फ़िल्में न मिलने पर कभी ढाबे पर ऑमलेट और चाय बनाने लगे थे संजय मिश्रा

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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फ़िल्में न मिलने पर कभी ढाबे पर ऑमलेट और चाय बनाने लगे थे संजय मिश्रा

छोटे पर्दे से अपने करियर की शुरुआत कर ऑफिस ऑफिस, सत्या, ऑल द बेस्ट और धमाल से धमाल मचाने वाले संजय मिश्रा जमीन से जुड़े कलाकार हैं। बात उन दिनों की है जब उनके पिता उन्हें हमेशा के लिए छोड़ के चले गए। पिता के जाने के बाद बिलकुल अकेले पड़ गए थे। पेट म


फ़िल्में न मिलने पर कभी ढाबे पर ऑमलेट और चाय बनाने लगे थे संजय मिश्रा
छोटे पर्दे से अपने करियर की शुरुआत कर ऑफिस ऑफिस, सत्या, ऑल द बेस्ट और धमाल से धमाल मचाने वाले संजय मिश्रा जमीन से जुड़े कलाकार हैं। बात उन दिनों की है जब उनके पिता उन्हें हमेशा के लिए छोड़ के चले गए। पिता के जाने के बाद बिलकुल अकेले पड़ गए थे। पेट में पस पड़ गया था और उसकी सर्जरी करवा घर बार सब छोड़ दिया।

फ़िल्में न मिलने पर कभी ढाबे पर ऑमलेट और चाय बनाने लगे थे संजय मिश्रा
सबकुछ भूलने के लिए संजय ने ऋषिकेश जाना बेहतर समझा। वहां जाकर एक ढाबे पर ऑमलेट बनाने लगे। दिन में 50 चाय के कप धोने पर 150 रुपए दिए जाते। मिश्रा ने ठान लिया था कि अब आगे की जिंदगी ऐसे ही काटेंगे। तभी गोलमाल के बाद अपनी ऑल दी बेस्ट के लिए रोहित शेट्टी ने संजय मिश्रा की तलाश शुरू की। संजय उन्हें ऋषिकेश में मिले, बहुत मनाने के बाद वो बॉलीवुड में वापिस आए।

संजय मिश्रा का कहना है कि डायरेक्टरों के पास जा जा कर काम मांगना और बड़ा पाव खाना स्ट्रगल नहीं है। ये तो जिंदगी का हिस्सा है। मैं कभी पेड मीडिया का शिकार नहीं हुआ। मेरे स्ट्रगल में शामिल है कि मैंने कोई भी ऐसा वैसा रोल नहीं किया क्योंकि मैं अपनी शर्तों पर काम करना चाहता था।

फ़िल्में न मिलने पर कभी ढाबे पर ऑमलेट और चाय बनाने लगे थे संजय मिश्रा

मसान, न्यूटन औऱ कड़वी हवा से संजय मिश्रा ने साबित कर दिया कि एक कलाकार फिल्म में अगर हंसा सकता है तो रुला भी सकता है। उसकी काबिलियत किसी 100 करोड़ या 200 करोड़ क्लब की मोहताज नहीं होती। लोगों तक उसका हुनर पहुंच ही जाता है।

संजय के जन्मदिन पर उनके बारे में ये खास बातें जानने के बाद उनकी इज्जत और बढ़ गई है। ना जाने और कितनी ही फिल्में हैं जिनके बारे में बात करना जरूरी है लेकिन अभी संजय के बारे में ये अनसुने किस्से जानना जरूरी था।