पति को सेक्स से प्यार नहीं, सिर्फ मंदिर से इश्क: तलाक का चौंकाने वाला कारण!

शादी का रिश्ता प्यार, विश्वास और आपसी समझ का बंधन माना जाता है, लेकिन क्या हो जब यह रिश्ता एक तरफा नियमों और जबरदस्ती का शिकार बन जाए? हाल ही में केरल हाई कोर्ट में एक अनोखा मामला सामने आया, जहां एक महिला ने अपने पति पर गंभीर आरोप लगाते हुए तलाक की मांग की। महिला का कहना था कि उसके पति को न तो सेक्स में कोई दिलचस्पी थी और न ही वैवाहिक जिम्मेदारियों को निभाने में। इसके बजाय, वह दिन-रात मंदिरों और आश्रमों में समय बिताते थे और उसे भी अपनी तरह आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए मजबूर करने की कोशिश करते थे। यह कहानी न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि क्या शादी में व्यक्तिगत आजादी का सम्मान जरूरी नहीं?
कोर्ट ने सुनी पत्नी की गुहार, तलाक को दी मंजूरी
केरल हाई कोर्ट ने इस मामले में फैमिली कोर्ट के पहले दिए गए तलाक के आदेश को सही ठहराया। जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एमबी स्नेलता की बेंच ने साफ शब्दों में कहा कि शादी का मतलब यह कतई नहीं कि एक पार्टनर दूसरे की निजी मान्यताओं पर हावी हो जाए। कोर्ट ने माना कि पत्नी को जबरन आध्यात्मिक जीवन थोपना मानसिक क्रूरता का एक रूप है। यह न सिर्फ पति की पारिवारिक जिम्मेदारियों से दूरी को दर्शाता है, बल्कि वैवाहिक रिश्ते में उसकी उदासीनता को भी उजागर करता है। इस फैसले से दोनों के बीच तलाक का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया।
मानसिक क्रूरता को माना तलाक का आधार
‘बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट के हवाले से कोर्ट ने अपने फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) का जिक्र किया। इस कानून के तहत, अगर कोई जीवनसाथी वैवाहिक कर्तव्यों को नजरअंदाज करता है या अपने व्यवहार से दूसरे को मानसिक पीड़ा देता है, तो उसे तलाक का वैध आधार माना जा सकता है। जजों ने कहा कि पति का ऐसा रवैया, जहां वह न तो पत्नी की भावनाओं की कद्र करता था और न ही शादी के बुनियादी दायित्वों को पूरा करता था, निश्चित रूप से क्रूरता की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने पत्नी के दावों को सच्चा मानते हुए उसके पक्ष में फैसला सुनाया।