चलने से राहें खुले, हो मंजिल का भान

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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चलने से राहें खुले, हो मंजिल का भान

चलने से राहें खुले, हो मंजिल का भान


बैठ न सौरभ हार के, रखना इतना ध्यान ! 
चलने से राहें खुले, हो मंजिल का भान !!

सुख में क्या है ढूंढ़ता, तू अपनी पहचान !
संघर्षों में जो पले, बनते वही महान !!

संबंध स्वार्थ से जुड़े, कब देते बलिदान !
वक्त पड़े पर टूटते, शोक न कर नादान !!

आंधी या बरसात हो, सहते एक समान !
जीवन पथ पर वो सदा, रचते नए विधान !!

भूल गए हम साधना, भूल गए है राम !
मंदिर मस्जिद फेर में, उलझे आठों याम !!

रहे सदा तू एक सा, करना मत ये ख्याल !
धन-तन सभी बिखेर दे,आया एक बवाल !!

औरों की जब बात हो, करते लाख बवाल !
बीती अपने आप पर, भूले सभी सवाल !!

 प्रियंका सौरभ