पीएम मोदी का बड़ा फैसला: सिंधु जल संधि स्थगित, पाकिस्तान परेशान!

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पड़ोसी देश पाकिस्तान के खिलाफ एक ऐतिहासिक और सख्त कदम उठाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) की बैठक में 1960 के सिंधु जल समझौते को तत्काल प्रभाव से स्थगित करने का फैसला लिया गया। यह निर्णय तब तक लागू रहेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना पूरी तरह बंद नहीं करता। आइए, इस समझौते और इसके रद्द होने के प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।
सिंधु जल समझौता: क्या है यह?
सिंधु जल समझौता, जिसे 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षरित किया गया था, दोनों देशों के बीच जल संसाधनों के बंटवारे का आधार है। इस संधि के तहत सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज—के पानी का बंटवारा कियाascertain। भारत को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास और सतलुज) का पूरा नियंत्रण है, जबकि पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम और चिनाब) का उपयोग मुख्य रूप से पाकिस्तान करता है। यह समझौता दशकों से दोनों देशों के बीच जल विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण रहा है, लेकिन अब भारत ने इसे रद्द करने का फैसला किया है।
भारत का कड़ा रुख: क्यों लिया गया यह फैसला?
पहलगाम में हाल ही में हुआ आतंकी हमला भारत के लिए एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा। भारत ने इस हमले को सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद का हिस्सा माना और इसके जवाब में कड़े कदम उठाने का फैसला किया। सीसीएस की बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने की नीति को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सिंधु जल समझौते को स्थगित करना भारत का एक मजबूत संदेश है कि वह अपनी सुरक्षा और संप्रभुता से कोई समझौता नहीं करेगा। यह फैसला पाकिस्तान को यह चेतावनी देता है कि उसे अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा।
पाकिस्तान पर क्या होगा असर?
सिंधु जल समझौते के स्थगित होने से पाकिस्तान को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि काफी हद तक सिंधु नदी प्रणाली की पश्चिमी नदियों पर निर्भर है। इन नदियों के पानी के प्रवाह में कमी या बदलाव से पाकिस्तान में जल संकट, खाद्य असुरक्षा और आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम पाकिस्तान पर दबाव बनाएगा कि वह आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाए। हालांकि, इस फैसले से दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है, जिसके दीर्घकालिक प्रभावों पर नजर रखनी होगी।