यहां वैश्यावृति है लड़कियों की मजबूरी, घर के लोग ही लाते है ग्राहक

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. home

यहां वैश्यावृति है लड़कियों की मजबूरी, घर के लोग ही लाते है ग्राहक

”मेरे माता-पिता ने मुझे वेश्यावृत्ति में डाला था” ये कहना है यूपी के हरदोई जिले के नटपुरवा गांव की चित्रलेखा का, जो अब एक समाज सेविका है। कहा जाता है कि इस गांव में पिछले 300-400 सालों से अपनी बेटियों की बोली लगाई जा रही है। नटपुरवा गांव की आबादी लग


यहां वैश्यावृति है लड़कियों की मजबूरी, घर के लोग ही लाते है ग्राहक
”मेरे माता-पिता ने मुझे वेश्‍यावृत्ति में डाला था” ये कहना है यूपी के हरदोई जिले के नटपुरवा गांव की चित्रलेखा का, जो अब एक समाज सेविका है। कहा जाता है कि इस गांव में पिछले 300-400 सालों से अपनी बेटियों की बोली लगाई जा रही है। नटपुरवा गांव की आबादी लगभग चार से पांच हजार है और यहां लड़की होना गुनाह माना जाता है।
लगाई जाती है लड़कियों की बोलियां
इस गांव में लड़कियों की बोलियां और कोई नहीं बल्कि उनके अपनी ही लगाते हैं। हालांकि पिछले कई सालों से यहां के लोगों और कुछ समाज सेविकाओं की वजह से काफी बदलाव आया है। चित्रकला का कहना है कि वो समझती थीं कि उनके गांव की प्रथा यही है।
”गांव में शादी नहीं होती थी”
चित्रलेखा का कहना है, ”गांव में शादी नहीं होती थी, लोग जानते ही नहीं थे कि शादी क्या होती है।” इस गांव में लड़कियों को जबरन देह व्यापार में धकेला जाता है। यहा परंपराओं की बेड़ियां इतनी मजबूत हैं कि लड़कियों को ये सब मानना करना पड़ता है।
गांव के लड़कों पर भी पड़ता है असर
चंद्रलेखा का कहना है कि इस प्रथा का असर गांव के लड़कों पर भी पड़ता है क्योंकि उन्हें अपनी बहनों के लिए ग्राहक लाने पड़ते हैं। वनइंडिया  के अनुसार चंद्रलेखा का कहना है कि वो चाहती हैं कि उनके गांव में सबसे पहले ये प्रथा खत्म हो जाए।
गांव का विकास चाहती हैं लड़कियां
गांव की एक लड़की का कहना है, ”वो चाहती है कि गांव में विकास हो और गांव की लड़कियां पढ़ें। पढ़ाई से ही यहां के लोगों में जागरुकता आएगी।” चित्रलेखा का भी मानना है कि उनके गांव में शिक्षा की कमी है, जिसके कारण यहां की लड़कियों को इतनी मुश्किलों का सामना करना पढ़ रहा है।
गांव में एक स्कूल है
गांव के हालात को सुधारने के लिए चित्रकला काफी काम कर रही हैं। शिक्षा के लिए गांव में एक प्राथमिक स्कूल भी है जो चंद्रलेखा की ही देन है। कुछ साल पहले जिलाधिकारी ने उनसे पूछा कि उनकी क्या मांग है तो उन्होंने प्राथमिक विद्यालय की मांग की, जिसके बाद गांव में स्कूल बन गया।