भाजपा महिला मोर्चा राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में बोले पी. मुरलीधर राव- 'विचारधारा ही भाजपा कार्यकर्ताओं के प्राण'

डंके की चोट पर 'सिर्फ सच'

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भाजपा महिला मोर्चा राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में बोले पी. मुरलीधर राव- 'विचारधारा ही भाजपा कार्यकर्ताओं के प्राण'


भाजपा महिला मोर्चा राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में बोले पी. मुरलीधर राव- 'विचारधारा ही भाजपा कार्यकर्ताओं के प्राण'


भाजपा महिला मोर्चा राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में बोले पी. मुरलीधर राव- 'विचारधारा ही भाजपा कार्यकर्ताओं के प्राण'


भाजपा महिला मोर्चा राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर में बोले पी. मुरलीधर राव- 'विचारधारा ही भाजपा कार्यकर्ताओं के प्राण'


सीहोर, 15 मई (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय महासचिव एवं मध्य प्रदेश के प्रभारी पी. मुरलीधर राव ने कहा कि भाजपा के कार्यकर्ताओं के लिए विचारधारा ही प्राण है। यदि विचारधारा नहीं है तो हम भी नहीं हैं। हमारी विचारधारा को बदनाम करने के लिए अनेक षड्यंत्र समय-समय पर होते रहे हैं। किंतु यदि आज लगातार हमारा प्रभाव एवं हमारे प्रति देश के लोगों का विश्वास व आशा जगी है तो निश्चित ही इसके पीछे हमारी राष्ट्रभक्ति की श्रेष्ठ-सफल विचारधारा ही है।

भाजपा के महासचिव राव यहां भाजपा के महिला मोर्चा के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन हमारी विचारधारा विषय पर बोल रहे थे। इस शिविर में देशभर से भाजपा की कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। महासचिव राव ने पार्टी की विचारधारा के महत्व पर गहराई से प्रकाश डाला। जिसका आशय यही था कि हमारी लड़ाई अपनी विचारधारा को बचाने और आगे निरंतरता में बढ़ाने की है। भाजपा के प्रत्येक कार्यकर्ता को यह लक्ष्य बनाना है कि आगे भी उसके जनहितैषी कार्यों से उनकी यानी कि भाजपा राज कायम होता रहे। पंचायत से संसद तक लगातार जीत होती रहे। हमें प्रत्येक बूथ, मंडल और विधानसभा में अधिकतम प्रतिशत में वोट मिलते रहना चाहिए और इसके लिए सभी अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ जुटे रहें ।

उल्लेखनीय है कि भाजपा की विचारधारा को एक पंक्ति में कहना हो तो वह है ‘भारत माता की जय’। भारत का अर्थ है ‘अपना देश’। देश जो हिमालय से कन्याकुमारी तक फैला है और जिसे प्रकृति ने एक अखंड भूभाग के रूप में हमें दिया है। यह हमारी माता है और हम सभी भारतवासी उसकी संतान हैं। एक मां की संतान होने के नाते सभी भारतवासी सहोदर यानि भाई-बहन हैं। भारत माता कहने से एक भूमि और एक जन के साथ हमारी एक संस्कृति का भी ध्यान बना रहता है। इस माता की जय में हमारा संकल्प घोषित होता है और परम वैभव में है मां की सभी संतानों का सुख और अपनी संस्कृति के आधार पर विश्व में शांति व सौख्य की स्थापना। यही है ‘भारत माता की जय’।

एकात्म मानववाद भाजपा का मूल दर्शन

भाजपा के संविधान की धारा तीन के अनुसार एकात्म मानववाद भाजपा का मूल दर्शन है। यह दर्शन हमें मनुष्य के शरीर, मन, बृद्धि और आत्मा का एकात्म यानि समग्र विचार करना सिखाता है। यह दर्शन मनुष्य और समाज के बीच कोई संघर्ष नहीं देखता, बल्कि मनुष्य के स्वाभाविक विकास-क्रम और उसकी चेतना के विस्तार से परिवार, गाँव, राज्य, देश और सृष्टि तक उसकी पूर्णता देखता है। यह दर्शन प्रकृति और मनुष्य में मां का संबंध देखता है, जिसमें प्रकृति को स्वस्थ बनाए रखते हुए अपनी आवश्यकता की चीज़ों का दोहन किया जाता है। भाजपा के संविधान की धारा चार में पांच निष्ठाएं वर्णित हैं। एकात्म मानववाद और ये पांचों निष्ठाएं हमारे वैचारिक अधिष्ठान का पूरा ताना-बना बुनती हैं।

राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय एकात्मता

भाजपा का मानना है कि भारत राष्ट्रों का समूह नहीं है, नवोदित राष्ट्र भी नहीं है, बल्कि यह सनातन राष्ट्र है। हिमालय से कन्याकुमारी तक प्रकृति द्वारा निर्धारित यह देश है। इस देश-भूमि को देशवासी माता मानते हैं । उनकी इस भावना का आधार प्राचीन संस्कृति और उससे मिले जीवनमूल्य हैं। हम इस विशाल देश की विविधता से परिचित हैं। विविधता इस देश की शोभा है और इन सबके बीच एक व्यापक एकात्मता है। यही विविधता और एकात्मता भारत की विशेषता है। हमारा राष्ट्रवाद सांस्कृतिक है केवल भौगोलिक नहीं। इसीलिए भारत भू-मंडल में अनेक राज्य रहे, पर संस्कृति ने राष्ट्र को बांधकर रखा, एकात्म रखा।

