विश्वभर में सनातन जीवनशैली का प्रचार करने के लिए खड़ा है भारत: मोहन भागवत

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विश्वभर में सनातन जीवनशैली का प्रचार करने के लिए खड़ा है भारत: मोहन भागवत

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गोमती (त्रिपुरा)। भारत पूरे विश्व में सनातन जीवनशैली का प्रचार करने के लिए खड़ा है। राष्ट्र एक बार आक्रमणों से टूट गया था, लेकिन यह देश अभी भी एकता और सहानुभूति के दर्शन में विश्वास करता है। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कही हैं। डॉ. भागवत शनिवार को त्रिपुरा के गोमती जिलांतर्गत अमरपुर में नवनिर्मित शांतिकाली मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर संकल्प सभा को संबोधित कर रहे थे।

डॉ. भागवत दो दिवसीय यात्रा पर शुक्रवार को त्रिपुरा पहुंचे थे। उनकी यात्रा का मुख्य उद्देश्य मंदिर का उद्घाटन करना था। उद्घाटन समारोह में उनके साथ मंदिर के मुख्य महाराज चित्तरंजन महाराज उपस्थित थे। संघ प्रमुख ने मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर आयोजित यज्ञ में भी भाग लिया। उन्होंने पूजा में भी भाग लिया और स्थानीय कलाकारों द्वारा गाये गये हिंदी और कोकबोरोक के भजनों में हिस्सा लिया। उन्होंने चित्तरंजन महाराज के कोकबोरोक भजनों के संकलन का विमोचन भी किया।

डॉ. भागवत ने कहा, "भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसे सनातन जीवनशैली के संबंध में पूरी दुनिया के सामने उदाहरण स्थापित करने के लिए विकसित होना है। हम एकता और प्रेम में विश्वास करते हैं। संस्कृति, भाषा और पोशाक के मामले में मतभेद होने पर भी हम अंतर नहीं करते हैं। अमेरिका, चीन और रूस जैसे देशों के विपरीत, भारत अपना वजन दूसरों के इर्द-गिर्द नहीं फेंकता। भारत ने असहाय और जरूरतमंदों के साथ खड़े होने की एक मिसाल कायम की है।”

संघ प्रमुख ने कहा कि पूरी दुनिया में सनातन जीवनशैली का प्रचार किया जा सके, भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में विकसित होना है। हम धर्मांतरण में विश्वास नहीं करते हैं। हमारे विचार खुले हैं। हमें लगता है कि प्रार्थना के तरीके अलग हो सकते हैं, लेकिन अगर आप शुद्ध मन से प्रार्थना करते हैं तो पूजा करने वाले देवता प्रार्थना को स्वीकार करते हैं।

कार्यक्रम में त्रिपुरा के उप मुख्यमंत्री जिष्णु देव वर्मा, कृषि मंत्री प्रणजीत सिंह रॉय और भाजपा के अन्य नेता शामिल हुए। केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक भी इस कार्यक्रम में उपस्थित रहीं।

गौरतलब है कि शांति काली महाराज की वर्ष 1999 में उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी। उनकी लोकप्रियता और लोगों के बीच प्रभाव आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ईसाई धर्म के प्रसार के खिलाफ एक बड़ी बाधा बन गयी थी।