चांद मिल जाए तो फिर चांद कहां रहता है !

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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चांद मिल जाए तो फिर चांद कहां रहता है !

ध्रुव गुप्त चंद्रयान-दो की चांद की सतह के बिल्कुल पास पहुंचकर आख़िरी पलों में उसे छू न पाने की असफलता कोई बड़ा मसला नहीं है। इश्क़ की तरह विज्ञान भी ऐसी सफल-असफल कोशिशों से ही मंज़िल तक पहुंचता है। हमारे वैज्ञानिक सक्षम हैं और भविष्य में वे चांद ही नहीं


चांद मिल जाए तो फिर चांद कहां रहता है !
ध्रुव गुप्त 
चंद्रयान-दो की चांद की सतह के बिल्कुल पास पहुंचकर आख़िरी पलों में उसे छू न पाने की असफलता कोई बड़ा मसला नहीं है। इश्क़ की तरह विज्ञान भी ऐसी सफल-असफल कोशिशों से ही मंज़िल तक पहुंचता है। हमारे वैज्ञानिक सक्षम हैं और भविष्य में वे चांद ही नहीं, और कई-कई ग्रहों-उपग्रहों तक पहुंच सकते हैं। सवाल बस यह है कि चांद पर पहुंचकर हम हासिल क्या करेंगे ?

यह संतोष कि चांद पर पहुंचने वाले हम विश्व के चौथे या पांचवें देश बन गए ? या यह दम्भ कि हमारी इस सफलता से हमारा कोई दुश्मन मुल्क़ जल-भुनकर खाक़ हो जाएगा ? अगर नहीं तो यह जानकर कि चांद के किसी कोने में पानी का भंडार है, हमें क्या मिलेगा ? क्या हम टंकियों और बोतलों में भरकर उसे पृथ्वी पर लाएंगे ? तब चांद के एक बोतल पानी की क़ीमत इतनी होगी कि हमारे-आपके जैसे लोगों के घर बिक जायं।

वहां खनिजों और गैसों के भंडार का पता भी मिल जाय तो उन्हें पृथ्वी पर लाने में जितना खर्च लगेगा उतने में तो हम पृथ्वी पर ही खनिजों के कई भंडार खोज निकालेंगे। क्या हमें चांद पर अपनी पृथ्वी के खाए-अघाए लोगों की कालोनियां बसानी हैं ? तब ये लोग पृथ्वी की तरह चांद और उसके पर्यावरण को भी गंदा कर डालेंगे। वह पृथ्वी हो या चांद, प्रकृति से खेलने के नतीजें कितने ख़तरनाक हो सकते हैं, यह हम सब अपनी दुनिया में देख और महसूस कर रहे हैं।

चांद को बेवज़ह छेड़ने से बेहतर होगा कि हम तेजी से विनाश की ओर बढ़ती हुई अपनी पृथ्वी की उम्र थोड़ी और बढ़ाने का जतन करें। उसके जंगल और वृक्ष उसे वापस लौटाकर। उसकी जहरीली होती हवा में थोड़ा प्राण फूंककर। उसकी नदियों को अविरल और निर्मल बनाकर। यह पृथ्वी बचेगी तो हम बचेंगे और हमारी आनेवाली पीढ़ियां बचेंगी। हम अपनी पृथ्वी की चिंता करें और चांद को उसके हाल पर छोड़ दें ! चांद हमारे बगैर ज्यादा सौम्य, शीतल, निर्मल और खूबसूरत है।

