इमरान मसूद का बयान, अगर मीट नहीं खाओगे 10 दिन तो घिस थोड़ी न जाओगे!

ईद और नवरात्रि जैसे बड़े त्योहारों से पहले दिल्ली में एक बार फिर मटन और मीट को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। त्योहारों का मौसम शुरू होते ही नेताओं के बयान सुर्खियों में छा गए हैं, और इस बार बहस का केंद्र बना है "बकरा काटो या न काटो"। बीजेपी ने जहां "मीठी सेवइयां खाओ, बकरा मत काटो" का नारा देकर लोगों से संयम बरतने की अपील की, वहीं अब कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है। उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करना हमारी पहचान है। इमरान मसूद ने बड़े ही सहज अंदाज में कहा, "मैं खुद मीट नहीं खाता। अगर आप 10 दिन मीट न खाएं तो क्या घिस जाएंगे? अगर इससे किसी को खुशी मिलती है तो इसमें क्या बुराई है?" उनका यह बयान सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बन गया है।
यह विवाद यहीं शुरू नहीं हुआ। इससे पहले बीजेपी विधायक रविंदर नेगी ने बकरीद के मौके पर लोगों से बकरा न काटने और इसके बजाय मीठी सेवइयां खाने की सलाह दी थी। उनकी इस बात को पार्टी के ही विधायक नीरज बसोया ने और हवा दी। नीरज बसोया ने नवरात्रि के दौरान मीट की दुकानें बंद करने की मांग उठाई और कहा कि इससे धार्मिक भावनाओं का सम्मान होगा। इतना ही नहीं, उन्होंने रिहायशी इलाकों में मीट की दुकानों पर सख्ती की बात कही और दावा किया कि "मीट कारोबारी गुंडागर्दी करते हैं"। इसके लिए उन्होंने प्रशासन को पत्र लिखने की बात भी कही। उनका यह बयान दिल्ली की सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक छाया हुआ है।
ईद और नवरात्रि जैसे पवित्र त्योहारों के बीच यह सियासी बयानबाजी कोई नई बात नहीं है। हर साल इन मौकों पर कुछ न कुछ ऐसा होता है जो लोगों के बीच बहस छेड़ देता है। लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है, क्योंकि दोनों पक्षों के नेता अपनी-अपनी बात को लेकर अड़े हुए हैं। बीजेपी जहां धार्मिक संवेदनशीलता और शांति का हवाला दे रही है, वहीं कांग्रेस का कहना है कि हर किसी को अपनी पसंद और परंपरा की आजादी होनी चाहिए, बशर्ते वह दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुंचाए। इस बीच, आम लोग भी दो धड़ों में बंट गए हैं। कुछ लोग मानते हैं कि त्योहारों के दौरान संयम बरतना चाहिए, तो कुछ का कहना है कि यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है।
दिल्ली जैसे महानगर में जहां हर धर्म और समुदाय के लोग साथ रहते हैं, वहां ऐसे मुद्दों का उभरना स्वाभाविक है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इन बयानों से समाज में एकता बढ़ेगी या फिर तनाव और बढ़ेगा? जानकारों का मानना है कि नेताओं को ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर बयान देते वक्त सोच-समझकर बोलना चाहिए। नवरात्रि में मीट की दुकानें बंद करने की मांग हो या बकरीद पर बकरा न काटने की सलाह, इन बातों का असर सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह आम लोगों के जीवन पर भी पड़ता है।