बैंक अकाउंट में कई दिन से नहीं किया ट्रांसेक्शन तो हो जाएँ सावधान, कही गायब न हो जाये आपका सारा पैसा

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बैंक अकाउंट में कई दिन से नहीं किया ट्रांसेक्शन तो हो जाएँ सावधान, कही गायब न हो जाये आपका सारा पैसा

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नई दिल्ली, 20 सितम्बर, 2023 : कई वर्षों से जिन बैंक खातों में लेनदेन बंद होता था, उनके फर्जी चेक तैयार कर खाते से रुपये निकालने का मामला सामने आया है। आरोपी बैंककर्मी की मदद से धोखाधड़ी के रुपये जमा करा रहा था।

एक मामले में रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर ने पासबुक की एंट्री कराई तो पता चला कि उनके बैंक खाते से फर्जी चेक लगाकर 7.50 लाख रुपये ट्रांसफर किए गए थे। रिटायर्ड एसआई शिशुपाल की शिकायत पर घंटाघर कोतवाली में केस दर्ज किया गया था। एसीपी कोतवाली ने बताया कि इस मामले में जिस युवक के अकाउंट में रुपये ट्रांसफर हुए उसे गिरफ्तार किया गया है।

आरोपी का नाम आलोक है और वह कानपुर का रहने वाला है। पूछताछ में एक बैंककर्मी और अरुण पाठक नाम के व्यक्ति की भूमिका भी सामने आई है। दोनों की तलाश की जा रही है। बैंककर्मी की गिरफ्तारी के बाद क्राइम करने का पूरा तरीका सामने आएगा।

शिशुपाल 1985 में गाजियाबाद में रहते थे। इस दौरान उन्होंने इलाहाबाद बैंक में खाता खुलवाया था। उन्होंने बताया कि 2017 में रिटायर होने के बाद वह आगरा में रह रहे थे। इस दौरान बैंक अकाउंट का प्रयोग नहीं होता था।

इलाहाबाद बैंक के इंडियन बैंक में मर्ज होने के बाद अकाउंट की जानकारी करने के लिए वह अगस्त 2023 में बैंक पहुंचे तो जानकारी हुई कि जून 2019 में चेक से आलोक के अकाउंट में रुपये गए थे।

बैंककर्मी भी फ्रॉड में शामिल 

आलोक ने बताया कि बैंक में कौन से ऐसे अकाउंट (account) है जो एक्टिव नहीं इसकी जानकारी बैंक का एक साथी देता था। उसके आधार पर अकाउंट होल्डर को जारी चेक बुक के किसी नंबर का वह फर्जी चेक तैयार करते थे।

बैंक का व्यक्ति इससे जुड़ा होने के कारण काम सफाई से होता था। इसमें अक्सर उन अकाउंट को चुना जाता था, जहां नंबर अपडेट नहीं होते थे, जिससे बैंक कॉल कर भी बड़े अमाउंट को वेरीफाई न कर सके। पुलिस अब इस मामले में अन्य कड़ियों को जोड़ने के बाद फरार आरोपियों की तलाश कर रही है। इसके बाद सामने आएगा कि उन्होंने कितने लोगों के अकाउंट से रुपये निकाले हैं।

ऐसे तैयार होता था फर्जी चेक 

शुरुआती जांच में सामने आया है कि बैंककर्मी के पास अकाउंट पर जारी चेकबुक की डिटेल होती थी। इनमें से किसी एक नंबर के साथ फर्जी चेक को तैयार किया जाता था। चेक इस प्रकार से तैयार होता था कि उसे एक नजर में कोई पहचान ही न सके।

इसके बाद गैंग का साथी बैंककर्मी भी साइन की भी व्यवस्था करता था, जहां कई दिन की प्रैक्टिस के बाद फर्जी चेक पर फर्जी साइन के साथ उसे बैंक में लगाया जाता था।