हजरते खदीजा बनीं पहली मुस्लिम महिला, पैगम्बर मोहम्मद की पहली बीवी के बारे में जानिए

मोहम्मद आमिल
छठी सदी… तब इस्लाम की कोई शुरुआत नहीं हुई थी. उस दौर में अरब में दो पहाड़ों के बीच बसा एक शहर मक्का. यहां के कुरैश कबीले में एक धनी कारोबारी खुवैलद-बिन-असद के घर एक बेटी का जन्म हुआ. नाम रखा ‘खदीजा’. बड़े होने पर वालिद (पिता) की मौत के बाद उनका पूरा कारोबार उन्होंने खुद संभाला. उनके ऊंटों के काफिले व्यापार के सिलसिले से दक्षिणी यमन से लेकर सीरिया की ओर जाते थे. वह व्यापार करने में काफी माहिर थीं. वह अपने कर्मचारियों का खुद चयन करतीं. काफिले रवाना होने और उनके आगमन तक वह उनका हाल जानती थीं.
मक्का की सबसे मालदार शख्सियत
हजरते खदीजा मक्का की सबसे मालदार शख्सियत थीं. पूरे मक्का में उनका बड़ा सम्मान था. अल्लामा अब्दुल मुस्तफा आजमी अपनी किताब सीरते मुस्तफा में लिखते हैं कि हजरते खदीजा से शादी के लिए कई प्रस्ताव आए. उसके बाद उन्होंने अबू-हाला बिन जरारह तमीमी से शादी की, लेकिन शौहर (पति) का इंतकाल हो गया. फिर उन्होंने दूसरी शादी अतीक बिन आबिद मख्जूमी से की और इनका भी इंतकाल हो गया. उसके बाद उन्होंने फिर कभी शादी न करने का फैसला लिया. हजरते खदीजा की उम्र 40 साल की हुई. उस बीच उन्होंने अपने व्यापारिक काफिले में एक 25 साल के नौजवान लड़के को देखा. वह काफी ईमानदार और मेहनती थे. एक दिन हजरते खदीजा ने उन्हें अपने काफिले के लिए चुन लिया.
हजरत मोहम्मद से निकाह
जब काफिला वापस आया तो हजरते खदीजा उन नौजवान लड़के की इमानदारी और अख़लाक़ से इतना प्रभावित हुईं, उन्होंने उनके साथ निकाह का प्रस्ताव रख दिया. उन नौजवान नाम था ‘मोहम्मद’. उस वक्त हजरत मोहम्मद एक साधारण, लेकिन बेहद ईमानदार और इज्जतदार शख्सियत थे. दोनों का निकाह हुआ और वे साथ रहने लगे. जब हजरत मोहम्मद साहब की उम्र 40 की हुई तभी उन्हें हिरा पहाड़ की एक गार में अल्लाह के फरिश्ते हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम से मुलाकात हुई. उन्होंने हजरत मोहम्मद को उनके पैगंबर बनने का अल्लाह का मैसेज दिया.
हजरते खदीजा बनीं पहली मुस्लिम महिला
यह सब देख हजरत मोहम्मद डर गए और कांप उठे. उन्हें कुछ नहीं सूझा वे दौड़े-दौड़े घर पहुंचे और हजरते खदीजा को सारी बात बताई. क्योंकि, वे केवल अपनी बीबी हजरते खदीजा पर सबसे ज्यादा ट्रस्ट किया करते थे. उस वक्त हजरते खदीजा ने पैगंबर मोहम्मद साहब की बात को बेहद तसल्ली से सुना और उन्हें हौसला दिया. इस तरह उन्होंने हजरत मोहम्मद साहब को पैगंबर होने का विश्वास दिलाया. इसी बीच वे इस्लाम में दाखिल होने वाली पहली मुस्लिम महिला बनीं.
इस तरह की इस्लाम के लिए मदद
अब वो दौर आया जब पैगंबर मोहम्मद साहब ने कबीले के सरदारों को इस्लाम के बारे में बताया और अल्लाह एक है का संदेश दिया. इस्लामिक स्कॉलर गुलाम रसूल देहलवी कहते हैं कि इसके बाद पूरे मक्का में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के लोग दुश्मन बन गए. तब उनका साथ उनकी बीबी हजरते खदीजा ने दिया. उन्होंने इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए अपने संबंधियों और दौलत का भरपूर इस्तेमाल किया और अपने शौहर का मजबूती से साथ दिया. उनके इस प्रयास से हजरत मोहम्मद साहब को इस्लाम के लिए बड़ी मदद मिली. साल 619 में बीमारी के चलते हजरते खदीजा का निधन हो गया. उनके जाने से पैगंबर मोहम्मद साहब अकेले पड़ गए और मायूस रहने लगे. हजरते खदीजा का इस्लाम के अस्तित्व में बड़ा योगदान रहा.