जानिए नागा साधू और साध्वियों के बीच क्या है फर्क, ऐसे बनती हैं नागा साध्वी...
प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत हो गई है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने पहुंच चुके हैं. ये मेला रंगो और रहस्यों का मेला है. इस मेले में आपको 14 अखाड़ों के साधु, संत और किन्नर समाज देखने को मिलेंगे. इन्हीं में से एक है महिला ना
प्रयागराज में कुंभ मेले की शुरुआत हो गई है. लाखों की संख्या में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने पहुंच चुके हैं. ये मेला रंगो और रहस्यों का मेला है.
इस मेले में आपको 14 अखाड़ों के साधु, संत और किन्नर समाज देखने को मिलेंगे. इन्हीं में से एक है महिला नागा साध्वियां. इनके बारे में कम ही जानने को मिलता है. जानिए इनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें
नागा साध्वियों का जीवन कठिनाईयों से भरा होता है. अगर कोई महिला नागा साधू बनना चाहती है तो उसको 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. यानि गृहस्थी और मोह माया को छोड़कर सिर्फ भगवान की अराधना करनी होती है. उस महिला को अपने परिवार का त्याग कर साध्वी का जीवन जीना होता है. इसके बाद नागा साधू उसे नागा साध्वी बनने की इजाजत दे देते हैं.
जब वो साध्वी बनने के लिए तैयार होती है उसके बाद उस महिला के बाल छिलवाए जाते हैं. यहां तक कि जिंदा रहते हुए उसे अपनी पिछली जिंदगी छोड़ने के लिए अपना पिंड दान करना होता है. नागा साधू जिस तरह का जीवन जीते हैं वैसे ही नागा साध्वी को भी जीना होता है.
बस इनमें एक फर्क है वो है कपड़े. नागा साधू जहां एक भी कपड़ा अपने शरीर पर नहीं रखते वहीं नागा महिला साध्वी सिर्फ गेरुए रंग के कपड़े से अपना शरीर ढकती हैं.
इस मेले में आपको 14 अखाड़ों के साधु, संत और किन्नर समाज देखने को मिलेंगे. इन्हीं में से एक है महिला नागा साध्वियां. इनके बारे में कम ही जानने को मिलता है. जानिए इनसे जुड़ी कुछ रोचक बातें
नागा साध्वियों का जीवन कठिनाईयों से भरा होता है. अगर कोई महिला नागा साधू बनना चाहती है तो उसको 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. यानि गृहस्थी और मोह माया को छोड़कर सिर्फ भगवान की अराधना करनी होती है. उस महिला को अपने परिवार का त्याग कर साध्वी का जीवन जीना होता है. इसके बाद नागा साधू उसे नागा साध्वी बनने की इजाजत दे देते हैं.
जब वो साध्वी बनने के लिए तैयार होती है उसके बाद उस महिला के बाल छिलवाए जाते हैं. यहां तक कि जिंदा रहते हुए उसे अपनी पिछली जिंदगी छोड़ने के लिए अपना पिंड दान करना होता है. नागा साधू जिस तरह का जीवन जीते हैं वैसे ही नागा साध्वी को भी जीना होता है.
बस इनमें एक फर्क है वो है कपड़े. नागा साधू जहां एक भी कपड़ा अपने शरीर पर नहीं रखते वहीं नागा महिला साध्वी सिर्फ गेरुए रंग के कपड़े से अपना शरीर ढकती हैं.