इतना प्यार है तो किसी मुसलमान को अध्यक्ष बनाए कांग्रेस: PM मोदी

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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इतना प्यार है तो किसी मुसलमान को अध्यक्ष बनाए कांग्रेस: PM मोदी

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Photo Credit: Video Grab


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के यमुनानगर में एक चुनावी रैली में कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कांग्रेस पर संविधान को अपने सियासी फायदे के लिए इस्तेमाल करने का आरोप लगाया और कई सवाल उठाए, जो जनता के बीच चर्चा का विषय बन गए हैं। पीएम ने न केवल कांग्रेस की नीतियों पर सवाल उठाए, बल्कि समाज में समानता और न्याय की भावना को मजबूत करने की बात भी कही। आइए, उनके बयान को आसान और रोचक तरीके से समझते हैं।

संविधान का सम्मान या सियासी हथियार?

पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि कांग्रेस ने हमेशा संविधान को अपनी सत्ता की सीढ़ी बनाया। उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस ने सत्ता में बने रहने के लिए संविधान की भावना को बार-बार कमजोर किया। खास तौर पर, उन्होंने आपातकाल का जिक्र किया, जब कांग्रेस ने संवैधानिक मूल्यों को ताक पर रखकर जनता के अधिकारों को दबाया। पीएम का कहना था कि संविधान की असली ताकत समानता और न्याय में है, लेकिन कांग्रेस ने इसे अपने हितों के लिए मोड़ने की कोशिश की। यह बात उन लोगों के लिए गहरी चोट कर सकती है, जो संविधान को देश की आत्मा मानते हैं।

वक्फ एक्ट और तुष्टिकरण की राजनीति

पीएम ने कांग्रेस के 2013 के वक्फ एक्ट संशोधन को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि यह बदलाव चुनाव जीतने की रणनीति का हिस्सा था, जिसने संविधान को कमजोर करने का काम किया। मोदी के मुताबिक, इस कानून को इस तरह बनाया गया कि वह संवैधानिक नियमों से भी ऊपर हो गया। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर कांग्रेस को किसी समुदाय से इतना प्यार है, तो वह उस समुदाय के लोगों को अपनी पार्टी में बड़े पद क्यों नहीं देती? यह बयान सीधे तौर पर कांग्रेस की नीतियों पर सवाल उठाता है और लोगों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यह सिर्फ वोट की राजनीति है।

समानता का सपना और सेकुलर सिविल कोड

मोदी ने अपने भाषण में संविधान की मूल भावना पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संविधान सभी के लिए समान न्याय और अवसर की बात करता है। इस संदर्भ में, उन्होंने एक समान नागरिक संहिता (सेकुलर सिविल कोड) की वकालत की, जो उनके अनुसार देश में एकता और निष्पक्षता को बढ़ावा देगी। पीएम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने इस तरह के सुधारों को कभी लागू करने की हिम्मत नहीं दिखाई, क्योंकि वह सियासी फायदे को प्राथमिकता देती रही। यह बात उन लोगों को आकर्षित कर सकती है, जो समाज में समानता के पक्षधर हैं।