नोएडा सेक्टर 137 की राहगीरी में किस्सों की कहानीगीरी

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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नोएडा सेक्टर 137 की राहगीरी में किस्सों की कहानीगीरी

रवीश कुमार रविवार सुबह साढ़े सात बजे नोएडा सेक्टर 137 में आसमानी इमारतों से उतरकर लोग डांस कर रहे थे और म्यूज़िक का वॉल्यूम आसमान पर था। हवा को साफ करने के लिए राहगीरी हो रही थी और राहगीरी में म्यूज़िक से वायु प्रदूषण हो रहा था। इमारतों के भीतर देर


नोएडा सेक्टर 137 की राहगीरी में किस्सों की कहानीगीरीरवीश कुमार 
रविवार सुबह साढ़े सात बजे नोएडा सेक्टर 137 में आसमानी इमारतों से उतरकर लोग डांस कर रहे थे और म्यूज़िक का वॉल्यूम आसमान पर था। हवा को साफ करने के लिए राहगीरी हो रही थी और राहगीरी में म्यूज़िक से वायु प्रदूषण हो रहा था। इमारतों के भीतर देर तक सोने वाले लोगों की क्या हालत होगी। मिडिल क्लास एक सीरीयस काम में जुटा था। “टून इन वन” जागरूकता। प्रदूषण और मतदान के प्रति।
नोएडा सेक्टर 137 की राहगीरी में किस्सों की कहानीगीरी
लोग नया पब्लिक स्पेस और कल्चर ढूंढ रहे हैं। वहां आए लोगों में ख़ूब उत्साह था। सबके जवान शरीर पर सफेद बालों का बोझ दिख रहा था। चेहरे की झुर्रियों से लड़ते हुए लोग डांस के ज़रिए फिट रख रहे थे। अपने इंडिया के लिए ड्रीम कर रहे थे। इंडिया एक ड्रीम स्पेस है। जहां पर लोग जुट कर उसके लिए ड्रीम सिक्वेंस रचते हैं। लेकिन इस तरह के स्पेस भले कुछ सेकेंड के लिए बनते हैं मगर वहां आए लोगों को भरोसा दे जाते हैं कि इंसान अभी इंसान है। उसके बीच घुला मिला जा सकता है। समाज है जो सिर्फ कमरे में बंद नहीं रहता।

लेकिन जागरुकता के नाम पर किए जाने वाले ऐसे ईवेंट जागरूकता का भ्रम पैदा करते हैं। भारत का मिडिल क्लास देश को ग्राफिक्स एनिमेशन की तरह देखता है। उसके पास मकसद नहीं बचा है क्योंकि बड़े और जटिल मकसद के लिए समय भी नहीं है। इसलिए वह टेलर-मेड मकसद गढ़ता है और टीवी देखकर नेशन की कल्पना करता है। व्हाट्स एप में नेहरू को गाली देकर अपना अतीत ठीक करता है। गंगा और यमुना साफ करने के लिए जलकुंभी उखाड़ लाता है मगर सीवेज ट्रीटमेंट और सफाई पर खर्च करने की नीति और उसमें लूट के सवाल पर उल्टा सवाल पूछता है कि क्या मोदी जी ने एक भी अच्छा काम नहीं किया।

हमने न्यूज़ चैनलों पर ऐसे कई ईवेंट देखे हैं। शुरू में लगता था कि कितना अच्छा काम है। इससे समस्या ठीक होगी और समाज बदलेगा। दोनों में से कुछ नहीं हुआ। राहगीरी का मकसद संडे की साइकलिंग से नहीं बल्कि उन नीतियों के बदलाव और उन्हें लागू करने से पूरा होगा जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बात करती हैं।
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आपने देखा होगा कि जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो ट्वीटर पर स्वच्छता का ब्रांड अंबेसडर नियुक्त करते थे। ये नौ लोग अगले दिन कहीं साफ करने निकल जाते थे और उसका फोटो ट्वीट करते थे। फिर वे 9 लोगों को ब्रांड अंबेसडर बनाते थे। लोगों को लगा कि कमाल आइडिया है मगर यह अभियान दम तोड़ गया। सारे ब्रांड अंबेसडर दोबारा कभी नज़र नहीं आए। कहीं जाइये स्वच्छता के पोस्टर फट कर कचरे में बदल चुके हैं। कचरा बजबजा रहा है।

