शंकराचार्य का ऐलान- राहुल गांधी अब हिंदू नहीं! क्या है पूरा विवाद?

ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने की घोषणा की है। यह फैसला राहुल गांधी के संसद में मनुस्मृति को लेकर दिए गए बयान के बाद आया है, जिसे शंकराचार्य ने हिंदू धर्म का अपमान माना। इस विवाद ने न केवल धार्मिक बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। आइए, इस मामले को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि यह विवाद कैसे शुरू हुआ और इसका क्या प्रभाव हो सकता है।
विवाद की शुरुआत: राहुल गांधी का बयान
पिछले कुछ महीनों से राहुल गांधी का एक संसदीय बयान चर्चा में रहा है। उन्होंने संसद में कहा था, "मैं मनुस्मृति को नहीं मानता, मैं संविधान को मानता हूँ।" इस बयान को ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने हिंदू धर्म के खिलाफ माना। उनके अनुसार, मनुस्मृति हिंदू धर्म और सनातन परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है, और इसे खारिज करना धर्म का अपमान है। शंकराचार्य ने इस बयान पर आपत्ति जताते हुए राहुल गांधी से स्पष्टीकरण मांगा था। इसके लिए उन्होंने एक पत्र भी भेजा, लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी कोई जवाब नहीं मिला। इस मौन को शंकराचार्य ने अस्वीकार्य माना और अंततः राहुल गांधी को हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का फैसला लिया।
शंकराचार्य का फैसला: क्या है इसका आधार?
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की कि राहुल गांधी को अब हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं माना जाएगा। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी का बयान न केवल मनुस्मृति का अपमान है, बल्कि यह सनातन धर्म की मूल मान्यताओं को चुनौती देता है। शंकराचार्य का मानना है कि मनुस्मृति हिंदू धर्म के सामाजिक और नैतिक ढांचे का आधार है, और इसे अस्वीकार करना धर्म से दूरी को दर्शाता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला धार्मिक नियमों और परंपराओं के आधार पर लिया गया है, न कि किसी व्यक्तिगत या राजनीतिक दुश्मनी के कारण। यह घोषणा ज्योतिर्मठ की धार्मिक सत्ता और प्रभाव को दर्शाती है, जो हिंदू धर्म में शंकराचार्य की भूमिका को और मजबूत करती है।
जनता और राजनीति में प्रतिक्रियाएँ
इस घोषणा ने सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर तीखी बहस छेड़ दी है। कुछ लोग शंकराचार्य के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, उनका मानना है कि धार्मिक ग्रंथों का सम्मान करना हर हिंदू की जिम्मेदारी है।
वहीं, राहुल गांधी के समर्थकों का कहना है कि उनका बयान संविधान की सर्वोच्चता को रेखांकित करता है, जो भारत का आधार है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद धार्मिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकता है, खासकर तब जब देश में पहले से ही कई सामाजिक मुद्दों पर बहस चल रही है। हालांकि, इस फैसले का कानूनी प्रभाव सीमित है, क्योंकि भारत का संविधान धर्म के आधार पर किसी व्यक्ति को बहिष्कृत करने की अनुमति नहीं देता।