औरंगजेब ने क्यों तोड़े हिंदू मंदिर? इरफान हबीब ने खोला इतिहास का ये बड़ा राज!

औरंगजेब का नाम इतिहास में एक ऐसे शासक के तौर पर लिया जाता है, जिसने अपने शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया। यह सवाल हमेशा से लोगों के मन में उठता रहा है कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया। प्रख्यात इतिहासकार इरफान हबीब ने इस बारे में अपनी राय रखी है और बताया कि औरंगजेब के इस कदम के पीछे कई वजहें थीं। उनका कहना है कि औरंगजेब का शासनकाल, जो 1658 से 1707 तक चला, एक ऐसा दौर था जब उसने मंदिरों को तोड़ने की शुरुआत की। यह वह समय था, जब उससे पहले के मुगल शासकों ने ऐसा कुछ नहीं किया था। इरफान हबीब के मुताबिक, औरंगजेब का यह फैसला सिर्फ धार्मिक नहीं था, बल्कि इसके पीछे उसकी सोच और सियासी मकसद भी छिपे थे।
धार्मिक सोच या सियासी खेल
इरफान हबीब ने अपनी बात को साफ करते हुए कहा कि औरंगजेब मंदिरों को इसलिए भी गिरवाता था, क्योंकि उसे लगता था कि ऐसा करने से उसे बड़ा पुण्य मिलेगा और वह अपने मजहब के करीब होगा। उसकी यह सोच थी कि मंदिरों को तोड़कर वह अपने धर्म की सेवा कर रहा है। लेकिन यह सिर्फ धार्मिक कट्टरता की बात नहीं थी। हबीब बताते हैं कि औरंगजेब के इस फैसले में सियासी मकसद भी शामिल थे। वह अपने शासन को मजबूत करना चाहता था और इसके लिए उसने हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया। उस दौर में मंदिर न सिर्फ पूजा की जगह थे, बल्कि समाज के केंद्र भी माने जाते थे। औरंगजेब शायद यह दिखाना चाहता था कि उसकी ताकत हर जगह पहुंच सकती है।
मथुरा और बनारस का जिक्र
इतिहासकार इरफान हबीब ने खास तौर पर मथुरा, वृंदावन और बनारस जैसे शहरों का जिक्र किया, जहाँ औरंगजेब ने मंदिरों को तोड़ा। उनका कहना है कि इन जगहों पर उसने बड़े पैमाने पर मंदिरों को नुकसान पहुंचाया। मथुरा का केशवदेव मंदिर और बनारस का विश्वनाथ मंदिर इसके बड़े उदाहरण हैं। हबीब के मुताबिक, औरंगजेब ने इन मंदिरों को इसलिए निशाना बनाया, क्योंकि ये हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र थे और इनका महत्व बहुत ज्यादा था। उसने सोचा कि इन मंदिरों को तोड़कर वह हिंदू समाज पर अपनी हुकूमत का डर बिठा सकेगा। इन जगहों पर मंदिरों को तोड़ने के बाद वहाँ मस्जिदें बनवाई गईं, जो आज भी इतिहास में दर्ज हैं।
औरंगजेब का लंबा शासन
औरंगजेब का शासनकाल करीब 50 साल तक चला, जो मुगल इतिहास में सबसे लंबे समय तक राज करने वाले शासकों में से एक था। इरफान हबीब बताते हैं कि उसने अपने शासन के दौरान कई बड़े फैसले लिए, जिनमें मंदिरों को तोड़ना भी शामिल था। उनका कहना है कि यह काम उसने 1668 के आसपास शुरू किया और धीरे-धीरे इसे बढ़ाया। उसने कितने मंदिर तोड़े, इसका सही-सही आंकड़ा देना मुश्किल है, लेकिन इतिहास में यह बात साफ है कि उसने कई जगहों पर ऐसा किया। हबीब के अनुसार, यह औरंगजेब के शासन का एक ऐसा पहलू था, जो उससे पहले के मुगल बादशाहों जैसे अकबर या जहांगीर के समय में नहीं देखा गया था।