चांद पर पहुंचकर पृथ्वी की तरह उसकी प्रकृति और पर्यावरण से खेलने के पीछे बहुत सारे लोगों का तर्क यह है कि भविष्य में पृथ्वी के नष्ट होने की स्थिति में हमें मनुष्यों के लिए दूसरे ग्रहों-उपग्रहों पर ठिकाने खोजने और बनाने की ज़रूरत है। अबतक की वैज्ञानिक प्रगति के आलोक में फिलहाल पृथ्वी से भागने के हमारे पास दो ही विकल्प उपलब्ध हैं - चांद और मंगल। ये दोनों दूर से ही भले लगते हैं। इन दोनों ही ग्रहों पर पानी और जीवन की अन्य परिस्थितियों का मसला अभी हल नहीं हुआ है। वहां थोड़ा-बहुत पानी हो भी तो क्या वह पृथ्वी के अरबों लोगों की जरूरतों के लिए पर्याप्त हैं ? वहां हवा तो होगी, लेकिन उस हवा का घनत्व क्या होगा ? क्या असंख्य लोगों की सांसों से दूषित होने के बाद हवा की रिसाइकिलिंग कर उसे फिर से जीवनदायिनी बनाने वाले पेड़-पौधे भी वहां मौजूद हैं ? वहां की चट्टानी सतह पर खेती कैसे कर सकेंगे आप ? क्या चंद्रयानों से पृथ्वी से मिट्टी ढोकर ले जाएंगे आप ? इन दोनों ही ग्रहों पर बिना गुरुत्वाकर्षण के हवा में असहाय उड़ते रहना कुछ दिनों के लिए तो रोमांचक लग सकता है, लेकिन ऐसा जीवन देर तक रास नहीं आने वाला। मान लीजिए कि विज्ञान देर-सबेर इनमें से कुछ मसलों का हल खोज भी ले, लेकिन पृथ्वी के अरबों मनुष्यों को ढोकर चांद या मंगल पर ले जाना संभव है ? हमारे विस्थापन की इस प्रक्रिया में ही हजारों साल लगेंगे। तबतक क्या यह पृथ्वी बची रहेगी ? अब यह तो नहीं हो सकता कि मुट्ठी भर साधनसंपन्न लोग वहां जाकर अपनी बस्तियां बसा लें और बाकी असंख्य लोगों को पृथ्वी से आकर भविष्य में टकराने वाले किसी धूमकेतु, सूरज की आग और जलप्रलय के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाय ?

वैसे भी चांद और मंगल जैसे पथरीले, उजाड़ और वीरान ग्रहों-उपग्रहों पर बसने की संभावना कहीं से भी आपको रोमांचित करती है ? एक-दो दिनों के लिए वहां घूम-फिर आना अलग बात है। हमारी पृथ्वी से सुन्दर कोई ग्रह इस पूरे ब्रह्माण्ड में होगा, इसकी संभावना दूर-दूरतक नहीं दिखती। यहां प्रकृति का अथाह सौन्दर्य भी है, विविधताओं से भरा जीवन भी और जीवन के पैदा तथा विकसित होने की सर्वाधिक अनुकूल परिस्थितियां भी। ब्रह्माण्ड के किस ग्रह-उपग्रह पर होगी ऐसी सोंधी मिट्टी, ऐसी ताजा हवा, ऐसी मनोहारी हरियाली, ऐसी उछलती-कूदती नदियां, ऐसी हरी-भरी या बर्फ से आच्छादित पर्वत श्रृंखलायें, ऐसे रंग-विरंगे फूल, इतने खूबसूरत, रहस्यमय वन और पशु-पक्षियों का इतना विविध संसार ? इन्हें छोड़कर क्या जी पाएंगे हम ?

आईए, अपने सौर मंडल के दूसरे ग्रहों-उपग्रहों को बर्बाद करने की योजनाएं बनाने के बज़ाय हम अपनी पृथ्वी को एक बार फिर रहने के लायक बनाएं ! कहीं ऐसा न हो योजनाविहीन और अंधे विकास के नाम पर अपनी पृथ्वी और उसके पर्यावरण को हम इस क़दर उजाड़ दें कि हमारी आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध पानी और हवा के एक ताज़ा झोंके के लिए तरसना पड़ें। जिस धरती ने हमें जीवन दिया और अरबों साल तक हमें पाला-पोसा, अगर हमारी बेवकूफियों की वजह से वह संकट में है तो उसे फिर से जीवन देना हमारी ही ज़िम्मेदारी है। अपनी इस धरती मां को हमने मरने के लिए छोड़ दिया तो चांद और मंगल तो क्या, ब्रह्मांड के असंख्य आकाशगंगाओं के असंख्य तारों, ग्रहों और उपग्रहों में हमें कहीं ठिकाना नहीं मिलेगा !
(लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं)