क्या अब दो पुरुष भी दे सकेंगे बच्चे को जन्म? चीन के इस प्रयोग ने खोले नए द्वार!

प्रकृति के नियमों को चुनौती देते हुए, चीन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। चीनी एकेडमी ऑफ साइंसेज (CAS) के आणविक जीवविज्ञानी झी कुन ली के नेतृत्व में एक टीम ने स्टेम सेल इंजीनियरिंग का उपयोग करके दो पुरुष चूहों से एक नए जीव को जन्म दिया है। यह प्रयोग न केवल वैज्ञानिक जगत में एक मील का पत्थर साबित हुआ है, बल्कि इसने प्रजनन के पारंपरिक विचारों को भी चुनौती दी है।
इस अभूतपूर्व उपलब्धि ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या वाकई दो पुरुष मिलकर एक नए जीवन को जन्म दे सकते हैं? क्या बिना मां के बच्चे का जन्म संभव है? इन सवालों के जवाब अब धीरे-धीरे सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक लंबे समय से इस संभावना पर काम कर रहे थे, लेकिन अब तक कोई ठोस सफलता हाथ नहीं लगी थी। चीन में हुए इस ऐतिहासिक प्रयोग ने इस दिशा में एक नया अध्याय खोल दिया है।यह पहली बार नहीं है जब वैज्ञानिकों ने बिना जैविक मां के किसी जीव को जन्म दिया हो। 2023 में, जापान के शोधकर्ताओं ने भी इसी तरह का एक प्रयोग किया था। लेकिन उस प्रयोग में पैदा हुए चूहे का जीवनकाल बहुत कम था।
चीन के इस नए प्रयोग में न केवल चूहा जन्मा, बल्कि वह स्वस्थ रूप से बड़ा भी हुआ। यह बात इस शोध को और भी महत्वपूर्ण बना देती है।लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं था। पुरुष स्टेम सेल से अंडे बनाने के पिछले कई प्रयास नाकाम रहे थे। वैज्ञानिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी चुनौती थी आनुवंशिक सामग्री का सही तरीके से मिलान करना। आमतौर पर, जब पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडे का मिलन होता है, तो जीन्स दोगुने हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक जोड़े के आधे जीन्स को निष्क्रिय करना पड़ता है। लेकिन जब दो पुरुषों के आनुवंशिक पदार्थ का मिलन होता है, तो अक्सर जीन्स दो बार निष्क्रिय हो जाते हैं, जिससे कई तरह के विकार पैदा हो सकते हैं।चीनी वैज्ञानिकों ने इस समस्या का समाधान खोजने के लिए कई तरह की जेनेटिक तकनीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने जीन डिलीशन, रीजन एडिट, और जेनेटिक बेस पेयर में कुछ जोड़ने या हटाने जैसी तकनीकों का उपयोग किया। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप, वे एक ऐसा भ्रूण बनाने में सफल रहे जो दो पुरुषों के आनुवंशिक पदार्थ से बना था और जो स्वस्थ रूप से विकसित हो सका।हालांकि यह एक बड़ी सफलता है, लेकिन इस तकनीक को मनुष्यों पर लागू करने से पहले अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इस अध्ययन में, चूहों के आधे भाई-बहन वयस्क होने तक जीवित नहीं रह पाए, और लगभग 90% भ्रूण विकसित नहीं हो सके। यह आंकड़े बताते हैं कि इस तकनीक की सफलता दर में अभी बहुत सुधार की आवश्यकता है।
फिर भी, इस शोध के निहितार्थ बहुत दूरगामी हो सकते हैं। यह न केवल प्रजनन विज्ञान में एक नया अध्याय खोल सकता है, बल्कि मानव में कुछ आनुवंशिक मानसिक विकारों को बेहतर ढंग से समझने में भी मदद कर सकता है। इसके अलावा, यह उन जोड़ों के लिए आशा की किरण बन सकता है जो परंपरागत तरीकों से बच्चे पैदा करने में असमर्थ हैं।लेकिन इस तकनीक के साथ कई नैतिक सवाल भी जुड़े हुए हैं। क्या यह प्रकृति के नियमों के खिलाफ जाना है? क्या इससे समाज की संरचना में बदलाव आएगा? क्या इससे लिंग असंतुलन बढ़ेगा? इन सवालों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।इस बीच, चीन में यह शोध एक ऐसे समय में हुआ है जब देश अपनी जनसंख्या नीति में बड़े बदलाव कर रहा है। लंबे समय तक चली एक-बच्चे की नीति के बाद, चीन अब अपने नागरिकों को दो या तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति दे रहा है। ऐसे में, यह नई तकनीक चीन की जनसंख्या रणनीति में एक नया आयाम जोड़ सकती है।
निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि चीनी वैज्ञानिकों का यह प्रयोग आनुवंशिक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह न केवल वैज्ञानिक समुदाय के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक नए युग की शुरुआत हो सकती है। हालांकि, इसे मनुष्यों पर लागू करने से पहले कई चुनौतियों को दूर करना होगा और नैतिक मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श करना होगा।जैसे-जैसे यह तकनीक विकसित होती जाएगी, हमें इसके सामाजिक, नैतिक और कानूनी पहलुओं पर भी ध्यान देना होगा। यह शोध भविष्य में प्रजनन तकनीकों को नई दिशा दे सकता है और उन लोगों के लिए आशा की किरण बन सकता है, जो परंपरागत तरीकों से बच्चे पैदा करने में असमर्थ हैं। लेकिन साथ ही, हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इस तकनीक का दुरुपयोग न हो और यह मानव जाति के हित में ही इस्तेमाल की जाए।