समस्या का अंत नहीं है ‘आत्महत्या’

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समस्या का अंत नहीं है ‘आत्महत्या’

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर विशेष | faizan@upuklive.com प्रतिवर्ष अनेकों जिंदगी हालात से हारकर मौत के आगोश में समा रही हैं। क्षेत्र में कुछ ही माह में हुई दर्जनों आत्महत्याएं बेहद अफसोसजनक हैं। कमजोर पड़ते रिश्ते, आर्थिक संकट, आपसी कलह से न जाने क


समस्या का अंत नहीं है ‘आत्महत्या’विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर विशेष | faizan@upuklive.com
प्रतिवर्ष अनेकों जिंदगी हालात से हारकर मौत के आगोश में समा रही हैं। क्षेत्र में कुछ ही माह में हुई दर्जनों आत्महत्याएं बेहद अफसोसजनक हैं। कमजोर पड़ते रिश्ते, आर्थिक संकट, आपसी कलह से न जाने कितनी जाने यूं ही जा रही हैं।

‘विश्व आत्महत्या दिवस’ पर आइये संकल्प लेते हैं कि आत्महत्याओं को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे। यकीनन मुश्किल होगा, लेकिन असंभव तो नहीं।

अस्थाई समस्याओं के आगे घुटने टेक कर मौत के आगोश में समा जाने को समस्याओं से निजात समझा जा रहा है। तमाम युवा प्रति वर्ष अपनी जीवन लीला स्वयं ही समाप्त रह रहे हैं। विदेशों में आत्महत्याओं को रोकने के तमाम प्रयास कि ए जा रहे हैं। लेकिन अपने देश में इस प्रकार की कोई पहल  दिखाई नहीं देती है। यहां तमाम महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार होकर भी मौत को गले लगा लेती हैं। 10 सितम्बर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस पर पेश है ‘UPUKLive’ की विस्तृत रिपोर्ट।

किशोरों, युवा व बुजुर्गों के  आत्महत्या करने और आत्महत्या के कारणों की संख्या दुनिया में दिन ब दिन बढ़ रही है। ऋण, बीमारियों, टूटे रिश्ते, परीक्षा में असफलता, मादक द्रव्यों के सेवन आदि कारणों से आत्महत्या की ढेरों घटनाएं हम देख चुके हैं। तलाक, दहेज, प्रेम संबंधों या अतिरिक्त वैवाहिक संबंधों के कारण भी न जाने कितने लोग जिंदगी से हारकर मौत के आगोश में समा रहे हैं। आत्महत्या इंसान का व्यक्तिगत फैसला है, लेकिन क्या इस पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता।

आए दिन घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं आत्महत्या कर रहीं है। वहीं गरीबी व बेरोजगारी से तंग आकर भी लोग मौत को गले लगा रहे हैं। इन समस्याओं को समाप्त करने के प्रयास होने चाहिए। शासन बेरोजगारी पर अंकुश लगाने के प्रयास तेज करे। छात्र-छात्राओं को भी मानसिक रूप से स्वस्थ बनाया जाए ताकि कोई अपनी जिंदगी से हारकर मौत को गले न लगाए। आत्महत्या की अधिकांश घटनाओं में मानसिक रूप से अस्वस्थ होना ही पाया गया है। जबकि डिप्रेशन का शिकार होकर भी इंसान आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।

आखिर कब तक चढ़ाऐंगे मासूमों की भेंट   
फेल होने पर फांसी पर झूला छात्र, परीक्षा की टेंशन ने ली जान, नम्बर कम आने पर मौत को लगाया गले... ऐसे समाचार अक्सर देखने को मिल जाते हैं। पढ़ाई में असफल छात्र-छात्राएं थक-हार कर मौत को गले लगाना उचित समझ रहे हैं। अभिभावक अपने मासूम बच्चों से अत्यधिक उम्मीद रखने लगे हैं व बड़े-बड़े सपने पूरे करने का बोझ उन पर डाल रहे हैं। परीक्षा में असफल हो जाने या कम नम्बर आने पर मासूम मौत की नींद सो जाते हैं। यूपी बोर्ड ने पिछले कुछ वर्षों में परीक्षा पैटर्न बदलकर इसमें काफी हद तक राहत दी है। लेकिन अब भी हर वर्ष रिजल्ट आते ही बच्चों के आत्महत्या करने की खबरें आ रही हैं।

थ्री इडियत, फालतू जैसी फिल्में छात्रों की इसी दुखती रग के उपर ही बनायी गयी थीं। फिल्में चलीं तो बहुत, लेकिन फिल्मों द्वारा दिए गए संदेश पर कोई ध्यान ही नहीं दिया गया। छात्र-छात्राएं डिवीजन व परसेंटेज की दौड़ में अपना जीवन भूल चुके हैं। अब स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा की जगह पास होने और भीड़ में रेस के घोड़े की तरह दौड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। अभिभावक बच्चों से बड़ी-बड़ी उम्मीदें रखते हैं। कुछ बच्चे अभिभावकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते और मौत को गले लगा लेते हैं। प्रति वर्ष अनेक मासूम मात्र परीक्षा के डर, कम नम्बर आने और फेल हो जाने के कारण आत्महत्या कर लेते हैं। क्या इस पर रोक नहीं लगायी जा सकती। बदलाव होना जरूरी है, मासूमों की हो रहीं मौतों को रोकना ही होगा। बदलाव जरूर होगा, जिस दिन दूसरों को बदलने से पहले खुल में बदलाव के  प्रयत्न किए जाएंगे।

क्या है ‘विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस’ 
10 सितंबर 2003 को पहली बार विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस डब्ल्यूएचओ और अंतर्राष्ट्रीय आत्महत्या हस्तक्षेप एसोसिएशन द्वारा नामित दिन है। पहली बार विश्व आत्महत्या दिवस बीजिंग में मनाया गया था। बीजिंग में परामर्श गतिविधि इस गंभीर समस्या की ओर ध्यान आकृष्ट करने के उद्देश्य से बीजिंग मनोवैज्ञानिक अनुसंधन और हस्तक्षेप केन्द्र द्वारा आयोजित की गयी थी। जिसमें मनोरोग विज्ञान के क्षेत्र, मानसिक स्वास्थ्य आदि पर कई सौ बीजिंग नागरिकों के लिए परामर्श सेवाएं मौके पर उपलब्ध करायी गयी थी। इस दौरान किशोर मुद्दों में प्रसिद्ध दर्जनों विशेषज्ञ उपस्थित रहे थे। तब से विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस प्रत्येक वर्ष 10 सितम्बर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। जिसमें आत्महत्या पर अंकुश लगाने के कई तरह से प्रयास किए जाते हैं। लेकिन अफसोस अपने देश में अधिकांश लोग इस दिन को जानते भी नहीं हैं।

आत्महत्या है एक क्राइम
भारत में आत्महत्या का प्रयास एक दंडनीय अपराध है। भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के अनुसार जो आत्महत्या करने का प्रयास करता है या किसी को आत्महत्या के लिए उकसाता है। उसे एक वर्ष तक की कारावास, आर्थिक दंड अथवा दोनों हो सकते हैं।