अपनी बुद्धि पर ज्यादा गुरूर मत करिए, आप जीरो पैदा हुए थे और जीरो ही मरेंगे...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. home

अपनी बुद्धि पर ज्यादा गुरूर मत करिए, आप जीरो पैदा हुए थे और जीरो ही मरेंगे...

नदीम अख्तर इस दुनिया में दिक्कत ये है कि हर कोई खुद को ज्ञानी-ध्यानी और इंटेलेक्चुअल दिखाने-बनने में लगा रहता है पर दरअसल ऐसा होता नहीं है। एक उन्नत सभ्यता या दिमाग की नज़र में हम सब मूर्ख और मामूली से भी निकृष्ट प्राणी माने जाएंगे। आपने कभी ज़मीन पे


अपनी बुद्धि पर ज्यादा गुरूर मत करिए, आप जीरो पैदा हुए थे और जीरो ही मरेंगे...
नदीम अख्तर
इस दुनिया में दिक्कत ये है कि हर कोई खुद को ज्ञानी-ध्यानी और इंटेलेक्चुअल दिखाने-बनने में लगा रहता है पर दरअसल ऐसा होता नहीं है। एक उन्नत सभ्यता या दिमाग की नज़र में हम सब मूर्ख और मामूली से भी निकृष्ट प्राणी माने जाएंगे।

आपने कभी ज़मीन पे चीटियों का झुंड देखा है जो एक छोटे से अन्न के टुकड़े को अपने बिल में ले जाने के लिए संग्राम छेड़े रहती हैं। आप चाहें तो पूरी चीटियों के कबीले को चुटकी में मसलकर मार सकते हैं। उन्हें देखकर आप तरस खाते हैं कि बेचारी चीटियाँ! ना तो इनके पास दिमाग है और ना शरीर। अन्न के जितने छोटे टुकड़े को उनका पूरा कबीला मिलकर सिर पे ढोता हुआ बिल की तरफ ले जाता है, आप सिर्फ फूंक मार दें तो उनके कबीले के लिए वो कोई सूनामी जैसी प्राकृतिक आपदा होगी। यानी आप कुदरत के विकास क्रम में उन चीटियों से बहुत ऊपर हैं।

अब फ़र्ज़ कीजिए कि कोई सभ्यता या जीव विकास क्रम में हम इंसानों से इतना ऊपर हो कि हम इंसानों का दिमागी और शारीरिक वजूद उनके सामने किसी चींटी जैसा ही हो। मसलन जब वे चीटियाँ अन्न के टुकड़े को मिलकर अपने बिल में ढो रही होती हैं तो उनकी सभ्यता के लिए ये एक महाभारत युद्ध जैसी स्थिति होगी कि सब मिलकर सही सलामत भोजन को बिल तक पहुंचा दें। उनके यहां इसके लिए कोई प्लैनर होगा, कोई इंजीनियर, कोई इंटेलेक्चुअल और कोई राजा। पर हम इंसानों के आगे उन चीटियों के इंटेलेक्चुअल की क्या औकात है? कुछ भी तो नहीं! वे इस कुदरत और बाकी चीजों के बारे में जानते ही क्या हैं? तो फिर एक उन्नत सभ्यता के सामने हम इंसानों, हमारे ज्ञान, हमारी बुद्धिमत्ता और साहित्य-कविता-कहानी की औकात ही क्या है?!!? ये ठीक वैसे ही है जैसे कोई चींटी अपने कबीले में बहुत बड़ी साहित्यकार हो या कवि हो या आलोचक हो या फिर इंटेलेक्चुअल हो! हम इंसानों को क्या? उनका ज्ञान और समझ हमारे किस काम का? ठीक वैसे ही हमारा ज्ञान और समझ किसी उन्नत सभ्यता के किस काम की? वो तो फूंक मारेंगे तो हम सब हवा में उड़ जाएंगे।

ये बात इसलिए कह रहा हूँ कि कुदरत में सीढ़ी के ऊपर सीढ़ी है। अगर पृथ्वी पे हम इंसान हैं तो कहीं कोई और सभ्यता भी है, जिनके सामने हमारी औकात चींटियों के बराबर हो! हो सकता है वे लोग डील-डौल में भी हम इंसानों से लाखों गुना बड़े हों, जैसे हम चींटियों के लिए हैं। और उनका ग्रह हमारी पृथ्वी से लाख गुना बड़ा हो! और उनकी तकनीक वो हो, जो ना हम जानते हैं और ना जिसके बारे में कभी सोचा है। ठीक वैसे ही, जैसे इस ग्रह की सारी चींटियों को ये पता ही नहीं होगा कि ऊपर अंतरिक्ष है, वहां सूरज और नौ ग्रह हैं और इंसान नामक प्रजाति ने चन्द्रयान जैसा कोई मिशन चांद पे भेजा है।

इसलिए ज्यादा दिखावा ना कीजिये कि आप बहुत बड़े ज्ञानी, ध्यानी, इंटेलेक्चुअल, कवि, साहित्यकार, वैज्ञानिक, पत्रकार और पता नहीं क्या-क्या हैं! वस्तुतः कुदरत के विकास क्रम में हमारा ये सारा ज्ञान किसी सभ्यता के आगे चीटियों के ज्ञान के बराबर ही आएगा। भले ही मानवों की दुनिया में हम इठलाते फिरें कि हम तो बहुत तोप चीज़ हैं। दरअसल आप कुछ नहीं हैं। समय के पदचाप पे एक कण भर की औकात भी नहीं आपकी। किसको मालूम है कि हड़प्पा की सभ्यता में कितने इंटेलेक्चुअल, साहित्यकार और पता नहीं कितने कार हुए? सब के सब मर खप गए। और उस उन्नत नागरीय सभ्यता के बाद एकदम देहाती वैदिक सभ्यता आयी, जो उनसे कोसों पिछड़ी हुआ थी और हम आप, हम सभी उस देहाती-ग्रामीण वैदिक सभ्यता के वंशज हैं। कौन जाने हम भी कब मर खप जाएं और आने वाली सभ्यता को हमारे निशान तक ना मिलें क्योंकि हड़प्पा वालों ने एटम बम नहीं बनाए थे। हमने बना लिए हैं।

इसलिए खुद पे और अपनी बुद्धि पे ज्यादा गुरूर मत करिए। आप जीरो पैदा हुए थे और जीरो ही मरेंगे। आपको अभी तक ये भी ठीक से नहीं मालूम कि चांद पे क्या है? नेप्च्यून-प्लूटो तो दूर की बात है। फिर अरबों तारे और ग्रह समेटे हमारी मिल्की वे गैलेक्सी में क्या है, उसका कण भर हम नहीं जानते। और फिर ऐसी-ऐसी अरबों गलैक्सियाँ समेटे हमारे ब्रह्मांड में क्या है, उसका तसव्वुर भी हमारे लिए मुमकिन नहीं। फिर काहे खुद के ज्ञानी होने का वहम पालते हैं। दरअसल हम सब मूर्ख हैं और इसी मूर्खता को लिए एक दिन मर जाएंगे। कुदरत की उन्नत सभ्यताओं के आगे हमारी औकात चींटी के बराबर भी ना हो शायद!
(ये लेखक के निजी विचार हैं)