पड़ोसी कहते थे- अबॉर्शन करा दो, आज तीनों बेटियां हैं IAS

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पड़ोसी कहते थे- अबॉर्शन करा दो, आज तीनों बेटियां हैं IAS

बरेली। चंद्रसेन सागर खुद 10 साल ब्लॉक प्रमुख रहे हैं, भाई सियाराम सागर भी पांच बार के विधायक। मगर बेटियों की सफलता ने सागर परिवार की समय के साथ नई पहचान गढ़ी है। अब चंद्रसेन की पहचान एक नेता से कहीं ज्यादा आईएएस बेटियों के पिता के रूप में हो चुकी है


पड़ोसी कहते थे- अबॉर्शन करा दो, आज तीनों बेटियां हैं IAS
बरेली।  चंद्रसेन सागर खुद 10 साल ब्लॉक प्रमुख रहे हैं, भाई सियाराम सागर भी पांच बार के विधायक। मगर बेटियों की सफलता ने सागर परिवार की समय के साथ नई पहचान गढ़ी है। अब चंद्रसेन की पहचान एक नेता से कहीं ज्यादा आईएएस बेटियों के पिता के रूप में हो चुकी है।

बरेली के पूर्व ब्लाक प्रमुख चंद्रसेन सागर की तीनों बेटियां अर्जित,अर्पित और आकृत IAS हैं। चंद्रसेन सागर ने कहा कि राजनीति में होते हुए भी वह कोशिश करते हैं कि किसी का बुरा न हो। शायद, उनकी अच्छाई का फल ही उनकी बेटियों को मिल रहा है। बेटियों से ज्यादा उनकी पढ़ाई की फिक्र मां मीना सागर को रहती है।
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चंद्रसेन सागर की पत्नी मीना सागर खुद बेटियों के साथ परीक्षा के दौरान रहती हैं, ताकि उन्हें पढ़ाई के दौरान कोई तकलीफ न हो। खाने-पीने में बेटियों को कोई समस्या न हो। तीनों बेटियों को आईएएस बनाने में मां का बहुत बड़ा योगदान है। वह अपनी सभी बेटियों का बहुत ख्याल रखती हैं। मां बेटियों के साथ रहती हैं और पिता चंद्र सागर अकेले बरेली में रहकर बेटियों को प्रोत्साहित करते हैं।

चंद्रसेन सागर ने अपनी बेटियों पर कभी सपनों का बोझ नहीं डाला। उन्होंने बताया कि उनकी बेटियां जिस क्षेत्र कॅरिअर बनाना चाहती थीं, उन्होंने पूरा साथ दिया। कभी अपनी इच्छा उनके ऊपर नहीं थोपी। चंद्रसेन सागर ने अपनी दो फैशन डिजाइनर बेटियों से कभी यह नहीं कहा कि वे भी सिविल सर्विसेस की तैयारी करें। उन्होंने कहा कि बेटियां जो बनना चाहती थीं, वह बनीं, उनको सपनों को पूरा करने में साथ दिया।
पड़ोसी कहते थे- अबॉर्शन करा दो, आज तीनों बेटियां हैं IAS

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चंद्रसेन सागर कहते हैं कि-समाज में सचमुच बेटियों को लेकर पहले सोच अच्छी नहीं रही। जब लगातार बेटियां हुईं तो कुछ लोग अल्ट्रासाउंड की सलाह देकर कहने लगे कि बेटी का पता लगते ही अबॉर्शन करा दो, नहीं तो झेल जाओगे। पहले अल्ट्रासाउंड से लिंग जांच पर प्रतिबंध नहीं था। मगर हम किसी के बहकावे में नहीं आए। हम पति-पत्नी ने मिलकर सोचा कि बेटा हो या बेटी। क्या फर्क पड़ता है। सब भगवान की देन है। आज हमें अपने फैसले पर गर्व है।

जिन बेटियों के अबॉर्शन की लोग सलाह देते थे, उन्हीं बेटियों ने मेरा अधूरा सपना पूरा कर गर्व से सिर ऊंचा कर दिया। एक पिता के लिए इससे बड़ी सफलता और खुशी की क्या बात हो सकती है। आज ब्यूरोक्रेसी हो या फिर फैशन डिजाइनिंग की दुनिया। उनकी पांचों बेटियां सफलता का परचम लहरा रहीं हैं।