राजधानी में भाजपा का कमल खिला, AAP का किला ढहा: क्या अब केजरीवाल की राजनीति पर लगेगा विराम?

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राजधानी में भाजपा का कमल खिला, AAP का किला ढहा: क्या अब केजरीवाल की राजनीति पर लगेगा विराम?

Arvind Kejriwal

Photo Credit: upuklive


दिल्ली की सियासत में एक नया अध्याय शुरू हो गया है। 26 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राजधानी में अपना परचम फहराया है। इस जीत के साथ ही भाजपा ने न केवल आम आदमी पार्टी (आप) के लगातार तीन कार्यकालों के शासन को समाप्त किया है, बल्कि अरविंद केजरीवाल के चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के सपने को भी चकनाचूर कर दिया है।

यह चुनाव परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक है। 2013 में जब अरविंद केजरीवाल ने राजनीति में कदम रखा था, तब किसने सोचा होगा कि वह दिल्ली की सत्ता पर इतने लंबे समय तक काबिज रहेंगे। लेकिन 2025 का यह चुनाव केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ है। यह सिर्फ एक चुनावी हार नहीं है, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी है।

इस चुनाव में केजरीवाल ने अपनी छवि को 'ईमानदार नेता' के रूप में प्रस्तुत किया था। कथित शराब घोटाले में जेल यात्रा के बाद, उन्होंने इस चुनाव को अपनी साख से जोड़ दिया था। उन्होंने कहा था कि यह चुनाव तय करेगा कि जनता उन्हें किस रूप में देखती है - एक ईमानदार नेता के रूप में या एक भ्रष्ट राजनेता के रूप में। लेकिन जनता का फैसला उनके पक्ष में नहीं रहा।

भाजपा की इस जीत के पीछे कई कारण हो सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण, सड़कों की खराब स्थिति, और पानी की समस्या जैसे मुद्दों ने 'आप' सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया था। इसके अलावा, केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच लगातार चलने वाले टकराव ने भी शायद मतदाताओं को प्रभावित किया हो।भाजपा ने अपने प्रचार में इन मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और केजरीवाल सरकार की कथित विफलताओं को जनता के सामने रखा। साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ भी भाजपा को मिला। दिल्ली के विकास के लिए केंद्र और राज्य सरकार के बीच बेहतर तालमेल की जरूरत पर भी भाजपा ने जोर दिया, जो शायद मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रहा।इस हार के साथ ही अब अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। पार्टी को अपनी रणनीति पर फिर से विचार करना होगा और यह समझना होगा कि आखिर कहां चूक हुई। केजरीवाल को भी अपनी नेतृत्व शैली और राजनीतिक दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।

हालांकि, यह कहना जल्दबाजी होगी कि यह हार केजरीवाल के राजनीतिक करियर का अंत है। भारतीय राजनीति में कई ऐसे उदाहरण हैं जहां नेताओं ने बड़ी हार के बाद भी वापसी की है। केजरीवाल के पास अभी भी एक मजबूत समर्थक आधार है और वह एक कुशल संगठनकर्ता हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इस हार से कैसे उबरते हैं और भविष्य में क्या रणनीति अपनाते हैं।दूसरी ओर, भाजपा के लिए यह जीत एक बड़ी उपलब्धि है। 26 साल बाद दिल्ली में सत्ता में वापसी करना आसान नहीं था। अब पार्टी के सामने चुनौती होगी कि वह दिल्ली के विकास के वादों को कैसे पूरा करती है। प्रदूषण, यातायात, पानी की कमी जैसी समस्याओं का समाधान करना होगा। साथ ही, केंद्र सरकार के साथ तालमेल बिठाकर दिल्ली के लिए नए विकास प्रोजेक्ट्स लाने होंगे।इस चुनाव परिणाम का एक और महत्वपूर्ण पहलू है कांग्रेस का लगातार खराब प्रदर्शन। एक समय की सबसे मजबूत पार्टी अब दिल्ली की राजनीति में हाशिये पर आ गई है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस इस स्थिति से उबर पाती है या फिर दिल्ली में द्विध्रुवीय राजनीति का युग शुरू हो गया है।