कटे हाथ से श्रेया ने लिखी सफलता की इबारत...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. Desh Videsh

कटे हाथ से श्रेया ने लिखी सफलता की इबारत...

28 मई 2010 को आर्किटेक्चर स्टूडेंट श्रेया जनेश्वरी से एक ट्रेन में बैठीं। वह कोलकाता में एक शादी में शिरकत करके अपनी मां और भाई के साथ मुंबई वापस आ रही थीं। कुछ ही देर में वह अपनी अपर बर्थ पर लेटकर सो गईं और अचानक एक तेज झटके से उनकी आंख खुली। सुबह


कटे हाथ से श्रेया ने लिखी सफलता की इबारत...
28 मई 2010 को आर्किटेक्चर स्टूडेंट श्रेया जनेश्वरी से एक ट्रेन में बैठीं। वह कोलकाता में एक शादी में शिरकत करके अपनी मां और भाई के साथ मुंबई वापस आ रही थीं। कुछ ही देर में वह अपनी अपर बर्थ पर लेटकर सो गईं और अचानक एक तेज झटके से उनकी आंख खुली।

सुबह के लगभग 1.30 बजे वह अपनी बर्थ से नीचे गिर गईं। ट्रेन बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले में डिरेल हो गई थी। श्रेया बेहोश हो गईं और जब डिरेलमेंट के कुछ ही मिनट बाद जिस बोगी में वह थीं वह तेजी से आती हुई मालगाड़ी से टकरा गई।
कटे हाथ से श्रेया ने लिखी सफलता की इबारत...

वह बताती हैं कि यह एक नक्सली हमला था। जब मैं होश में आई तो खुद को मलबे में दबा हुआ पाया। मेरा सीधा हाथ बुरी तरह से कुचल गया था। वह मेरे कंधे से कट चुका था और कुछ नसों के सहारे लटक रहा था। मुझे कुछ महसूस नहीं हो रहा था। मैं सदमें में थी। मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल चुकी थी।  हर तरफ से रोने-चीखने की आवाजें आ रही थीं। लोग घायलों को बचाने के लिए दौड़ रहे थे, लेकिन जिसने भी श्रेया की तरफ देखा उसे यही लगा कि वह नहीं बचेंगी।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार श्रेया कहती हैं, बचाने वाले लोगों में से ज्यादातर को यही लग रहा था कि मैं मर जाऊंगी, लेकिन मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है। रेस्क्युअर्स को सेकेंड्स में फैसला लेना था। उन्हें उन लोगों को बाहर निकालना था, जिनके बचने के चांसेज ज्यादा थे, लेकिन मैं खुशनसीब हूं कि वहां मेरा भाई सौरभ था, जिसे सबसे कम चोट लगी थी।

वह दौड़-दौड़ कर लोगों के पास जा रहा था और कह रहा था मेरी बहन को बचाने में मेरी मदद करो, लेकिन वहां के ज्यादातर लोगों को नक्सलियों का डर था। हो भी क्यों न, वे ऐसी जगह रहते थे जहां कभी भी किसी को नक्सली गोली मार देते, लेकिन सौरभ ने हार नहीं मानी।
कटे हाथ से श्रेया ने लिखी सफलता की इबारत...

एक आर्मी ऑफिसर उस वक्त मेरे लिए फरिश्ता बनकर आई। उन्होंने रेलवे के कंबल से स्ट्रेचर बनाए और उसके सहारे मुझे बाहर खींचा। वह कहती हैं कि मैं 7 घंटे तक रेलवे प्लेटफॉर्म पर लेटी थी, जब तक रेस्क्यु ट्रेन वहां नहीं आ गई। यहां तक कि रेस्क्यु ट्रेन के लोको पायलट को भी इस बात का डर था कि नक्सली उसे मार देंगे। इन सात घंटों की देरी की वजह से श्रेया का हाथ जुड़ने की जो थोड़ी बहुत उम्मीद थी वह भी खत्म हो गई। उसमें गैंगरीन का इनफेक्शन हो गया और वह नीला-काला पड़ गया।

श्रेया कहती हैं उस वक्त मुझे लग रहा था कि एक हाथ के बिना मैं कैसे आर्किटेक्ट बन पाऊंगी, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। मैंने यह मान लिया कि मेरा एक हाथ नहीं है और मुझे अब जिंदगी भर ऐसे ही रहना है। इसलिए रोने से कुछ नहीं होगा।

श्रेया ने अपने बाएं हाथ से लिखना शुरू किया और पैरों से ड्रॉइंग बनाने की प्रैक्टिस शुरू की और अपनी इस मेहनत के दम पर उन्होंने मुंबई यूनिवर्सिटी में टॉप भी कर लिया।

उस वक्त मीडिया में उन्हें चर्चा मिली और क्राउडफंडिग के जरिए लोगों ने उन्हें एक प्रोस्थेटिक रोबोटिक आर्म गिफ्ट की। वह कहती हैं कि अभी भी कई ऐसे काम हैं जो मैं नहीं कर पाती हूं, जैसे एक हाथ से बाल बांधना। इसलिए मैंने अपने लंबे बाल कटवा लिए।

अब श्रेया आर्किटेक्ट्स को पढ़ाती हैं, मोटिवेशनल वर्कशॉप्स लेती हैं। वह कहती हैं कि मेरे बैच के स्टूडेंट्स को एक सेमेस्टर बीत जाने के बाद समझ आया कि मैं प्रोस्थेटिक आर्म इस्तेमाल करती हूं। वह कहती हैं मैं अपने चेहरे के एक्सप्रेशन और टीचिंग मैटीरियल पर इतना ज्यादा फोकस करती हूं कि स्टूडेंट्स का ध्यान इस तरफ जाता ही नहीं कि मेरा सीधा हाथ क्या नहीं कर पा रहा है।

कुछ महीने पहले ही उन्होंने अपने ब्वॉयफ्रेंड से शादी की है। वह कहती हैं कि अब मैंने अपने बाल बढ़ाना शुरू कर दिए हैं क्योंकि कोई है जो उन्हें बांधता है।

श्रेया सेन से श्रेया श्रीवास्तव बनने की कहानी भी उनके लिए यादगार है। वह कहती हैं कि अपने पति प्रतीक से आईआईटी रुड़की में मिली थी। उन्होंने आईआईटी मद्रास से इंजीनियरिंग की थी। हम दोनों ही अपने-अपने आईआईटी के टॉप स्टूडेंट्स में से थे, जिन्हें एक इंडो-जर्मन एक्सचेंज प्रोग्राम की मास्टर रिसर्च के लिए चुना गया था।