लालू की इफ्तार पार्टी में बड़ा झटका, क्या टूट रहा है महागठबंधन?

बिहार की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हाल ही में एक इफ्तार पार्टी का आयोजन किया, लेकिन इस बार यह समारोह चर्चा में इसलिए नहीं रहा कि कौन-कौन शामिल हुआ, बल्कि इसलिए कि इसमें महागठबंधन के किसी बड़े नेता ने शिरकत नहीं की। पटना में आयोजित इस इफ्तार पार्टी को लेकर पहले से ही काफी उत्साह था, लेकिन कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों के बड़े चेहरों की गैरमौजूदगी ने सियासी गलियारों में सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह महागठबंधन में दरार की शुरुआत है या फिर यह सिर्फ एक संयोग है? आइए, इस घटना के पीछे की कहानी को करीब से समझते हैं।
लालू यादव ने यह इफ्तार पार्टी अब्दुल बारी सिद्दीकी के आवास पर रखी थी। इस आयोजन का मकसद अपने समर्थकों और सहयोगी दलों के बीच एकजुटता का संदेश देना था। गले में गमछा और सिर पर टोपी पहने लालू इस मौके पर बेहद उत्साहित नजर आए। लेकिन उनकी यह कोशिश उस वक्त फीकी पड़ गई, जब कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इस समारोह से दूरी बना ली। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस की ओर से सिर्फ एक-दो विधायक ही वहां पहुंचे, जबकि पार्टी के बड़े नाम जैसे अखिलेश प्रसाद सिंह या राजेश रंजन इस आयोजन से गायब रहे। इतना ही नहीं, महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों ने भी इस इफ्तार पार्टी में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। केवल पशुपति पारस जैसे कुछ नेता ही लालू के साथ नजर आए।
बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि यह घटना महागठबंधन के लिए एक बड़ा झटका हो सकती है। पिछले कुछ महीनों से गठबंधन के भीतर छोटी-मोटी तनातनी की खबरें सामने आ रही थीं, लेकिन इस बार इफ्तार पार्टी में बड़े नेताओं की अनुपस्थिति ने इन अटकलों को और हवा दे दी है। राजनीतिक विश्लेषक और 15 साल से बिहार की सियासत पर नजर रखने वाले प्रोफेसर अनिल शर्मा के मुताबिक, यह महागठबंधन के लिए एक ‘अग्नि परीक्षा’ की तरह था, जिसमें कांग्रेस और अन्य दल पास नहीं हो सके। उनका मानना है कि आने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह गठबंधन की एकता पर सवाल उठा सकता है। अगर समय रहते इस स्थिति को संभाला नहीं गया, तो इसका असर चुनावी नतीजों पर भी पड़ सकता है।