ये सीएए वाले आएं तो जरा पूछना ये सवाल...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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ये सीएए वाले आएं तो जरा पूछना ये सवाल...

ये सीएए वाले आएं तो जरा पूछना ये सवाल...


अमरोहा की गलियों से अजय यादव

पुलिस की गोदी में खेलते कूदते हुए ऐसे नारों के साथ CAA को समझाया गया है। समझाने की ही परमिशन भी ली थी। सी ए ए तो पता नहीं कितना समझ आया, लेकिन कितने समझदार थे समझाने वाले, ये सबकी समझ में आ गया। अव्वल तो दोबारा आएंगे नहीं, आएं तो पुंछना सिलाई कैसे होती है।

आएंगे, आपके घर-मुहल्ले में, आपको समझाने कि सीएए क्या है! सरकार नहीं समझा पाई, इसलिए उनकी ड्यूटी लगाई गई। देखना, कभी बॉर्डर पर सेना कम पड़ गई, तो वहां भी ये ही जाएंगे, गमछे सिर पर बांधके, लट्ठ ले लेकर। खैर, अब ये मत पूंछना कि इन्होंने सी ए ए कौन सी युनिवर्सिटी से समझा है! बस, ऐसा मानकर ही चलो कि ये सब समझदार हैं, क्योंकि इनकी सरकार है। तो जब ये आएं, इनका भरपूर स्वागत करना, बैठाना और राजी-खुशी के बाद पूंछना कि कैसे आ पाए हो। ये कहेंगे कि सीएए बहुत अच्छा है, आप आसानी से मान लेना, क्योंकि शब्दों-तर्कों से, या मुंहजोरी से आप इनसे जीत भी नहीं पाएंगे, इन्होंने तो इसी की खाया है, इसी का खा रहे हैं।
बस, इनसे फिर इतना ही पूंछना, बुलेट ट्रेन तो अभी चली नहीं, आ कैसे पाए हो! उसी नेहरू के टाइम वाली रेल से आए हो क्या, जिसने नए साल से ही किराया बढ़ा दिया बिना बजट सत्र के। या फिर अपनी बाइक कार से आए हो, तो पूंछना कि इतना महंगा पेट्रेाल कैसे भरवा लेते हो। नोटबंदी के बाद भी इतना पैसा कहां से बचाकर रखा था कि इतने ज्ञानपूर्ण कार्यक्रम चला रहे हो। हमारा तो गन्ने का भुगतान भी नहीं हो रहा।
बातें भी करते रहना, मगर नाश्ता भी कराना और बातों-बातों में यह भी बताना कि ये प्याज के पकौड़े हैं जी, दो सौ रूपये किलो वाली प्याज के, जिन्हें स्म्रति ईरानी जी गले में लटकाकर घूमती थीं और जिन्हें निर्मला जी खाती ही नहीं। केवल आपके लिए बनवाएं हैं, कहीं आप नाराज न हों जाएं, हमें देशद्रोही न घोषित कर दें। आलू-गोभी के पकौड़ों का रेट भी बताना और ये भी बताना कि मिट्टी चूल्हें पर उपलों की धीमी आंच में पकाया गया है, क्योंकि उज्ज्वला का सिलेंडर भराने का पैसा तो मुकेश अंबानी के जियो वाले होनहार लौंडे ने ले लिया।
इसके अलावा उनसे ये जानकारी भी ले लेना कि इस समय डाॅलर का भाव क्या चल रहा है और जीएसटी में क्या चल रहा है। मतलब, जानकारी रहे तो ठीक ही रहती है। और एक बात याद रखना उनसे ज्यादा भ्रष्टाचार, महंगाई, मंदी आदि की बातें मत करना, क्योंकि ये उठकर भाग जाएंगे, आप रोकने को दौड़ोगे तो ये पत्थरबाजों में आपका नाम लिखवा देंगे और फिर एसपी साहब से एक हजार रूपये भी इनाम में ले लेंगे। वैसे भी, इन दिनों एसपी साहबों के मजे हैं, ताजे ही रेट पता चलें कि चालीस लाख रूपये से साठ लाख रूपये में पोस्टिंग मिलती है। बिल्कुल भयमुक्त भ्रष्टाचार है, इसलिए उसका ज्यादा जिक्र ही नहीं करना।
बेरोजगारी की बात भी बिल्कुल मत करना, बात आए भी तो इतना ही कहना है कि जी ये जो दर्जी हैं, ठाली बैठे रहते हैं, पर सिलाने जाओ तो महंगा सिलते हैं; हिम्मत ही नहीं पड़ रही, कुर्तों की जेंबे, पेंटों की भी अगली-पिछली सब फटी पड़ी हैं। बल्कि उन्हें सलाह देना कि मोटा भाई के एंटरप्रेन्योर पुत्र अगर कटाई-सिलाई सिखाने-कराने का ट्रेनिंग इंस्टीटूयूट खोल दें तो गांव-गांव उसकी फ्रेंचाइजी हो जाएगी, क्योंकि सिलाई की सभी को इतनी ज्यादा और सख्त जरूरत है। और जब यह सिलाई वाली फ्रेंचाइजी गांव-गांव, मुहल्ले-मुहल्ले में रहेगी तो इनका आना-जाना भी बदस्तूर बना रहेगा। अभी ये काफी दिनों से गायब से थे। कई लोग तो यह भी कह रहे हैं कि भाजपाई जनता के बीच जा ही नहीं पा रहे थे, इनकी जेबें फट रही थीं, इसीलिए ये सीएए लाया गया है, ताकि सिला सकें, इसे समझाने के बहाने से ही लोगों से मिल सकें, अगली बार के वोट के लिए। पर, सवाल तो ये भी है कि ये समझाने किसे जाएंगे, वे तो इन्हें कूटने को तैयार बैठे हैं। बाकी खुदा खैर करे, आपके यहां आएं तो मेहमाननवाजी ठीक से कर देना, अपना आगा-पीछा खर्च-किताब देख के।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजि विचार हैं, UPUKLive की सहमति आवश्यक नहीं)