जानिए किस पर वाजिब है बकरीद पर 'कुर्बानी' करना
मुरादाबाद। ईद उल अजहा यानी बकरीद 12 अगस्त सोमवार को मनायी जाएगी। शरीफनगर के मौलाना अब्दुल खालिक ने बकरीद पर कुर्बानी के बारे में तफ्सील से बताया। हजरत आयशा सिद्दीका रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ने इर्शाद फरमाया कि इब्ने आदम के लिए कुर्बानी के
मुरादाबाद। ईद उल अजहा यानी बकरीद 12 अगस्त सोमवार को मनायी जाएगी। शरीफनगर के मौलाना अब्दुल खालिक ने बकरीद पर कुर्बानी के बारे में तफ्सील से बताया।
हजरत आयशा सिद्दीका रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ने इर्शाद फरमाया कि इब्ने आदम के लिए कुर्बानी के दिनों में ऐसा कोई अमल नहीं जो खुदा के नजदीक कुर्बानी करने ज्यादा महबूब हो। कुर्बानी करते वक्त इससे पहले कि खून का कतरा जमीन पर गिरे, बारगाहे खुदा में कुर्बानी कुबूल हो जाती है।
कुर्बानी वाजिब होने की शर्तें: 1- मुकीम हो, मुसाफिर न हो, 2- मालदार हो, तंगहाल न हो, 3- मुसलमान हो, 4- जिस शख्स पर सदकाये फितर वाजिब है उस पर कुर्बानी वाजिब है। कुछ लोग भी इस गलतफहमी में हैं कि जकात फर्ज नहीं तो कुर्बानी भी फर्ज नहीं, हालांकि दोनों में फर्क है। कुर्बानी के तीनों दिन 10,11,12 जिलहिज्जा में भी कहीं से कोई दौलत आ गयी तो उस पर भी कुर्बानी वाजिब हो गयी। जबकि जकात की अदायगी में साल गुजरना जरूरी है।
कुर्बानी मुसलमानों का कोई रस्मी त्यौहार नहीं है, जिसमें गोश्त खाने का शौक पूरा कर लिया जाए, बल्कि यह कुर्बानी मुसलमानों की तरफ से अल्लाह के नाम पर अल्लाह की एक बहुत बड़ी इबादत है।
हजरत आयशा सिद्दीका रजि. से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ने इर्शाद फरमाया कि इब्ने आदम के लिए कुर्बानी के दिनों में ऐसा कोई अमल नहीं जो खुदा के नजदीक कुर्बानी करने ज्यादा महबूब हो। कुर्बानी करते वक्त इससे पहले कि खून का कतरा जमीन पर गिरे, बारगाहे खुदा में कुर्बानी कुबूल हो जाती है।
कुर्बानी वाजिब होने की शर्तें: 1- मुकीम हो, मुसाफिर न हो, 2- मालदार हो, तंगहाल न हो, 3- मुसलमान हो, 4- जिस शख्स पर सदकाये फितर वाजिब है उस पर कुर्बानी वाजिब है। कुछ लोग भी इस गलतफहमी में हैं कि जकात फर्ज नहीं तो कुर्बानी भी फर्ज नहीं, हालांकि दोनों में फर्क है। कुर्बानी के तीनों दिन 10,11,12 जिलहिज्जा में भी कहीं से कोई दौलत आ गयी तो उस पर भी कुर्बानी वाजिब हो गयी। जबकि जकात की अदायगी में साल गुजरना जरूरी है।
कुर्बानी मुसलमानों का कोई रस्मी त्यौहार नहीं है, जिसमें गोश्त खाने का शौक पूरा कर लिया जाए, बल्कि यह कुर्बानी मुसलमानों की तरफ से अल्लाह के नाम पर अल्लाह की एक बहुत बड़ी इबादत है।