इस दरगाह में हिन्दू भी करते हैं खिदमत, मिल-जुलकर रहते हैं अलग-अलग धर्मों के लोग
भारत देश को सर्वपंथ समादर वाला देश माना जाता है, जहां सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। लेकिन भारत की भोली जनता के बहकावे में आने के कारण देश मे कई लोग धर्म भेदभाव को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन देश की एकता को हिला पाना इतना आसान नहीं हैं। इसका एक उ
भारत देश को सर्वपंथ समादर वाला देश माना जाता है, जहां सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। लेकिन भारत की भोली जनता के बहकावे में आने के कारण देश मे कई लोग धर्म भेदभाव को बढ़ावा दे रहे हैं। लेकिन देश की एकता को हिला पाना इतना आसान नहीं हैं।
इसका एक उदहारण आज हम आपको बताने जा रहे हैं जहां दरगाह में हिन्दू धर्म क्र लोग खिदमत करते हैं। जी हाँ यह दरगाह है अजमेर में जहां पर मंदिर भी है तो मस्जिद भी और गुरुद्वारा भी। इस बारगाह से सिर्फ एक ही पैगाम निकलता है भाईचारे का।
पहाडिय़ों के बीच बसी ये खूबसूरत दरगाह बाबा बादाम शाह की है। ख़बरों के अनुसार बाबा बादाम शाह सन् 1921 में यूपी से अजमेर आए थे। बाबा जब अपने वालिद के गांव में सरकारी नौकरी किया करते थे, तभी से ही उनके दिल में पीर फकीरों और साधु-महात्माओं की तरह जिंदगी बसर करने का जज्बा था। जब उनका ये जज्बा उनकी बहन को पता चला तो उन्होंने इनकी मदद की और इनको अपनी जिंदगी अपने तरीके से बसर करने के लिए कह दिया। तब बाबा अपना सबकुछ छोड़कर निकल पड़े।
बाबा खुद मुसलमान थे, लेकिन जब वो घर से निकले तो सबसे पहले जिस शख्स से इनकी मुलाकात हुई वो हिन्दू थे और यही वजह रही की इनके दिल में कभी भी जाति और मजहब का ख्याल नहीं आया। बाबा ने सिर्फ एक मकसद चुना और वो था भाईचारे और इंसानियत का। बाबा बादाम शाह जब अजमेर आए तो उनको यहां एक पीर मिले जिन्होंने बाबा को सोमलपुर गांव भेजा और वहीं रहकर इबादत करने के लिए कहा। पीर की बात मानते हुए बाबा ने कई सालों वहां रहकर इबादत की और 1964 में इसी जगह को उन्होंने अपना आशियाना बना लिया। जब बाबा वहां दिन बसर करने लगे तो गांवों के कई लोग उनके पास आते थे जिसमें सभी कोमों के लोग शामिल थे।
यहां एक ऐसी जगह बनाई गई है जहां पर किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं रहा। यही वजह है कि इस एक ही जगह पर आपको मंदिर और मस्जिद एक साथ मिलेंगे। जहां नमाज और आरती एक साथ देखने को मिलेगी, साथ ही यहां आने वाले जायरीन और श्रद्धालु सभी धर्मों के देखे जा सकते हैं। इस दरगाह की यही खास बात है कि यहां के पुजारी और खिदमत करने वाले हिन्दू हैं, लेकिन यहां जुड़े और लोग भी हैं जो सभी मजहब से हैं। यहां पर हर साल बाबा का उर्स मनाया जाता है और उस दिन यहां सभी श्रद्धालु प्रसाद पाकर अपने आप को खुश नसीब मानते हैं।
