सिद्धारमैया का बड़ा दांव: मुस्लिमों को टेंडर में आरक्षण, बीजेपी भड़की!

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सिद्धारमैया का बड़ा दांव: मुस्लिमों को टेंडर में आरक्षण, बीजेपी भड़की!

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Photo Credit: siddaramaiah


कर्नाटक की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है, और इस बार वजह है कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार का एक बड़ा फैसला। सूत्रों के हवाले से खबर है कि राज्य की कैबिनेट ने ऐसा कदम उठाया है, जिससे न सिर्फ कर्नाटक बल्कि पूरे देश की राजनीति में भूचाल आने की संभावना है। दरअसल, सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक पब्लिक प्रोक्योरमेंट में पारदर्शिता (KTPP Act) कानून में बदलाव को हरी झंडी दे दी है, और इस संशोधन का मकसद मुस्लिम ठेकेदारों को सरकारी टेंडर में आरक्षण (reservation for Muslim contractors) देना है। इस फैसले के बाद बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला बोलना शुरू कर दिया है, और इसे लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है।

कर्नाटक सरकार का यह फैसला कोई मामूली कदम नहीं है। कैबिनेट ने तय किया है कि मौजूदा विधानसभा सत्र में ही KTPP एक्ट को पेश किया जाएगा, और इसके बाद इसमें संशोधन लागू कर दिया जाएगा। इस बदलाव के तहत सरकारी टेंडर में मुस्लिम ठेकेदारों के लिए 4 फीसदी आरक्षण (4% reservation) का प्रावधान किया गया है। सरकार का तर्क है कि यह कदम सामाजिक न्याय और समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है, लेकिन विपक्ष इसे वोट बैंक की राजनीति (vote bank politics) करार दे रहा है। बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस का यह कदम धार्मिक आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देगा और पारदर्शिता के नाम पर बनाए गए इस कानून की मूल भावना को कमजोर करेगा।

यह फैसला शुक्रवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अगुवाई में विधानसभा के कैबिनेट हॉल में हुई बैठक में लिया गया। बैठक में शामिल मंत्रियों ने इस प्रस्ताव पर लंबी चर्चा के बाद इसे मंजूरी दी। इससे पहले 7 मार्च 2025 को कर्नाटक सरकार के बजट पेश करते वक्त भी इसकी झलक देखने को मिली थी, जब सिद्धारमैया ने संकेत दिए थे कि मुस्लिम समुदाय को सरकारी ठेकों में हिस्सेदारी दी जाएगी। अब इस फैसले को औपचारिक रूप दे दिया गया है, और इसे लागू करने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। कर्नाटक कैबिनेट (Karnataka cabinet) का यह कदम राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय के लिए एक नई राह खोल सकता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह वास्तव में पारदर्शिता लाएगा या सियासी विवाद को और गहरा करेगा?

बीजेपी ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया है और कांग्रेस पर तुष्टिकरण की राजनीति (appeasement politics) का आरोप लगाया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि सरकारी टेंडर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में धर्म के आधार पर आरक्षण देना न सिर्फ गलत है, बल्कि यह ठेकेदारों के बीच असमानता को भी बढ़ावा देगा। दूसरी ओर, कांग्रेस का दावा है कि यह फैसला सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक कदम है। सिद्धारमैया सरकार पहले भी ऐसे फैसलों के लिए चर्चा में रही है, और इस बार भी उसने अपने रुख से पीछे हटने का कोई इरादा नहीं दिखाया है।

इस फैसले का असर सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं रहने वाला। देश भर में इसकी गूंज सुनाई दे रही है, और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह 2025 के बाकी चुनावी समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। जहां एक तरफ अल्पसंख्यक समुदाय इसे अपने हक की लड़ाई के तौर पर देख रहा है, वहीं दूसरी तरफ विपक्ष इसे संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बता रहा है। आने वाले दिनों में विधानसभा सत्र (assembly session) में इस पर बहस और तेज होने की उम्मीद है।

लोगों के बीच भी इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ का मानना है कि इससे रोजगार और कारोबार के नए मौके खुलेंगे, तो कुछ इसे सियासी ड्रामा करार दे रहे हैं। फिलहाल, सिद्धारमैया सरकार अपने फैसले पर अडिग है, लेकिन बीजेपी इसे जनता के बीच ले जाकर बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी में है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सियासी जंग आगे क्या रंग लाती है।