विश्व की प्राचीनतम ज्ञात पुस्तक ऋग्वेद का एक मंत्र ‘एकं सद विप्राः बहुधा वदन्ति उल्लेखनीय है। इसका अर्थ है, सत्य एक ही है। विद्वान इसे अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते हैं। भारत के स्वभाव में यह बात आ गई है कि किसी एक के पास सच नहीं है। मैं जो कह रहा हूं वह भी सही है, आप जो कह रहे हैं वह भी सही है। विचार स्वातंत्र्य (फ्रीडम ऑफ थॉट्स एंड एक्सप्रेशन) का आधार यह मंत्र है।

संस्कृत में एक और मंत्र है ‘वादे वादे जयते तत्त्व बोध:’ । इसका अर्थ है चर्चा से हम ठीक तत्त्व तक पहुँच जाते हैं। चर्चा से सत्य तक पहुंचने का यह मंत्र भारत में लोकतंत्रीय स्वभाव बनाता है। इन दोनों मन्त्रों ने भारत में लोकतंत्र का स्वरूप गढ़ा-निखारा है। भारतीय समाज ने इसी लोकतंत्र का स्वभाव ग्रहण किया है। लोकतंत्र भारतीय समाज के अनुरूप व्यवस्था है। भाजपा ने अपने दल के अंदर भी लोकतंत्रीय व्यवस्था को मजबूती से अपनाया है। भाजपा संभवतः अकेला ऐसा राजनीतिक दल है, जो हर तीसरे साल स्थानीय समिति से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक के नियमित चुनाव कराता है।

सत्ता का किसी एक जगह केन्द्रित होना लोकतंत्रीय स्वभाव के विपरीत है। इसीलिए लोकतंत्र विकेन्द्रित शासन व्यवस्था है। केन्द्र, राज्य, नगरपालिका और पंचायत सभी के काम और ज़िम्मेदारियां बंटी हुई हैं। सब को अपनी-अपनी जिम्मेदारियां भारत के संविधान से प्राप्त होती हैं। संविधान द्वारा मिली अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए सभी (केंद्र, राज्य, नगरपालिका और पंचायत) स्वतंत्र हैं। इसीलिए गांव के लोग पंचायत द्वारा गांव का शासन स्वयं चलाते हैं । और यही इनके चढ़ते हुए क्रम तक होता है।

सामाजिक व आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण

गांधीवादी सामाजिक दृष्टिकोण भेदभाव और शोषण से मुक्त समतामूलक समाज की स्थापना है। दुर्भाग्य से एक समय में, जन्म के आधार पर छोटे या बड़े का निर्धारण होने लगा, अर्थात् जाति व्यवस्था विषैली होकर छुआछूत तक पहुंच गई। भक्ति काल के पुरोधाओं से लेकर महात्मा गांधी व डॉ अम्बेडकर को इससे समाज को मुक्त कराने के लिए संघर्ष करना पड़ा। आज भी यह विषमता पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। इसलिए भाजपा का मानना है कि सभी में एक ही ईश्वर समान रूप से विराजता है। मनुष्य मात्र की समानता और गरिमा का यह दार्शनिक आधार है। देश को सामाजिक शोषण से मुक्त कराकर समरस समाज बनाना ही भाजपा की आधारभूत निष्ठा है।

महात्मा गांधी के दृष्टिकोण के आधार पर भाजपा भी आर्थिक शोषण के खिलाफ है और साधनों के समुचित बंटवारे की पक्षधर है। भाजपा का मानना है कि समाज और राज्य सबकी चिन्ता करेंगे। दीनदयालजी मनुष्य की मूल आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान के साथ शिक्षा और रोज़गार को भी जोड़ते थे। आर्थिक विषमताओं की बढ़ती खाई को पाटा जाना चाहिए। अशिक्षा, कुपोषण और बेरोज़गारी से एक बड़ा युद्ध लड़कर ‘‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’’ का आदर्श प्राप्त करना भाजपा की मौलिक निष्ठा है। गांधीवादी दृष्टिकोण ने यह सिखाया है कि हमें विचार या तंत्र बाहर से आयात करने की ज़रूरत नहीं है। अपने सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर अपनी बुद्धि, प्रतिभा और पुरुषार्थ से हम इसे पा सकते हैं।

सकारात्मक पंथ-निरपेक्षता एवं सर्वपंथसमभाव:

भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्व पंथ समादर भाव है। शासक किसी पंथ को, किसी भी पूजा पद्धति को राज-पंथ, राज-धर्म या राज-पद्धति नहीं मानेगा। वह सभी धर्मों, पंथों एवं पद्यतियों को समान आदर देता है। हमारा उद्देश्य है, न्याय सबके लिए और तुष्टिकरण किसी का नहीं। इसका व्यावहारिक अर्थ है ‘सबका साथ सबका विकास’। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि हिन्दओं को मुसलमानों से और मुसलमानों को हिन्दुओं से नहीं लड़ना है, बल्कि दोनों को मिल कर गरीबी से लड़ना है।

मूल्य आधारित राजनीति

भाजपा ने जो पाचंवा अधिष्ठान अपनाया है वह है ‘मूल्य आधारित राजनीति’। एकात्म मानववाद मूल्य आधारित राजनीति पर विश्वास करता है। नियमों और मूल्यों के निर्धारण के वायदे के बिना राजनीतिक गतिविधि सिर्फ निज स्वार्थपूर्ति का खेल है। भाजपा ‘मूल्य आधारित राजनीति’ के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है और इस तरह सार्वजनिक जीवन का शुद्धिकरण एवं नैतिक मूल्यों की पुन:स्थापना उसका लक्ष्य है।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. मयंक चतुर्वेदी