अच्छी खासी जॉब छोड़ सरपंच बनी 23 साल की ये लड़की
आज के समय में लड़कियां लड़कों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं। लड़कियां आगे बढ़कर समाज के लिए सराहनीय कार्य कर रही हैं। आज हम ऐसी ही 23 साल की लड़की की बात करने जा रहे हैं, जिसने अपने गांव की हालत सुधारने के लिए इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी और सरपंच बनक
आज के समय में लड़कियां लड़कों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं। लड़कियां आगे बढ़कर समाज के लिए सराहनीय कार्य कर रही हैं। आज हम ऐसी ही 23 साल की लड़की की बात करने जा रहे हैं, जिसने अपने गांव की हालत सुधारने के लिए इंजीनियर की नौकरी छोड़ दी और सरपंच बनकर गांव को विकास की राह में आगे बढ़ाने का काम किया।
इनका नाम प्रवीण कौर है, जो हरियाणा के कैथक के गांव ककराला कुचिया की निवासी हैं। प्रवीण के इस काम के लिए वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उन्हें सम्मानित किया था।
प्रवीण का सपना बचपन से ही इंजीनियर बनने का था, इसको ध्यान में रखकर ही उन्होंने पढ़ाई भी की थी, लेकिन गांव की समस्याओं को देखकर उनका इरादा बदल गया और प्रवीण ने इंजीनियर की नौकरी छोड़ इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। वह सरपंची के चुनाव में खड़ी हुईं और गांव वालों ने अपनी रजामंदी से उन्हें अपना मुखिया चुन लिया।
प्रवीण बचपन से ही गांव के लोगों को समस्याओं से जूझते देखती थीं। जिसको लेकर वह कुछ करना चाहती थीं। गांव का विकास उनकी प्रमुख प्राथमिकता रहा है। अगर आगे भी उन्हें सरपंच बनने का मौका मिला तो वह और कार्यों का पूरा करेंगी।
सरपंच प्रवीण ने अपनी टीम में 4 महिला पंचों को भी रखा है। इनसे गांव की महिलाएं भी आसानी से बात कर लेती हैं और समस्याओं को साझा करती हैं। प्रवीण ने गांव के पंचायत घर में बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था कराई, जिसमें अब करीब 04 दर्जन बच्चे पढ़ाई करने के लिए आते हैं।
उन्होंने अपने प्रयासों गांव के स्कूल को 12वीं तक कराया है। पहले यहां केवल हाईस्कूल तक पढ़ाई कराई जाती थी। उन्होंने महिलाओं की समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित किया। घरेलू हिंसा को चुनौती मानकर पंचों के सामने इस समस्याओं को रखकर उसका हल निकाला।
इनका नाम प्रवीण कौर है, जो हरियाणा के कैथक के गांव ककराला कुचिया की निवासी हैं। प्रवीण के इस काम के लिए वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी उन्हें सम्मानित किया था।
प्रवीण का सपना बचपन से ही इंजीनियर बनने का था, इसको ध्यान में रखकर ही उन्होंने पढ़ाई भी की थी, लेकिन गांव की समस्याओं को देखकर उनका इरादा बदल गया और प्रवीण ने इंजीनियर की नौकरी छोड़ इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। वह सरपंची के चुनाव में खड़ी हुईं और गांव वालों ने अपनी रजामंदी से उन्हें अपना मुखिया चुन लिया।
प्रवीण बचपन से ही गांव के लोगों को समस्याओं से जूझते देखती थीं। जिसको लेकर वह कुछ करना चाहती थीं। गांव का विकास उनकी प्रमुख प्राथमिकता रहा है। अगर आगे भी उन्हें सरपंच बनने का मौका मिला तो वह और कार्यों का पूरा करेंगी।
सरपंच प्रवीण ने अपनी टीम में 4 महिला पंचों को भी रखा है। इनसे गांव की महिलाएं भी आसानी से बात कर लेती हैं और समस्याओं को साझा करती हैं। प्रवीण ने गांव के पंचायत घर में बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था कराई, जिसमें अब करीब 04 दर्जन बच्चे पढ़ाई करने के लिए आते हैं।
उन्होंने अपने प्रयासों गांव के स्कूल को 12वीं तक कराया है। पहले यहां केवल हाईस्कूल तक पढ़ाई कराई जाती थी। उन्होंने महिलाओं की समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित किया। घरेलू हिंसा को चुनौती मानकर पंचों के सामने इस समस्याओं को रखकर उसका हल निकाला।