अकीदमंदों का हुजूम दूर-दराज से चादर पेश करने पहुंचते हैं। सूफियाना कलामों के साथ मजार शरीफ पर चादर पेश कर दुआएं मांगी जाती हैं। यह एक ऐसा मुकाम है जहां जाति धर्म के भेदभाव को नकारा जाता है और सभी इस दर पर आते हैं और उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। दरगाह से जुड़े अकीदतमंद जब इस जगह आते हैं तो उनका कहना है कि जो सुकून दुनिया में कहीं नहीं है वो उन्हें यहां आकर मिलता है और वो ये भी मानते हैं कि दुनिया की ये पहली जगह है जहां पर मंदिर और मस्जिद एक जगह पर हैं।
इसका एक उदहारण आज हम आपको बताने जा रहे हैं जहां दरगाह में हिन्दू धर्म क्र लोग खिदमत करते हैं। जी हाँ यह दरगाह है अजमेर में जहां पर मंदिर भी है तो मस्जिद भी और गुरुद्वारा भी। इस बारगाह से सिर्फ एक ही पैगाम निकलता है भाईचारे का।
पहाडिय़ों के बीच बसी ये खूबसूरत दरगाह बाबा बादाम शाह की है। ख़बरों के अनुसार बाबा बादाम शाह सन् 1921 में यूपी से अजमेर आए थे। बाबा जब अपने वालिद के गांव में सरकारी नौकरी किया करते थे, तभी से ही उनके दिल में पीर फकीरों और साधु-महात्माओं की तरह जिंदगी बसर करने का जज्बा था। जब उनका ये जज्बा उनकी बहन को पता चला तो उन्होंने इनकी मदद की और इनको अपनी जिंदगी अपने तरीके से बसर करने के लिए कह दिया। तब बाबा अपना सबकुछ छोड़कर निकल पड़े।
बाबा खुद मुसलमान थे, लेकिन जब वो घर से निकले तो सबसे पहले जिस शख्स से इनकी मुलाकात हुई वो हिन्दू थे और यही वजह रही की इनके दिल में कभी भी जाति और मजहब का ख्याल नहीं आया। बाबा ने सिर्फ एक मकसद चुना और वो था भाईचारे और इंसानियत का। बाबा बादाम शाह जब अजमेर आए तो उनको यहां एक पीर मिले जिन्होंने बाबा को सोमलपुर गांव भेजा और वहीं रहकर इबादत करने के लिए कहा। पीर की बात मानते हुए बाबा ने कई सालों वहां रहकर इबादत की और 1964 में इसी जगह को उन्होंने अपना आशियाना बना लिया। जब बाबा वहां दिन बसर करने लगे तो गांवों के कई लोग उनके पास आते थे जिसमें सभी कोमों के लोग शामिल थे।
यहां एक ऐसी जगह बनाई गई है जहां पर किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं रहा। यही वजह है कि इस एक ही जगह पर आपको मंदिर और मस्जिद एक साथ मिलेंगे। जहां नमाज और आरती एक साथ देखने को मिलेगी, साथ ही यहां आने वाले जायरीन और श्रद्धालु सभी धर्मों के देखे जा सकते हैं। इस दरगाह की यही खास बात है कि यहां के पुजारी और खिदमत करने वाले हिन्दू हैं, लेकिन यहां जुड़े और लोग भी हैं जो सभी मजहब से हैं। यहां पर हर साल बाबा का उर्स मनाया जाता है और उस दिन यहां सभी श्रद्धालु प्रसाद पाकर अपने आप को खुश नसीब मानते हैं।
अकीदमंदों का हुजूम दूर-दराज से चादर पेश करने पहुंचते हैं। सूफियाना कलामों के साथ मजार शरीफ पर चादर पेश कर दुआएं मांगी जाती हैं। यह एक ऐसा मुकाम है जहां जाति धर्म के भेदभाव को नकारा जाता है और सभी इस दर पर आते हैं और उनकी मन्नतें पूरी होती हैं। दरगाह से जुड़े अकीदतमंद जब इस जगह आते हैं तो उनका कहना है कि जो सुकून दुनिया में कहीं नहीं है वो उन्हें यहां आकर मिलता है और वो ये भी मानते हैं कि दुनिया की ये पहली जगह है जहां पर मंदिर और मस्जिद एक जगह पर हैं।