जम्मू-कश्मीर की सरकारी इमारतों पर तिरंगा लहरना शुरू

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जम्मू-कश्मीर की सरकारी इमारतों पर तिरंगा लहरना शुरू

एसपी मित्तल देश के इतिहास में 25 अगस्त का दिन भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 25 अगस्त से ही जम्मू-कश्मीर की किसी सरकारी इमारत पर प्रांतीय झंडा नहीं लहरेगा। आगामी 15 दिनों में सभी सरकारी इमारतों से प्रांतीय झंडा उतार कर भारत का तिरंगा झंडा लहरा दि


जम्मू-कश्मीर की सरकारी इमारतों पर तिरंगा लहरना शुरू
एसपी मित्तल 
देश के इतिहास में 25 अगस्त का दिन भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। 25 अगस्त से ही जम्मू-कश्मीर की किसी सरकारी इमारत पर प्रांतीय झंडा नहीं लहरेगा। आगामी 15 दिनों में सभी सरकारी इमारतों से प्रांतीय झंडा उतार कर भारत का तिरंगा झंडा लहरा दिया जाएगा। 25 अगस्त को श्रीनगर स्थित सचिवालय की इमारत से प्रांतीय झंडा उतारकर तिरंगा झंडा लहर दिया गया है।

असल में सरकारी इमारतों पर दोनों झंडों का प्रावधान किया गया था, लेकिन अलगाववादियों, आतंकियों और महबूबा, उमर जैसे नेताओं के डर की वजह से सिर्फ प्रांतीय झंडा ही लहराया जाता रहा। बल्कि आतंकी तो सरेआम तिरंगे को जलाकर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते थे। लेकिन 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने और केन्द्र शासित प्रदेश बनाने के बाद जम्मू-कश्मीर में पूरी तरह भारतीय कानून लागू हो गया है। अब जम्मू-कश्मीर के झंडे का इतिहास भी खत्म हो गया है।

असल में 1952 में शेख अब्दुल्ला से समझौता करते हुए केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अलग झंडे की मांग स्वीकार की थी। तब लाल रंग पर तीन सफेद लकीर और हल जैसा नजर आने वाला प्रतीक चिन्ह बनाया गया। इस झंडे के अधीन जम्मू, कश्मीर और लद्दाख आते हैं, इसलिए तीन लकीर बनाई गई। समझौते के मुताबिक ही सरकारी इमारतों पर तिरंगे झंडे के साथ-साथ प्रांतीय झंडा भी अनिवार्य किया गया। यहां तक मंत्रियों, अफसरों आदि के चैम्बर में प्रांतीय झंडा रखना अनिवार्य किया गया। 2015 में जब भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाई, तब भाजपा ने मंत्रियों ने अपने कक्ष में प्रांतीय झंडा रखने से साफ इंकार कर दिया, लेकिन तब के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सरकारी आदेश निकाल कर सभी मंत्रियों को प्रांतीय झंडा अपने कक्ष में लगाने के लिए पाबंद किया।

हालांकि बाद में विरोध के चलते सईद को यह आदेश वापस लेना पड़ा। लेकिन सईद के निधन के बाद जब उनकी पुत्री महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनी तो कहा कि यदि अनुच्छेद 370 के साथ छेड़छाड़ की गई तो कश्मीर में तिरंगे को कांधा देने वाला नहीं मिलेगा। 25 अगस्त को लाल रंग वाला प्रांतीय झंडा दफन हो गया और सचिवालय की इमारत पर अकेला तिरंगा ही लहर रहा है। अब दो निशान दो संविधान की बात भी जम्मू-कश्मीर से समाप्त हो गई है।

मस्जिदों से अब इबादत की आवाजें
अनुच्छेद 370 के प्रभावी रहने तक कश्मीर घाटी की जिन मस्जिदों से जेहाद के ऐलान भडकाऊ बयान की आवाजें आती थीं, उन्हीं मस्जिदों से अब इबादत और दुआ की आवाजें आ रही हैं। कोई शरारती तत्व यदि मस्जिद का दुरुपयोग करने की कोशिश करता है तो मस्जिद से जुड़े लोग ही विरोध करने लगते हैं। अब मस्जिदों में सुकून के साथ नमाज पढ़ी जा रही है और शांति बनाए रखने की अपीलें भी हो रही हैं। हालांकि घाटी में अभी भी अनेक पाबंदियां लगी हुई है, लेकिन हालात लगातार सामान्य हो रहे हैं।

तो अरुण जेटली को सब पता था 
नरेन्द्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने पर जम्मू-कश्मीर में क्या बदलाव होगा, इसके बारे में पूर्व केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली को सब पता था। जेटली का 67 वर्ष की उम्र में 24 अगस्त को निधन हुआ। जेटली को श्रद्धांजलि देते हुए जम्मू-कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने कहा कि वे जम्मू-कश्मीर का गर्वनर बनने के इच्छुक नहीं थे, इसलिए जब उन्हें जम्मू-कश्मीर का गर्वनर नियुक्त किए जाने पर विचार हो रहा था तब वे जेटली के पास गए, ताकि जम्मू-कश्मीर की नियुक्ति को टाल सके। लेकिन तब जेटली ने कहा कि आपका जम्मू-कश्मीर का कार्यकाल ऐतिहासिक रहेगा। मालूम हो कि मलिक की नियुक्ति के बाद ही 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटाने का निर्णय लिया गया।