हिन्दू धर्म को बयानों से फर्क नहीं पड़ता, चैनलों को पड़ता है...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. Desh Videsh

हिन्दू धर्म को बयानों से फर्क नहीं पड़ता, चैनलों को पड़ता है...

रवीश कुमार बिना वेतन के 28 महीने से कोई कैसे जी सकता है। भारत सरकार की संस्था अपने कर्मचारियों के साथ ऐसा बर्ताव करे और किसी को फर्क न पड़े। सिस्टम ने एक कर्मचारी को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। 29 अप्रैल को यह लिखकर आत्महत्या कर ली कि भारत सरकार


हिन्दू धर्म को बयानों से फर्क नहीं पड़ता, चैनलों को पड़ता है...
रवीश कुमार 
बिना वेतन के 28 महीने से कोई कैसे जी सकता है। भारत सरकार की संस्था अपने कर्मचारियों के साथ ऐसा बर्ताव करे और किसी को फर्क न पड़े। सिस्टम ने एक कर्मचारी को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दिया। 29 अप्रैल को यह लिखकर आत्महत्या कर ली कि भारत सरकार ज़िम्मदार है।

आप यकीन नहीं करेंगे, 55 लोगों ने आत्महत्या कर ली है। इतनी बात बताने के लिए असम से चल कर दिल्ली आए हैं। मामला असम का है।
हिन्दुस्तान पेपर कारपोरेशन लिमिटेड के स्थायी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल रहा है। 2015 से उनका प्रोविडेंट फंड भी जमा नहीं हुआ है। उनकी हालत ऐसी कर दी है कि मुझे बड़ी उम्र के कर्मचारी हाथ जोड़ कर खड़े थे। इंसान की ऐसी बेक़द्री हो रही है।
हिन्दू धर्म को बयानों से फर्क नहीं पड़ता, चैनलों को पड़ता है...

दि प्रिंट वेबसाइट पर रेम्या नायर की रिपोर्ट आई है। ओएनजीसी का कैश रिज़र्व 9,511 करोड़ से घट कर 167 करोड़ पर आ गया है। मोदी सरकार अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने के लिए ओ एन जी सी के ख़जाने का इस्तमाल करती है। ओएनजीसी को अपना ख़र्चा चलाने के लिए पूंजी चाहिए। कम से कम 5000 करोड़।

सरकार को विनिवेश का लक्ष्य पूरा करना था। उसने ओएनजीसी पर दबाव डाला कि HPCL ख़रीदे। 36,915 की खरीद के लिए कंपनी ने 20,000 करोड़ का कर्ज़ किया। कोरपोरेशन के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ।

पिछले 16 महीनों में भारत का आटोमोबिल सेक्टर शेयर बाज़ार में करीब 42 अरब डॉलर गंवा चुका है। आटोमोबिल सेक्टर में मंदी आ रही है। बैंकों में कैश नहीं है। उपभोक्ता के पास कार खरीदने के पैसे नहीं है। कार निर्माताओं की कारें बिक नहीं रही हैं। मारुति और महिंदा एंड महिंद्रा के शेयरों के दाम में गिरावट आई है। इनकी कारों की बिक्री घटती जा रही है।

अप्रैल में बेरोज़गारी 8 प्रतिशत से अधिक हो गई है। अमरीका से दबाव के कारण

हिन्दी न्यूज़ चैनल हिन्दू एजेंडा पर लौटना का बहाना खोज रहे हैं। किसी का बयान मिल ही जाता है। उस बयान के सहारे एकाध घंटे का कार्यक्रम निकाल लिया जाता है। ताकि लोगों को लगे कि बहुत ज़रूरी मसले पर बात हो रही है। चुनाव के समय धर्म के एजेंडे पर ये चैनल इसलिए लौटते हैं कि एक दल को लाभ हो। आप इनकी बहस निकाल कर देखें। बहुत से बयान बीजेपी के नेताओं की तरफ से दिए गए। मगर किसी ने बहस नहीं की होगी कि इस भाषा से हिन्दी धर्म की बदनामी होती है। उसकी छवि खराब होती है।

आप आर्थिक गतिविधियों पर नज़र रखिए। कुछ तो है कि पर्दादारी है।
चैनलों की धार्मिक होती बहस का एक ही मतलब है। इशारा आया होगा कि ज़ोर लगाओ। हिन्दू हिन्दू करो। हिन्दू को ख़तरे में बताओ। रोज़गार और शिक्षा के ख़तरे को धर्म के ख़तरे से बदल दो।