BJP के लिए लोस चुनाव की राह आसान नहीं

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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BJP के लिए लोस चुनाव की राह आसान नहीं

लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर घमासान चरम पर पहुंच चुका है। विपक्षी पार्टियां भाजपा को हराने के लिए लामबंद होने लगी हैं तो वहीं भाजपा सत्ता में दोबारा आने के लिए लगातार नई रणनीति बना रही है। उसने विभिन्न राज्यों में सहयोगियों के साथ गठबंधन को तेजी से आगे


BJP के लिए लोस चुनाव की राह आसान नहीं लोकसभा चुनाव 2019 को लेकर घमासान चरम पर पहुंच चुका है। विपक्षी पार्टियां भाजपा को हराने के लिए लामबंद होने लगी हैं तो वहीं भाजपा सत्ता में दोबारा आने के लिए लगातार नई रणनीति बना रही है। उसने विभिन्न राज्यों में सहयोगियों के साथ गठबंधन को तेजी से आगे बढ़ाया है। महाराष्ट्र में जहां उसने 30 साल पुराने दोस्त शिवसेना के साथ फिर दोस्ती की है, वहीं तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक और पीएमके के गठजोड़ में शामिल हो गई है।
इसके बावजूद भाजपा के लिए 2019 चुनाव की राह आसान नहीं है। जिन बड़े प्रदेशों ने 2014 में भाजपा को सत्ता में पहुंचाया उन जगहों पर इस बार भाजपा की अग्निपरीक्षा है। हिंदी हार्टलैंड के तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा। इसने पार्टी पर दबाव बेहद बढ़ा दिया है। नजर डालते हैं ऐसे बड़े राज्यों पर जो उसकी जीत का रास्ता तय करेंगे साथ ही यहां भाजपा को कड़े इम्तेहान से भी गुजरना है।
लोकसभा सीटों के लिहाज से उत्तप्रदेश पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। आबादी के लिहाज से यहां सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं। पिछली बार भाजपा ने यहां जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए 71 सीटों पर कब्जा जमाया था। यहां मिली प्रचंड जीत ने उसे केंद्र की सत्ता तक पहुंचाया। पीएम मोदी ने खुद वाराणसी से चुनाव लड़ा और संसद पहुंचे। इस राज्य में मोदी लहर इतनी प्रचंड थी कि बसपा का पूरी तरह सूपड़ा साफ हो गया जबकि समाजवादी पार्टी 5 सीटें ही जीत सकी। कांग्रेस अमेठी और रायबरेली में ही टिक सकी।लेकिन इस बार हालात अलग है। एक अरसे बाद उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और तमाम सर्वे में भाजपा को कम सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं। सर्वे की मानें तो सपा-बसपा गठबंधन 50 से 60 सीटों पर कब्जा जमा सकता है। अगर अनुमान सही निकला तो भाजपा के लिए दोबारा सत्ता तक पहुंचना बेहद मुश्किल होगा।
महाराष्ट्र में भाजपा से नाराज शिवसेना अकेले ही लोकसभा चुनाव लडऩे का एलान कर चुकी थी। लेकिन भाजपा ने किसी तरह शिवसेना के साथ दोबारा दोस्ती कर बड़ी मुसीबत को टाल दिया। समझौते के तहत भाजपा 25 और शिवसेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। दोनों मिलकर फिर से 2014 का जलवा दोहरा सकते हैं। 2014 में इस गठबंधन ने 48 में से 41 सीटों पर कब्जा किया था। भाजपा को 23 जबकि शिवसेना को 18 सीटों पर जीत मिली थी। दोनों मिलकर इसके आसपास का आंकड़ा फिर हासिल कर सकते हैं।
मध्यप्रदेश राज्य भाजपा के लिए इस बार कड़ी परीक्षा लेने जा रहा है। 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 15 साल से काबिज भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया। सबसे बड़ा कारण सवर्ण आंदोलन को माना गया। 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 27 सीटों पर कब्जा जमाया था। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार का असर लोकसभा चुनाव में भी दिख सकता है। अगर 2019 में इसी पैटर्न पर वोटिंग हुई तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
गुजरात में 2014 चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा ने गुजरात में भी भगवा परचम लहराया। भाजपा ने सभी 26 सीटों पर कब्जा किया। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता हासिल करने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ी थी। कांग्रेस ने उसे कड़ी टक्कर दी थी। इस लिहाज से 2019 चुनाव में इस राज्य में भाजपा को थोड़ा बहुत नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। हार्दिक पटेल और जिग्नेश मेवाणी जैसे युवा नेता लगातार भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। लेकिन आखिरी वक्त पर मोदी बाजी को पूरी तरह अपने पक्ष में भी कर सकते हैं। करीब दो दशकों से यहां की जनता भाजपा पर भरोसा जताता आ रही है।
कर्नाटक में 28 सीटे भाजपा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। भाजपा के लिए इस बार कड़ा इम्तेहान है। 2014 में पार्टी ने यहां 17 सीटें जीती थीं जिसने केंद्र में भाजपा सरकार बनने में अहम भूमिका निभाई थी। गौर करने लायक बात है कि बेल्लारी लोकसभा उपचुनाव में भाजपा को हार मिली थी। लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया पर बहुमत से कुछ सीटें दूर रह गई। चुनाव बाद हुए कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने उसका खेल बिगाड़ दिया। तमाम मशक्कत के बाद भी भाजपा सरकार बनाने में नाकाम रही। बहुमत साबित कर पाने में नाकाम रहे येदियुरप्पा को सदन में इस्तीफा देना पड़ा। 2019 चुनाव में भाजपा के सामने पुराने प्रदर्शन को  दोहराने की चुनौती होगी।
राजस्थान में भी भाजपा को 2018 में तगड़ा झटका मिला। विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की अगुवाई में कांग्रेस ने पांच साल बाद सत्ता में वापसी की। 2014 की मोदी लहर में भाजपा ने यहां सभी 25 सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार इस प्रदर्शन को दोहरा पाना बेहद मुश्किल होगा। यानी यहां से भी भाजपा को सीटों की कटौती झेलनी होगी।
इन राज्यों में कुल 236 सीटें 
इन 6 राज्यों में सीटों के लिहाज से देखें तो भाजपा को 2014 के आसपास के प्रदर्शन को दोहराना होगा तभी उसका दोबारा सत्ता पाने का लक्ष्य पूरा होगा। इन छह राज्यों में कुल 236 सीटें हैं। सभी 6 राज्य बड़े हैं और यहां भाजपा का खासा जनाधार भी है। भाजपा ने 2014 में इन राज्यों की 236 में से 189 सीटों पर कब्जा जमाया था। अगर इस बार इस आंकड़े में बड़ी गिरावट आई तो भाजपा का दोबारा सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो जाएगा।