मिडिल क्लास को कुछ होता हुआ दिखे इसलिए आज कल डिवाइडर के किनारे जमी धूल साफ करने के लिए बड़े बड़े ट्रक आए हैं। मगर जहां कचरा है उसे हटाने और ट्रीटमेंट करने का इंतज़ाम नहीं दिखता। लोग इसी से खुश हैं कि किसी ने बात तो की। काम करना बात करना हो गया है वैसे ही जैसे देश के लिए कुछ करना किसी ईवेंट में जाना हो गया है।

मैं इस प्रक्रिया को पब्लिक को डी-पब्लिक करना कहता हूं। जनता को लगता है कि वह जनता है मगर है नहीं। आप पब्लिक के रूप में भागीदारी न करें बल्कि ऐसा कुछ करें जिससे लगे कि आप भागीदारी कर रहे हैं और वह फार्मेट क्या हो यह तय कोई और करे। चाय पर चर्चा कर लें या कॉफी विद कैप्टन कर लें।

नोएडा सेक्टर 137 में बहुत अच्छे लोग मिले। लोगों ने अपनी तरफ से अच्छा ही प्रयास किया। वहां सेल्फी के फ्रेम में मेरी आंखें सिर्फ चेहरा देख रही थीं मगर कानों के पास कहानियां मंडराने लगीं। 250 लोगों का एक ऐसा ग्रुप आ गया जो हर दिन वॉक पर निकलता है। कभी कभी लंबी दूरी के वॉक पर निकलता है। पैदल चलने वालों का ग्रुप है। बैनर है। शानदार काम लगा इनका। लगा कि इस शहर में कोई ज़िंदा है।

नेटवर्क सिर्फ व्हाट्स एप पर नहीं बन रहे हैं। समाज में भी बन रहा है। इस ग्रुप के साथ कभी 10 किमी वाले वॉक पर जाने का इरादा है मगर इनका नंबर लेना ही भूल गया हूं।

कई लोगों ने कहा कि उन्होंने न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दिया है। मैंने मतदान करने के साथ साथ एक बार फिर से न्यूज़ चैनल न देखने की अपील की। मेरी अपील में 100 फीसदी न्यूज़ चैनल शामिल हैं। मैं यह बात तथ्यों और प्रक्रिया की समझ के आधार पर कहता रहा हूं कि भारत के न्यूज़ चैनल इस लोकतंत्र की खूबसूरती को बर्बाद कर रहे हैं। कई लोगों को अब भी भ्रम है कि वे टीवी सूचना के लिए देख रहे हैं। प्रोपेगैंडा को सूचना समझने की बीमारी एक अपील से नहीं जाती फिर भी याद दिला दिया कि उसमें दिखता क्या है।

जब मतदाताओं को जागरूक करने की बात कर रहा था तब कुछ लोग मोदी मोदी करने लगे। मोदी मोदी करने में कोई बुराई नहीं है बल्कि यह अच्छी बात है। मगर इस नारे का इस्तमाल जब डराने और चिढ़ाने के लिए हो तो इसके खतरे समझना चाहिए। मैं बोल रहा था और वो मोदी-मोदी किए जा रहे थे। चार पांच ही थे। बाकी सैंकड़ों लोग चुप थे। मैंने सिर्फ इतना कहा कि अगर यहां सारे लोग भी नारे लगाएंगे तो भी मैं अकेला बोलता रहूंगा। मैं रवीश कुमार हूं। नारे लगाने वाले चुप हो गए। भीड़ से कोई समर्थन नहीं मिला। वहां पर बाकी दलों के भी समर्थक होंगे मगर उनमें से तो किसी ने अपने नेता का नारा नहीं लगाया। कार्यक्रम मतदाताओं को जागरूक करने के लिए था मैं उसी पर बोल रहा था। एनि वे।

फिर एक पूर्व पत्रकार मिलीं। माफी चाहूंगा नाम भूल गया मगर मातृत्व अवकाश नहीं मिलने के कारण दो दो न्यूज़ चैनलों की नौकरी छूट गई। लेकिन इस महिला ने क्या ही तो शानदार काम किया है। स्थानीय स्तर पर मैत्री चैनल बना दिया है। जिसमें सिर्फ महिलाएं काम करती हैं। वे महिलाएं जिनकी नौकरी छूट गई है। इन्हें रिपोर्टर और एडिटर बना दिया है। कोई पुरुष नहीं है। चैनल का लोगो है और यू ट्यूब पर है। कहा कि ज़्यादातर महिलाओं को डिप्रेशन हो गया है। हम आपसी संवाद को बढ़ा रहे हैं। कितना ही शानदार काम था।

