राहुल ने अपनाया दादी का 5 दशक पुराना गरीबी हटाओ नुस्खा

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

  1. Home
  2. home

राहुल ने अपनाया दादी का 5 दशक पुराना गरीबी हटाओ नुस्खा

देश में गरीबी हटाओ के नारे तो खूब लगे। इस अभिशाप से मुक्त होने केलिए गरीबों ने जम कर वोट भी दिए, मगर सत्ता देश को गरीबी मुक्त नहीं कर पाई। बीते पांच दशक में कांग्रेस ने दूसरी बार इस नारे का सहारा लिया। इन पांच दशकों में करीब तीन दशक तक प्रत्यक्ष तो


राहुल ने अपनाया दादी का 5 दशक पुराना गरीबी हटाओ नुस्खादेश में गरीबी हटाओ के नारे तो खूब लगे। इस अभिशाप से मुक्त होने केलिए गरीबों ने जम कर वोट भी दिए, मगर सत्ता देश को गरीबी मुक्त नहीं कर पाई। बीते पांच दशक में कांग्रेस ने दूसरी बार इस नारे का सहारा लिया। इन पांच दशकों में करीब तीन दशक तक प्रत्यक्ष तो ढाई साल तक उसकी समर्थन वाली सरकार केंद्र की सत्ता में रही। मगर गरीबी के मोर्चे पर पार्टी कोई बड़ा कमाल नहीं दिखा पाई। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या दादी (इंदिरा गांधी) का गरीबी हटाओ के नारे का चुनावी नुस्खा पौत्र (राहुल गांधी) के काम आएगा।
साल 1971 में पीएम बनने केबाद अपने पहले चुनाव में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दे कर लोकसभा की 518 सीटों में से 352 सीटें हासिल कर प्रचंड जीत हासिल की थी। तब देश में गरीबी की दर 57 फीसदी होने के कारण मतदाताओं ने इस नारे को हाथों हाथ लिया था। हालांकि यह और बात है कि इसके अगले छह साल तक इंदिरा सरकार महज 5 फीसदी ही गरीबी कम कर पाई। अब बीते आम चुनाव में अब तक की सबसे करारी हार झेलने वाली कांग्रेस ने चुनावी वैतरणी पार करने केलिए न्यूनतम आय गारंटी के वादे के तहत न्याय योजना के जरिए पांच  दशक बाद गरीबी हटाओ के नारे के शरण में जाने का फैसला किया है।
इस क्रम में वर्ष 1971 के इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ के नारे के बाद की स्थिति पर निगाह डालें तो स्थिति बेहद निराशाजनक है। इसके शुरुआती छह साल में गरीबी दर 57 फीसदी से 52 फीसदी ही नीचे आ पाई। इसके बाद जनता पार्टी के तीन साल और वर्ष 1980 में इंदिरा गांधी के शुरुआती तीन सालों, वर्ष 1983 तक गरीबी दर 44 फीसदी पर आई। अगले चार सालों मे वर्ष 1987 तक इसमें 5 फीसदी की कमी आई। वर्तमान में देश की गरीबी दर 27.5 फीसदी है। खासबात यह है कि वर्ष 1987 से 2018 तक के 31 के कार्यकाल में भी 13 साल कांग्रेस की तो करीब तीन साल कांग्रेस की समर्थन वाली सरकार केंद्र में थी।
गरीबी अन्मूलन के सवाल पर साल 1971 से अब तक के सफर पर निगाह दौड़ाएं तो स्थिति बेहद निराशाजनक है। बीते करीब पांच दशक में गरीबी दर में करीब 30 फीसदी की कमी आई है। देश में इस समय भी गरीबी दर वर्ष 1971 के 57 फीसदी के मुकाबले 27.5 फीसदी पर कायम है। खासबात यह है इस दौरान 30 साल तक सत्ता की कमान कांग्रेस के हाथ में रही। जबकि करीब ढाई साल (चंद्रशेखर सरकार और राष्टï्रीय मोर्चा) की सरकार को कांग्रेस का बाहर से समर्थन हासिल था।
किसान से गरीबी पर पहुंची लड़ाई
भाजपा और कांग्रेस के बीच बीते साल किसान के सवाल पर सियासी जंग शुरू हुई जो अब गरीबी हटाने तक पहुंच गई। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में राहुल ने किसान ऋण माफी का दांव आजमाया। यह सिलसिला मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान के चुनाव तक चला। राहुल की सियासी चाल की काट में मोदी सरकार ने आम बजट में किसान सम्मान योजना के तहत किसान को हर साल छह हजार रुपये देने की घोषणा की। इसके बाद राहुल ने न्यूनतम आय गारंटी केतहत 5 करोड़ परिवार की आमदनी हर हाल में 12 हजार रुपये प्रतिमाह करने की घोषणा की। अब देखना होगा कि भाजपा इसके जवाब में क्या रणनीति अपनाती है।
2030 तक गरीबी खत्म
हालांकि इसी बीच अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक अगर देश का विकास दर सात-आठ फीसदी पर कायम रहा तो वर्ष 2030 तक देश में गरीबी खत्म हो जाएगी। इसी संस्था ने दावा किया था कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में प्रतिघंटे 2640 लोग गरीबी से मुक्त हो रहे हैं।