यह आजादी झूठी है, इस देश की जनता भूखी है...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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यह आजादी झूठी है, इस देश की जनता भूखी है...

टीपी सिंह 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश गोरों और काले भारतीयों के बीच सत्ता हस्तान्तरण का जो समझौता हुआ उसे भारतीय निर्धन वर्ग ने आजादी मान लिया। वह एकबारगी यह भूल गया कि सिर्फ निजाम बदला है, सत्ता बदली है। गोरों और कालों की मंशा सिर्फ हम पर शासन करने की


यह आजादी झूठी है, इस देश की जनता भूखी है...
टीपी सिंह

15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश गोरों और काले भारतीयों के बीच सत्ता हस्तान्तरण का जो समझौता हुआ उसे भारतीय निर्धन वर्ग ने आजादी मान लिया। वह एकबारगी यह भूल गया कि सिर्फ निजाम बदला है, सत्ता बदली है। गोरों और कालों की मंशा सिर्फ हम पर शासन करने की है। 15 अगस्त को हम फिर दीपक जला रहे हैं। तिरंगे की शान में, शहीदों की शान में राष्ट्रभक्ति गीत बजा रहे हैं। अनेक जलसे हो रहे हैं। देश के अलम्बरदार माननीय राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत भाषण दे रहे हैं। आजाद भारत का गरीब दो लड्डू की हसरत पूरी हुए बिना घर आ जाता है। यह सब किस लिए?

इसलिए कि हम परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त हो गये। हम स्वाधीन भारत हो गये। लोगों का सपना था कि गोरों के जाने के बाद लोग खुशी से झूम उठेंगे। चारों ओर आजाद भारत के लोग खिलखिलाते दिखाई देंगे। भुखमरी, बेकारी, विषमता मिटेगी। लोग धनवान होंगे। कोई भूख से नहीं मरेगा। भेदभाव की खाई भरेगी। सामाजिक, आर्थिक विषमता दफन हो जायेगी। बुनियादी सुविधाऐं देना सरकारों की जिम्मेदारी होगी। मगर यह भ्रम था कथित आजादी का झूठा भ्रम। जिससे आम आदमी उबरने की स्थिति में अभी दिखाई नहीं देता। 

सवाल है फिर आजादी मिली किसको? जरूरतमंदों को या जो अंग्रेजी दौर में आज़ाद थे, उनको? जो अंग्रेजों के विश्वास पात्र थे। अंग्रेजी शासन को बचाने व उसे मजबूत करने के हिमायती भी थे। अंग्रेजी सेना में शामिल होकर गुलाम भारतीयों का दमन हंटर बरसाकर करते थे, या उन्हें जो जमीदारें कब्जा कर भारतीय किसानों से अवैध कर वसूलते थे। लोग चर्चा करते हैं कि अंग्रेज अपने हिमायतियों के घरों में परिवार के सदस्य की तरह रहते थे। क्या गुलामों को आजादी मिली? जो गुलाम था तन से, गुलाम था मन से और गुलाम था धन से और गुलाम था गुलामों का भी। या जो सक्षम था शरीर से, बलशाली था बल से, धनी था धन और ऐश्वर्य से। ये वही वर्ग था जिसने अंग्रेजों का विश्वासपात्र बन साठगांठ कर भारतीय किसानों का आर्थिक शोषण किया और उन्हें दीनहीन बनाये रखा। 


बस यह बेचारा दीनहीन वर्ग इस मुगालते में कथित आजादी के महासंग्राम में कूद बैठा कि आजादी की यह लड़ाई उसकी अपनी है। बाबा साहेब की दूरदृष्टिता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि गोरों के जाने के बाद देश के शोषितों को गुलामों के गुलाम आजादी और मौलिक अधिकारों से वंचित रखेंगे इसलिए मुल्क की कथित आजादी में भागीदार हुए बिना वंचितों की आजादी पर प्राथमिकता से कार्य किया। क्रान्तिकारी भगत सिंह को डर था कि गोरों के जाने के बाद कहीं पंूजीवादी काले सत्ता पर काबिज न हो जायें। वे ऐसी समाजवादी सरकार चाहते थे जिसे आजादी के पष्चात गरीबों, किसानों, मजदूरों, दलितों व नौजवानों द्वारा चलाया जाए।

अब गरीब देख रहा है कि उपर से आजादी आई तो, कहीं खजूर में तो नहीं अटक गई। आजादी के बाद तय था कि देश के निर्बल वर्ग को राजनीतिक समानता को मिल पायेगी पर आर्थिक और सामाजिक समानता उसके लिए सपना सरीखा है। नवम्बर 1949 को संविधान सभा में अन्तिम भाषण देते हुए डा0 अम्बेडकर ने कहा था कि ’’भारतीय संविधान पूंजीवादी हितों की रक्षा करने वाला दस्तावेज है जिसमें गरीबों के हित का कुछ भी नहीं है। मेरा वश चले तो मैं इससे जला डालूं’’। कविवर तुकाराम भाउ  को भी नमन, आपका शेर आज भी गरीबों को आजादी के संघर्ष की प्रेरणा दे रहा है।

’’यह आजादी झूठी है। इस देश की जनता भूखी है।।’’

(लेखक लोकतंत्र का दर्द पत्रिका के संपादक हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं, UPUKLive की सहमति आवश्यक नहीं)