तीन तलाक़ बिल: मुस्लिम तलाकशुदा महिला के साथ न्याय नहीं बल्कि अन्याय की आशंका- मदनी
नई दिल्ली। जमीअत उलमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने तलाक़ के लेकर क़ानून के पारित होने पर चिंता व्यक्त किया है कि इस क़ानून से मुस्लिम तलाकशुदा महिला के साथ न्याय नहीं बल्कि अन्याय की आशंका है. इस कानून के तहत पीड़ित महिला का भविष्य अंधकारमय ह
नई दिल्ली। जमीअत उलमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने तलाक़ के लेकर क़ानून के पारित होने पर चिंता व्यक्त किया है कि इस क़ानून से मुस्लिम तलाकशुदा महिला के साथ न्याय नहीं बल्कि अन्याय की आशंका है. इस कानून के तहत पीड़ित महिला का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा। और उस के लिए दोबारा निकाह और नई ज़िन्दगी शुरू करने का रास्ता बिल्कुम ख़त्म हो जायेगा. इस तरह तलाक़ का असल मक़सद ही ख़त्म हो जायेगा। इसके अलावा, पुरूष को जेल जाने की सजा वस्तुतः महिला और बच्चों को भुगतनी पड़ेगी।इसके अन्य निहितार्थों को विभिन्न स्रोतों द्वारा सरकार से पूरी तरह से स्पष्ट किया जा चुका है.
इसके अलावा जिन लोगों के लिये यह कानून बनाया गया उनके प्रतिनिधियों, धार्मिक चिंतकों, विभिन्न शरीयत के कानूनी विषिषज्ञों और मुस्लिम संगठनों से कोई सुझाव नहीं लिया गया, सरकार हठधर्मी का रवैया अपनाते हुए इंसाफ और जनमत की राय को रोंदने पर आमादा नजर आती है। जो कि किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है। हम मानते हैं कि इस कानून के पीछे मुसलमानों पर किसी न किसी तरह यूनिफार्म सिविल कोड थोपने का प्रयास किया जा रहा है और इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं के इंसाफ के बजाये मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित करना है।
भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों के तहत मुसलमानों के धार्मिक और पारिवारिक मामलों में अदालतों एवं संसद को हस्तक्षेप करने का अधिकार हरगिज नहीं है। मुसलमान हर सूरत में शरीयत कानून का पालन करना अपना कर्तव्य समझता है और पालन करता रहेगा।
जमीअत सभी मुसलमानों से पुरजोर अपील करती है कि वे विशेषकर तलाक ए बिदत से पूरी तरह बचें और शरीअत के हुक्म के मुताबिक निकाह-तलाक और अन्य पारिवारिक मामलों को तय करें। घरेलू विवादों के मामले में, दीनी पंचायत के द्वारा फैसले का रास्तय अख्तियार करें और सरकारी अदालतों और मुक़दमाबाज़ी से परहेज़ करें।
इसके अलावा जिन लोगों के लिये यह कानून बनाया गया उनके प्रतिनिधियों, धार्मिक चिंतकों, विभिन्न शरीयत के कानूनी विषिषज्ञों और मुस्लिम संगठनों से कोई सुझाव नहीं लिया गया, सरकार हठधर्मी का रवैया अपनाते हुए इंसाफ और जनमत की राय को रोंदने पर आमादा नजर आती है। जो कि किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है। हम मानते हैं कि इस कानून के पीछे मुसलमानों पर किसी न किसी तरह यूनिफार्म सिविल कोड थोपने का प्रयास किया जा रहा है और इसका उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं के इंसाफ के बजाये मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित करना है।
भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों के तहत मुसलमानों के धार्मिक और पारिवारिक मामलों में अदालतों एवं संसद को हस्तक्षेप करने का अधिकार हरगिज नहीं है। मुसलमान हर सूरत में शरीयत कानून का पालन करना अपना कर्तव्य समझता है और पालन करता रहेगा।
जमीअत सभी मुसलमानों से पुरजोर अपील करती है कि वे विशेषकर तलाक ए बिदत से पूरी तरह बचें और शरीअत के हुक्म के मुताबिक निकाह-तलाक और अन्य पारिवारिक मामलों को तय करें। घरेलू विवादों के मामले में, दीनी पंचायत के द्वारा फैसले का रास्तय अख्तियार करें और सरकारी अदालतों और मुक़दमाबाज़ी से परहेज़ करें।