इस मंदिर पर नहीं टिकती छत, पांडवों ने खुद किया था निर्माण

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इस मंदिर पर नहीं टिकती छत, पांडवों ने खुद किया था निर्माण

हिमाचल प्रदेश का शिकारी देवी मंदिर करसोग जंजैहली घाटी में 11,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों में यहां बर्फ गिरती है लेकिन गर्मियों में काफी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक दर्शनों लिए यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर का इतिहास बहुत ही अद्भुत है। देव


इस मंदिर पर नहीं टिकती छत, पांडवों ने खुद किया था निर्माण
हिमाचल प्रदेश का शिकारी देवी मंदिर करसोग जंजैहली घाटी में 11,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। सर्दियों में यहां बर्फ गिरती है लेकिन गर्मियों में काफी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक दर्शनों लिए यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर का इतिहास बहुत ही अद्भुत है।

देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों के बीच में बसा यह धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इसका प्राकृतिक सौंदर्य श्रद्धालुओं का मन मोह लेता है। यह मंदिर गर्मियों के दिनों में दर्शनों के लिए खुला रहता है हालांकि सर्दी के दिनों में बर्फ पडऩे के कारण श्रद्धालु कम संख्या में यहां पहुंच पाते हैं।

यह प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर कई अद्भुत रहस्यों से भरा है। इस मंदिर के ऊपर छत का निर्माण न होना भी अपने आप में एक रहस्य ही बना हुआ है। कहा जाता है कि कई बार मंदिर की छत बनाने का काम शुरू किया गया लेकिन हर बार कोशिश नाकाम रही। मंदिर के ऊपर छत नहीं ठहर पाई। यह माता का ही चमत्कार है कि आज तक की गई सारी कोशिशें भी शिकारी माता को छत प्रदान न कर सकीं और आज भी ये मंदिर छत के बिना ही है।

जिस जगह पर यह मंदिर स्थापित है, वह बहुत घने जंगल के मध्य में स्थित है। अत्यधिक जंगल होने के कारण यहां जंगली जीव-जन्तु भी बहुतयात में हैं। जब पांडव अज्ञातवास के दौरान शि’कार खेलने के लिए यहां पहुंचे तो माता शिकारी देवी ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद पांडवों ने माता का मंदिर बनाया और इस मंदिर का नाम शिकारी देवी पड़ा। पांडवों ने शक्ति रूप में विध्यमान माता की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर माता ने उन्हें महाभारत के युद्ध में कौरवों से विजयी प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया। पांडव यहां से जाते वक्त मां के मंदिर का निर्माण किया परन्तु यह कोई भी जानता कि आखिर इस मंदिर की छत का निर्माण पांडवों द्वारा क्यों नहीं किया गया।


दूसरा चमत्कार यह है कि जब सर्दियों में बर्फ गिरती है तो मंदिर के आसपास ही गिरती है लेकिन मां की मूर्ति के ऊपर बर्फ टिक नहीं पाती और पिघल जाती है और मां की मूर्ति के आसपास बर्फ का ढेर लग जाता है। प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक जो भी श्रद्धालु मां के दरबार में आकर मन्नत मांगता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।