भू-विस्थापितों की पदयात्रा, हजारों ने दी कलेक्ट्रेट पर दस्तक

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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भू-विस्थापितों की पदयात्रा, हजारों ने दी कलेक्ट्रेट पर दस्तक

कोरबा। दो दिन पूर्व आंधी-तूफान से मची तबाही भी उन्हें नहीं रोक पाई. दरअसल उनकी जिंदगी में इससे बड़ा तूफान सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से आ गया है, जिसमें उसने पांच माह के अंदर वन भूमि पर बसे एक करोड़ आदिवासियों को बेदखल करने का राज्य सरकारों को आदेश दिया


भू-विस्थापितों की पदयात्रा, हजारों ने दी कलेक्ट्रेट पर दस्तककोरबा। दो दिन पूर्व आंधी-तूफान से मची तबाही भी उन्हें नहीं रोक पाई. दरअसल उनकी जिंदगी में इससे बड़ा तूफान सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश से आ गया है, जिसमें उसने पांच माह के अंदर वन भूमि पर बसे एक करोड़ आदिवासियों को बेदखल करने का राज्य सरकारों को आदेश दिया है. इस आदेश के कारण छत्तीसगढ़ के  25 लाख आदिवासियों के जीवन में भी संकट मंडरा रहा है. इस आदेश की गूंज पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ और कोरबा में भी हो रही है और वाम जनसंगठनों -- छत्तीसगढ़ किसान सभा,  जनवादी नौजवान सभा और जनवादी महिला समिति के नेतृत्व में हजारों किसान आज सड़कों पर उतर आए.

एसईसीएल के पुनर्वास ग्राम गंगानगर से जो पदयात्रा निकली, वह जहां से गुजरी, लोग उसमें स्वतःस्फूर्त ढंग से शामिल होते गए और कोरबा कलेक्टोरेट पर हजारों आदिवासियों, किसानों, नौजवानों और महिलाओं ने दस्तक दी. वे सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अपास्त करने के लिए अध्यादेश लाने की मांग कर रहे थे, वे एसईसीएल और अन्य उद्योगों द्वारा अधिग्रहित, लेकिन बेकार पड़ी अपनी जमीन की वापसी की मांग कर रहे थे, वे भू-विस्थापितों के पूर्ण पुनर्वास और रोजगार की मांग कर रहे थे. पदयात्रियों की यह भी मांग थी कि आदिवासी वनाधिकार कानून व भूमि अधिग्रहण कानून को शब्द और भावना के साथ उसके सही अर्थों में लागू किया जाए, खनिज न्यास निधि को खनन से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित गांवों के विकास पर ही खर्च किया जाए और शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में भू-विस्थापितों को प्राथमिकता दी जाए. कलेक्टर को आश्वासन देना पड़ा कि उनकी 8 सूत्रीय मांगों पर शीघ्र ही आंदोलनकारी नेताओं से एक सप्ताह के भीतर बातचीत कर समस्या का हल निकाला जाएगा. पदयात्री इस आश्वासन के साथ वापस तो चले गए, लेकिन इस घोषणा के साथ कि संवाद नहीं हुआ, तो अबकी बार कलेक्टोरेट से मुख्यमंत्री निवास को घेरने रायपुर कूच किया जाएगा. 

छत्तीसगढ़ किसान सभा ,जनवादी नौजवान सभा और जनवादी महिला समिति के सपुरन कुलदीप, प्रशांत झा, सुखरंजन नंदी, राकेश चौहान, जनक दास कुलदीप, एस एन बेनर्जी, देवकुमारी कंवर, सोनु राठोर,  रूद्रदास, सोनकुंवर, टी सी सूरज , शुकवारा बाई, नंदलाल, मुकेश, रूद्र दास , कीर्ति कंवर, करण बाई , रामप्रसाद, मनीराम महिलांगे, दीपक साहू, धरम सिंह कंवर, बाबूसिंह, राधे श्याम ,प्रभु, ललित महिलांगे, प्रेमसिंह कंवर, जवाहर सिंह ,सुराज सिंह दिलहरण बिंझवार, तेरस बाई, शिवरतन ,मोहपाल, मुन्ना बाई, समारसिंघ , हुसेन अली आदि के नेतृत्व में सुबह से निकले पदयात्री 25 किमी. चलकर शाम को जब कोसाबाड़ी पहुंचे, तो  प्रशासन ने उन्हें वहीं रोक लिया, जहां उन्होंने आमसभा करके विस्तार से आम जनता को अपनी मांगों से अवगत कराया.

सभा को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव बादल सरोज ने कहा कि विस्थापन के पीछे एक बड़ा षडयंत्र है ।  सरकारें, खासतौर से मोदी सरकार हिन्दुस्तानियों के भारत को कार्पोरेट कम्पनियो के इंडिया मे बदल देना चाहती है । उन्हे जंगलों से खदेड़ने के लिये नित नई साजिशें रची जा रही हैं - वही पुनर्वास के नाम पर उनके साथ क्रूर मजाक किया जा रहा है । इनका रास्ता एकजुट मुकाबले से ही किया जा सकता है । जहां जहां किसान एकता का मजबूत डण्डा और लाल झण्डा लेकर लड़े है वहां जीते हैं । उन्होने कहा कि आश्वासन पूरे नही हुये तो लड़ाई और तीखी होगी। इसके लिये दो काम उन्होने जरूरी बताये, एक मजबूत चट्टानी एकता दूसरी लोकसभा चुनाव मे कार्पोरेट परस्त सरकार को हराना ।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते* ने एक करोड़ से अधिक आदिवासियों के उनके मूल निवास वनो से बाहर निकालने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हैरतनाक और मनुष्यता विरोधी बताया । उन्होने कहा कि पूरी साल भर तक केंद्र सरकार का वकील पेश नही हुआ । इसका मतलब है कि मोदी सरकार खुद चाह्ती थी कि भूमि आदिवासियों से खाली हो और उन्हे वह अपने चहेते कार्पोरेट घरानो को दे सके । इस मामले मे छग सरकार की लापरवाही की भी उनहोंने आलोचना की साथ ही मांग की कि तुरंत एक अध्यादेश लाकर इस एतिहासिक अन्याय को सुधारा जाये। जनवादी महिला समिति की राज्य अध्यक्ष धन बाई कुलदीप ने कोरबा जिले में विस्थापित किसानों की समस्या पर बात रखी. माकपा के कोरबा जिला सचिव सपूरन कुलदीप ने कलेक्टर से हुई वार्ता का विस्तृत ब्यौरा जनता के बीच रखा. सभा को प्रशांत झा, सुखरंजन नंदी, जनकदास कुलदीप आदि नेताओं ने भी संबोधित किया.

वाम संगठनों की इस पदयात्रा को भू-विस्थापितों के अनेकों संगठनों का समर्थन प्राप्त हुआ है और उनके नेताओं ने इसमें शिरकत की है. इस पदयात्रा को मिली सफलता के बाद जिले में आदिवासियों और भू-विस्थापितों का आंदोलन और तेज होने की संभावना बढ़ गई है.