अब किसी पत्रकार के काम के लिए उसकी तारीफ सुनने को नहीं मिलती...

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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अब किसी पत्रकार के काम के लिए उसकी तारीफ सुनने को नहीं मिलती...

अब किसी पत्रकार के काम के लिए उसकी तारीफ सुनने को नहीं मिलती...


कृष्णा कांत 
जब हम पढ़ाई कर रहे थे, उस वक्त पत्रकारों को खूब इज्जत की नजर से देखा जाता था. कई पत्रकार ऐसे थे, जनता जिनके कलम की मुरीद थी. अनेक ऐसे लेख छपते थे जो सरकार की धज्जियां उड़ा देते थे. इसी बात ने हमें पत्रकार बनने को प्रेरित किया. आज ये हाल है कि पत्रकारों की तारीफ करने वाले खोजे नहीं मिलते. हां, पत्रकारों को रोज गालियां खाते हुए हम जरूर देखते हैं. 
तब और अब की पत्रकारिता में जमीनआसमान का फर्क आ गया है. मेरे पास आज भी एक फाइल है जिसमें तमाम अच्छे लेखों की कतरन है. ये फाइल 2004 से लेकर 2010 के बीच की है. हर अखबार में कुछ न कुछ सीखने लायक होता था. क्या आज ऐसा है? आज मैं ज्यादा मुब्तला हूं. दिन भर खबरें और लेख पढ़ता हूं ​लेकिन सहेजने लायक शायद ही कुछ मिलता है. 
पिछले कई सालों से हजारों बार लोगों से सुनने को मिलता है कि मीडिया बिका हुआ है. पत्रकार सब दलाल हैं. बिके हुए हैं. अब किसी पत्रकार के काम के लिए उसकी तारीफ सुनने को नहीं मिलती.