'मित्रता दिवस' पर आईने के सामने खड़े होकर एक बार ख़ुद से ज़रूर कहें...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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'मित्रता दिवस' पर आईने के सामने खड़े होकर एक बार ख़ुद से ज़रूर कहें...

ध्रुव गुप्त हम सबको जीवन भर सच्चे दोस्तों की तलाश रहती है।ऐसे दोस्त जिनके कंधों पर हम अपनी अपेक्षाएं टिका सकें। जो हमारी खुशियों में ही शरीक़ न हों, हमारे दुख और ज़रूरतों में भी हमारे साथ खड़ा हो सके। टुकड़ों में तो यह संभव है, लेकिन अपेक्षाओं की भारी ग


'मित्रता दिवस' पर आईने के सामने खड़े होकर एक बार ख़ुद से ज़रूर कहें...
ध्रुव गुप्त 
हम सबको जीवन भर सच्चे दोस्तों की तलाश रहती है।ऐसे दोस्त जिनके कंधों पर हम अपनी अपेक्षाएं टिका सकें। जो हमारी खुशियों में ही शरीक़ न हों, हमारे दुख और ज़रूरतों में भी हमारे साथ खड़ा हो सके। टुकड़ों में तो यह संभव है, लेकिन अपेक्षाओं की भारी गठरी अगर साथ हो तो तलाश किसी की पूरी नहीं होती। अपने दोस्तों की ज़िंदगी में आप अकेले नहीं हैं। आपसे अलग भी उनके अपने सुख-दुख हैं, जिम्मेदारियां हैं, प्राथमिकताएं हैं। लोगों की ज़िम्मेदारियां और प्राथमिकताएं वक़्त के साथ बदलती भी रहती हैं।

यह मुमकिन नहीं कि किसी और की ज़िंदगी में हमेशा आपकी वही अहमियत रहे। या फिर ख़ुद आपकी अपनी ज़िंदगी में किसी और की जगह एक-सी बनी रहे। जीवन आमतौर पर आदर्शों से नहीं, ज़रूरतों से संचालित होता है। जीवन भर की वंचनाओं के बाद आखिरकार आपको यही लगेगा कि दोस्तों की भीड़ में भी आप अकेले रह गए।इसके पहले कि मृगतृष्णाओं की इस यात्रा मे आप खुद को ठगा-सा महसूस करें, एक बार आपकी नज़रों से ओझल अपने उस एक दोस्त के बारे में भी सोचकर देखें जो जन्म से लेकर आज तक आपके साथ रहा।जिसकी एक-एक सांस आपके साथ चली। आपकी खुशियों में जो आपके साथ हंसा।

आपके दर्द में जिसने आंसू बहाए। आपके प्रेम को जिसने गाया-गुनगुनाया। आपके अकेलेपन ने जिसे अकेला किया। एक ऐसा दोस्त जो आपकी तमाम प्राथमिकताओं की सूची में कभी शामिल नहीं रहा, लेकिन जिसने आपकी बेहिसाब उपेक्षाओं की कभी शिकायत नहीं की। और अगर मौत के बाद भी कोई यात्रा होती है तो वह आपका अकेला शरीक़-ए-सफ़र होगा।

आज 'मित्रता दिवस' पर आईने के सामने खड़े होकर एक बार ख़ुद से ज़रूर कहें - थैंक्स दोस्त, आई लव यू !