवाईं, गाजीपुर के साथ सभी रेलवे स्टेशनों को साफ सुथरा और आधुनिक सुविधाओं से युक्त बना दिया, गंगा पर नया रेल-रोड पुल बनवाया, हवाई अड्डा बन रहा है, 100 आधुनिक प्राथमिक विद्यालय खुलवाए, स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स बनवाया, मेडिकल कॉलेज बनवाया, बालिकाओं के लिए हाईस्कूल और डिग्री कॉलेज खोला और इनमें सैनिटरी पैड की वेंडिंग मशीन और इंसीनरेटर लगवाई।

स्थानीय निवासी है मनोज सिन्हा
सिन्हा यहीं पैदा हुए, यहीं पले-बढ़े। हर समस्या से वाकिफ हैं। उपलब्धि बताने से पहले सालों से चली आ रही समस्या का जिक्र करते हैं और फिर हल से मिलने वाली राहत का। जैसे -गाजीपुर से बड़े शहरों के लिए सीधे ट्रेन नहीं थी। कहते हैं, अब हर बड़े शहर के स्टेशन पर उद्घोषणा होती है कि गाजीपुर जाने वाली गाड़ी इस प्लेटफार्म से जाएगी।

अच्छा भाषण और लोगो से है पहचान
पौन घंटे लंबा भाषण खत्म होने के बाद भी उन्हें कार तक पहुंचने में दस मिनट लग जाते हैं। हर व्यक्ति को नाम से जानते हैं। एक-एक की समस्या सुनते हैं और हल करते हैं। मीटिंग खत्म होने के बाद वे एक घंटे तक जमानिया के कार्यालय में कार्यकर्ताओं से बात कर हर एक को बूथ-स्तर के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपते हैं। कहते हैं, सफल राजनेता बनने के लिए दो बातें जरूरी हैं - अच्छा भाषण और हर कार्यकर्ता को नाम से जानना।

भाजपा के सामने गटबंधन के 5 लाख मतदाता
सपा-बसपा गठबंधन हो जाने की वजह से अफजाल के हौसले बुलंद हैं। उनके एक समर्थक फिरोज खान कहते हैं -भाई के वोटों की गिनती नौ लाख से शुरू होगी। क्षेत्र में मुसलमान, यादव और दलित मतदाताओं की संख्या गाजीपुर के कुल मतदाताओं के 50 प्रतिशत से अधिक है।
पिछले चुनाव में सपा के टिकट पर लड़ी कभी मायावती के करीबी रहे बाबूराम कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा को मनोज सिन्हा के हाथों केवल 32 हजार वोटों से हार मिली थी, जबकि बसपा के टिकट पर लड़े कैलाश नाथ सिंह लगभग ढाई लाख वोट पाए। दोनों के मतों को मिला दिया जाने तो यह आंकड़ा सवा पांच लाख होता है, जबकि मनोज सिन्हा को केवल तीन लाख वोट ही मिले थे।

माफिया का हवाला दे कर नैया कैसे पार होगी सरकार
हालांकि किसान मनोज  राय कहते हैं - यदि अफजाल जीतेंगे तो हो सकता है कि गाजीपुर में चल रहे विकास कार्यों की गति धीमी पड़ जाए। या वे रुक ही जाएं।
बाहुबली अफजाल से है मुकाबला मनोज सिन्हा न तो राजनीतिक विरोधियों की बात करते हैं और न ही किसी विवादित मुद्दे की, सिर्फ मोदी सरकार की उपलब्धियों की चर्चा करते हैं। स्थानीय राजनीति पर चर्चा से बचते हैं। उनका मुकाबला अफजाल अंसारी से है, जो पहले सपा से सांसद रह चुके हैं। दबंग बाहुबली नेता हैं। हत्या, अपहरण जैसे कई मुकदमों में आरोपी हैं। फिलहाल विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के मामले में जमानत पर हैं, जबकि उनका छोटा भाई मुख्तार अंसारी अभी भी जेल में है।

अफजाल के दादा थे सेनानी, अब दबंग है परिवार
अंसारी बंधुओं के दादाजी मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे, लेकिन इन भाइयों ने पूर्वांचल में 'गन कल्चर' को बढ़ावा दिया। विधायक रहा मुख्तार अंसारी विहिप के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नंद किशोर रुंगटा से लेकर कृष्णानंद राय तक कई नामी लोगों की हत्या में नामजद थे। अवधेश राय और बृजेश सिंह के गैंग से लगातार मुठभेड़ होती रहती थी उनकी। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार अजीत प्रताप कुशवाहा पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा की पार्टी से हैं। पेशे से वकील अजीत 2017 में जंगीपुर विधानसभा से जन अधिकार पार्टी से लड़ चुके हैं, लेकिन 5वें स्थान पर रहे थे।

एक दूसरे को हरा चुके हैं सिन्हा-अफजाल 
मनोज सिन्हा और अफजाल में पहला मुकाबला 1999 में हुआ, जो सिन्हा ने जीता। 2004 में अफजाल ने सिन्हा को हराया और सांसद बने। 2009 में सिन्हा बलिया से लड़े, पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर से हार गए। गाजीपुर से लड़े अफजाल भी जीते। 2014 में सिन्हा फिर गाजीपुर से लड़े और केंद्र में मंत्री बने, जबकि अफजाल बलिया से अपनी नई पार्टी कौमी एकता दल से लड़े, लेकिन संसद पहुंचने में विफल रहे।

बडो का पाला बदल देख यादव भी हो गया तैयार
मुलायम परिवार में शुरू हुई जंग की जड़ में अंसारी बंधु ही हैं। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने इन्हें सपा में शामिल कर लिया था। अगले ही दिन अखिलेश यादव के दबाव में मुलायम सिंह ने इन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। तब अफजाल ने मुलायम और अखिलेश के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया था। माना जा रहा है कि गाजीपुर के यादव अपने नेताओं के अपमान को नहीं भुला पाए हैं। हालांकि जंगीपुर के पास के गांव के किसान रमेश यादव कहते हैं कि जब हमारे नेता ही उन्हें माफ कर चुके हैं तो हम अफजाल के प्रति कटुता क्यों रखें।