इस एक अच्छी जानकारी को यात्रा की पूंजी मान कर लौट ही रहा था कि एक नौजवान भागा भागा आया। रोबिन। आंखें भरी हुई थीं। 24 मार्च को आधी रात के वक्त मैनपुरी के पास यूपी परिवहन की बस डिवाइडर से टकरा गई। वॉल्वो बस में आग लग गई और उसमें सवार चार यात्री जल कर मर गए। रोबिन की बहन डॉ ज्योति और प्यारी भांजी नीति भी थे। दोनों लखनऊ जा रहे थे जहां उसके पिता राज्यपाल के चिकित्सक हैं। ज्योति कैंसर पर रिसर्च कर रही थीं।

इस दुर्घटना ने दो दो घरों को तबाह कर दिया। रोबिन को अमरीका में अपना सब कुछ छोड़ कर नोएडा आना पड़ा है। उसने अपनी नौकरी अपना करियर सब छोड़ दिया। ज्योति जब थीं तो वह मां बाप का ख़्याल रख ले रही थी अब इस विपदा में वो और क्या करता।
रोबिन सुबह ही लखनऊ से लौटा था। व्हाट्स एप ग्रुप में मेरी तस्वीर देखी तो भागा भागा आया। यही कहने के लिए क्या किया जाए कि किसी और का घर बर्बाद न हो। इतनी हाई फाई बस में सेफ्टी के क्या मानक थे कि आग लगने पर मेरी बहन जल गई। इतनी बड़ी दुर्घटना भी तो नहीं थी।

आप बताइये, मोदी मोदी के शोर के बीच एक सवाल चुपके से धंसा हुआ है, हम क्या करें। हम हर सेकेंड ऐसी धमकियों और ऐसी सिसकियों को सुनते समझते गुज़र रहे हैं। मैं जानता हूं कि कुछ नहीं बदलेगा। परिवहन विभाग के लोग उसी तरह चुनाव के टाइम में कमा कर मंत्री को पहुंचा रहे होंगे। थाने से भी उगाही जा रही होगी। अमरीका में बैठा रोबिन अपने इंडिया को टीवी पर बदलता देख रहा होगा। एनिमेशन से नेशन नहीं बदलता है।

घर आकर मीडिया की रिपोर्ट चेक की। अमर उजाला की रिपोर्ट का हिस्सा यहां दे रहा हूं। रोबिन की ज़िंदगी बर्बाद हो गई और ख़बर का हाल देखिए। मीडिया पब्लिक विरोधी हो चुका है। फालतू का प्रोपेगैंडा के लिए पूरा पन्ना छपता है जिसमें मोदी जी की पांच फोटो होंगी मगर एक परिवार तबाह हुआ तो उसका डिटेल गायब है। तो फिर जागरूकता और संवेदनशीलता कैसे बनेगी और बचेगी।

मीडिया हर समय एक पब्लिक को मारता है, दूसरी पब्लिक को पुचकारता है। जिस घटना से रोबिन का सारा परिवार तबाह हो गया उसकी रिपोर्टिंग का अंश देखिए।

“उन्होंने बताया कि टक्कर इतनी ज़बरदस्त थी कि रोडवेज बस में आग लग गई जिसमे झुलस कर बस के परिचालक इसरार समेत चार लोग ज़िंदा जल गए। दुर्घटना में तीन अन्य लोग भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं जिन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया है।“

नाम न कहानी। कुछ नहीं। दुर्घटना एक संख्या भर है। भारत में हर साल एक लाख लोग सड़क दुर्घटना में मरते हैं।

इसलिए आप जब डांस की इन तस्वीरों को देखें तो यह न समझें कि यहां कोई कहानी नहीं हैं। यहां आए लोग भले जागरूकता की कहानी लिखना चाहते होंगे मगर कुछ और कहानियां अपने आप बोले जा रही थीं। सेल्फी के पीछे कानों को खोज रही थीं।
(लेखक मशहूर पत्रकार व न्यूज़ एंकर हैं)