चरखे पर कताई पूजा से कम नहीं : प्रधानमंत्री मोदी

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चरखे पर कताई पूजा से कम नहीं : प्रधानमंत्री मोदी

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खादी का एक धागा आजादी के आंदोलन की ताकत बना व गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया : प्रधानमंत्री
 


अहमदाबाद/नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खादी को देश की विरासत बताते हुए कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूती देने वाला खादी का धागा विकसित और आत्मनिर्भर भारत के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। उन्होंने कहा कि चरखे पर कताई पूजा से कम नहीं है।

खादी उत्सव को संबोधित करते हुए शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी ने चरखा के साथ अपने व्यक्तिगत संबंध को याद किया। अपने बचपन का स्मरण किया, जब उनकी मां चरखा पर काम करती थीं। उन्होंने कहा, “साबरमती का यह किनारा आज धन्य हो गया है। भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ के दौरान 7,500 बहनों और बेटियों ने एक साथ चरखे पर सूत कातकर नया इतिहास रचा है।” उन्होंने कहा कि चरखे पर कताई पूजा से कम नहीं है।

उन्होंने शनिवार को ही उद्घाटन किए गए 'अटल ब्रिज' की प्रौद्योगिकी और डिजाइन की उत्कृष्टता का उल्लेख करते हुए कहा कि यह पुल पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि है, जिन्हें गुजरात के लोग हमेशा प्यार और सम्मान देते थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “अटल ब्रिज, साबरमती नदी के दो किनारों को ही आपस में नहीं जोड़ रही है, बल्कि यह ब्रिज डिजाइन और इनोवेशन में भी अभूतपूर्व है। इसकी डिजाइन में गुजरात के मशहूर पतंग महोत्सव का भी ध्यान रखा गया है।” मोदी ने उस उत्साह का भी उल्लेख किया, जिसके साथ भारत में हर घर तिरंगा अभियान मनाया गया।

उन्होंने कहा कि यह समारोह न केवल देशभक्ति की भावना को दर्शाते हैं, बल्कि आधुनिक और विकसित भारत के संकल्प को भी दर्शाते हैं। मोदी ने कहा, "आपके हाथ चरखे पर सूत कातते हुए भारत का ताना-बाना बुन रहे हैं।"

आगे प्रधानमंत्री ने कहा, “इतिहास साक्षी है कि खादी का एक धागा आजादी के आंदोलन की ताकत बन गया, उसने गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया। खादी का वही धागा विकसित भारत के प्रण को पूरा करने और आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।” आगे उन्होंने कहा, "खादी जैसी पारंपरिक ताकतें हमें नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती हैं।" उन्होंने कहा कि यह खादी उत्सव स्वतंत्रता आंदोलन की भावना और इतिहास को पुनर्जीवित करने का एक प्रयास है और नए भारत के संकल्पों को प्राप्त करने की प्रेरणा है।

अपने उद्बोधन में प्रधानमंत्री ने पंच-प्रणों को याद किया, जिसे उन्होंने 15 अगस्त को लाल किले से घोषित किए थे। उन्होंने कहा, “साबरमती के तट पर इस पुण्य जगह पर मैं पंच-प्रणों को फिर दोहराना चाहता हूं। पहला- देश के सामने विराट लक्ष्य, विकसित भारत बनाने का लक्ष्य। दूसरा- गुलामी की मानसिकता का पूरी तरह त्याग। तीसरा- अपनी विरासत पर गर्व। चौथा- राष्ट्र की एकता बढ़ाने का पुरजोर प्रयास और पांचवां- नागरिक कर्तव्य।” उन्होंने कहा कि आज का खादी उत्सव पंच प्रणों का सुंदर प्रतिबिंब है।

आजादी के बाद के दौर में प्रधानमंत्री ने खादी की उपेक्षा पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के आंदोलन के समय जिस खादी को महात्मा गांधी ने देश का स्वाभिमान बनाया, उसी खादी को आजादी के बाद हीन भावना से भर दिया गया। इस वजह से खादी और खादी से जुड़ा ग्रामोद्योग पूरी तरह तबाह हो गया। खादी की यह स्थिति विशेष रूप से गुजरात के लिए बहुत ही पीड़ा दायक थी।

उन्होंने गर्व व्यक्त किया कि खादी को पुनर्जीवित करने का कार्य गुजरात की भूमि पर हुआ। प्रधानमंत्री ने 'खादी फॉर ट्रांसफॉर्मेशन' की सरकार द्वारा 'राष्ट्र के लिए खादी, फैशन के लिए खादी' की प्रतिज्ञा पर जोर दिया।

इसी संदर्भ में आगे उन्होंने कहा, "हमने गुजरात की सफलता के अनुभवों को पूरे देश में फैलाना शुरू किया। देश भर में खादी से जुड़ी जो समस्याएं थीं, उनका समाधान किया गया। हमने देशवासियों को खादी उत्पाद खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया।" प्रधानमंत्री ने खादी के पुनरुद्धार की प्रक्रिया में महिलाओं के योगदान की भी सराहना की।

उन्होंने कहा कि “भारत के खादी उद्योग की बढ़ती ताकत में महिला शक्ति का भी बड़ा योगदान है। उद्यमिता की भावना हमारी बहनों और बेटियों में निहित है। इसका प्रमाण गुजरात में सखी मंडलों का विस्तार भी है।

उन्होंने बताया कि पिछले 8 वर्षों में खादी की बिक्री में चार गुना वृद्धि हुई है और पहली बार खादी और ग्रामोद्योग का कारोबार एक लाख करोड़ को पार कर गया है। इस क्षेत्र ने 1.75 करोड़ नए रोजगार भी सृजित किए। उन्होंने कहा कि मुद्रा योजना जैसी वित्तीय समावेशन योजनाएं उद्यमिता को बढ़ावा दे रही हैं।

प्रधानमंत्री ने देश की जनता से अपील की कि आने वाले त्योहारों में खादी ग्रामोद्योग में बने उत्पादों को ही उपहार में दें। उऩ्होंने कहा, “आपके पास विभिन्न प्रकार के फैब्रिक से बने कपड़े हो सकते हैं। लेकिन अगर आप उसमें खादी को भी जगह देते हैं, तो वोकल फॉर लोकल अभियान को गति मिलेगी।"

यह याद करते हुए कि पिछले दशकों में भारत का अपना समृद्ध खिलौना उद्योग विदेशी खिलौनों की दौड़ में नष्ट हो रहा था। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि सरकार के प्रयासों और खिलौना उद्योगों से जुड़े हमारे भाइयों और बहनों की कड़ी मेहनत से स्थिति अब बदलने लगी है। नतीजतन, खिलौनों के आयात में भारी गिरावट आई है।