मदरसा शाही की इब्तदा से 'हाइटेक' बनने तक की कहानी

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मदरसा शाही की इब्तदा से 'हाइटेक' बनने तक की कहानी

मदरसा शाही की इब्तदा से 'हाइटेक' बनने तक की कहानी

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मुहम्मद फैज़ान

मुरादाबाद। मुरादाबाद का मदरसा शाही जहां आला तालीम का मरकज है, वहीं हाइटेक तालीमगाह भी बन चुका है। इसमें दीनी तालीम के साथ बच्चों की उंगलियां कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर भी थिरकती हैं। तालिबे-इल्मों के लिए दीन से लेकर दुनियावी इल्म की सर्च करने के लिए इंटरनेट भी मुहैया है। मदरसे ने यह मुकाम करीब सवा सौ साल का सफर तय कर हासिल किया है।

जानिए इब्तदा से हाइटेक बनने तक की कहानी...
मंडी चौक की शाही मस्जिद में दारूल उलूम देवबंद के बानी (संस्थापक) मौलाना मोहम्मद कासिम नानौतवी रहमतुल्लाह अलैह ने 1878 (1296 हिजरी) में जामिया कासमिया मदरसा शाही की बुनियाद रखी थी। इस लिए दारूल उलूम देवबंद के बाद मदरसा शाही का नाम पुकारा जाता है। 



जहां आला मैयार की दीनी तालीम है तो दुनियावी तालीम भी दी जाती है। मसलन, अरबी-फारसी के तीन दर्जे तक अंग्रेजी-हिसाब मदरसे निसाब में शामिल हैं, यानी कंपलसरी है। तालिबे-इल्मों के लिए कम्प्यूटर पढ़ाई का जरिया है।

मदरसे में बनी कम्प्यूटर लैट में इंटरनेट की सुविधा है। जहां बच्चे मोटी-मोटी किताबों के पन्ने पलटने की जगह कम्प्यूटर स्क्रीन पर मुताअला करते हैं। कुरआन-हदीस सीडी और चिप में लोड हैं तो दीन के साथ दुनियावी मालूमात नेट पसर्च कर सकते हैं।

मदरसे की जहां अपनी वेबसाइट है, वहीं करीब बीस साल से निदा-ए-शाही नाम से रिसाला भी छपता है। इसमें दीनी के साथ दुनियावी आर्टिकल छपते हैं, जो मुदर्रिस से लेकर शार्गिदों के लिए लेखन का जरिया है।

मोहतमिम मौलाना अशहद रशीदी के अनुसार मदरसे में करीब 2500 तालिबे-इल्म हैं। मंडी चौक में जगह की तंगी को देखकर लालबाग में मदरसे का विस्तार किया गया।