यहां मुसलमानों ने भी मनाई श्री कृष्ण जन्माष्टमी
नई दिल्ली। कल श्री कृष्ण जन्माष्टमी थी। देश भर में लोगों ने नंदलाल के जन्मदिवस को मनाया। वहीं राजस्थान में एक दरगाह ऐसा भी है जहां मुसलमानों ने भी कृष्ण जन्माष्टमी को धूमधाम से मनाया। दरअसल राजस्थान के झुंझुनू जिले के नरहड़ कस्बे में स्थित पवित्र हा
नई दिल्ली। कल श्री कृष्ण जन्माष्टमी थी। देश भर में लोगों ने नंदलाल के जन्मदिवस को मनाया। वहीं राजस्थान में एक दरगाह ऐसा भी है जहां मुसलमानों ने भी कृष्ण जन्माष्टमी को धूमधाम से मनाया।
दरअसल राजस्थान के झुंझुनू जिले के नरहड़ कस्बे में स्थित पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह, जो कौमी एकता की जीवन्त मिशाल हैं। इस दरगाह की सबसे बड़ी विशेषता हैं कि यहां सभी धर्मो के लोगों को अपनी-अपनी धार्मिक पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है।
कौमी एकता के प्रतीक के रूप मे ही यहां प्राचीन काल से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशाल मेला भरता है। देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं।
जन्माष्टमी पर नरहड़ में भरने वाला ऐतिहासिक मेला और अष्टमी की रात होने वाला रतजगा सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देशभर में कौमी एकता की अनूठी मिसाल का अद्भुत आस्था केंद्र बनाता है। जहां हर धर्म-मजहब के लोग हर प्रकार के भेदभाव को भुलाकर बाबा की बारगाह में सजदा करते हैं।
दरगाह के खादिम एवं इंतजामिया कमेटी करीब सात सौ वर्षों से अधिक समय से चली आ रही सांप्रदायिक सद्भाव को प्रदर्शित करने वाली इस अनूठी परम्परा को सालाना उर्स की माफिक ही आज भी पूरी शिद्दत से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते चले आ रहे हैं।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की छठ से शुरू होने वाले इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूर-दराज से नरहड़ आने वाले हिंदू जात्री दरगाह में नवविवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जड़ूले उतारते हैं।
दरअसल राजस्थान के झुंझुनू जिले के नरहड़ कस्बे में स्थित पवित्र हाजीब शक्करबार शाह की दरगाह, जो कौमी एकता की जीवन्त मिशाल हैं। इस दरगाह की सबसे बड़ी विशेषता हैं कि यहां सभी धर्मो के लोगों को अपनी-अपनी धार्मिक पद्धति से पूजा अर्चना करने का अधिकार है।
कौमी एकता के प्रतीक के रूप मे ही यहां प्राचीन काल से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशाल मेला भरता है। देश के विभिन्न हिस्सों से हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी पूरी श्रद्धा से शामिल होते हैं।
जन्माष्टमी पर नरहड़ में भरने वाला ऐतिहासिक मेला और अष्टमी की रात होने वाला रतजगा सूफी संत हजरत शकरबार शाह की इस दरगाह को देशभर में कौमी एकता की अनूठी मिसाल का अद्भुत आस्था केंद्र बनाता है। जहां हर धर्म-मजहब के लोग हर प्रकार के भेदभाव को भुलाकर बाबा की बारगाह में सजदा करते हैं।
दरगाह के खादिम एवं इंतजामिया कमेटी करीब सात सौ वर्षों से अधिक समय से चली आ रही सांप्रदायिक सद्भाव को प्रदर्शित करने वाली इस अनूठी परम्परा को सालाना उर्स की माफिक ही आज भी पूरी शिद्दत से पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते चले आ रहे हैं।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की छठ से शुरू होने वाले इस तीन दिवसीय धार्मिक आयोजन में दूर-दराज से नरहड़ आने वाले हिंदू जात्री दरगाह में नवविवाहितों के गठजोड़े की जात एवं बच्चों के जड़ूले उतारते हैं।