प्रेस शर्मनाक दौर में, ख़बर के नाम पर कहीं गोबर तो नहीं छपा है...
रवीश कुमार अख़बारों को ध्यान से पढ़ें। आवाज़ अब आज़ाद नहीं है। प्रेस शर्मनाक दौर में है। ख़बर के नाम पर कहीं गोबर तो नहीं छपा है। मुक्त आवाज़ के आँगन को खोजिए। आलस्य छोड़िए और आदत बदलिए। आप ज़िम्मेदार पाठक हैं। अपनी ज़िम्मेदारी समझिए। सोचिए कि जो छप
रवीश कुमार
अख़बारों को ध्यान से पढ़ें। आवाज़ अब आज़ाद नहीं है। प्रेस शर्मनाक दौर में है। ख़बर के नाम पर कहीं गोबर तो नहीं छपा है। मुक्त आवाज़ के आँगन को खोजिए। आलस्य छोड़िए और आदत बदलिए। आप ज़िम्मेदार पाठक हैं। अपनी ज़िम्मेदारी समझिए। सोचिए कि जो छपा है क्या वह दबाव मुक्त है ?
मेरी अंग्रेज़ी वाली किताब का नया संस्करण एमज़ॉन पर उपलब्ध है। हिन्दी वाली भी आने के अंतिम चरण में हैं। संपादक सत्यानंद जुटे हैं। हिन्दी वाली राजकमल प्रकाशन के ज़िम्मे है, अंग्रेज़ी वाली the speaking tiger हैं।
(लेखक मशहूर पत्रकार व न्यूज़ एंकर हैं)
अख़बारों को ध्यान से पढ़ें। आवाज़ अब आज़ाद नहीं है। प्रेस शर्मनाक दौर में है। ख़बर के नाम पर कहीं गोबर तो नहीं छपा है। मुक्त आवाज़ के आँगन को खोजिए। आलस्य छोड़िए और आदत बदलिए। आप ज़िम्मेदार पाठक हैं। अपनी ज़िम्मेदारी समझिए। सोचिए कि जो छपा है क्या वह दबाव मुक्त है ?
मेरी अंग्रेज़ी वाली किताब का नया संस्करण एमज़ॉन पर उपलब्ध है। हिन्दी वाली भी आने के अंतिम चरण में हैं। संपादक सत्यानंद जुटे हैं। हिन्दी वाली राजकमल प्रकाशन के ज़िम्मे है, अंग्रेज़ी वाली the speaking tiger हैं।
(लेखक मशहूर पत्रकार व न्यूज़ एंकर हैं)