60 हजार कमाती पत्नी मांग रही थी गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट ने दिया ये चौंकाने वाला फैसला!

भारत में कानूनी मामले अक्सर लोगों के बीच चर्चा का विषय बन जाते हैं, खासकर जब बात सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की हो। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा। यह मामला था एक महिला का, जो अपने पति से गुजारा भत्ता (maintenance) मांग रही थी। सुनने में यह आम बात लगती है, लेकिन इस केस में एक खास बात थी—महिला खुद एक प्रोफेसर थीं और उनकी मासिक आय 60 हजार रुपये थी। फिर भी वह अपने पति से आर्थिक मदद की मांग कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से देखा और अंत में महिला की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट का कहना था कि जब महिला नौकरीपेशा है और अपने पति के बराबर पद पर काम कर रही है, तो उसे गुजारा भत्ते की जरूरत नहीं है।
इस मामले की कहानी कुछ यूं है। महिला एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत थीं। उनकी सैलरी इतनी थी कि वह आसानी से अपनी जरूरतों को पूरा कर सकती थीं। दूसरी ओर, उनके पति भी एक अच्छे पद पर थे। दोनों की आर्थिक स्थिति लगभग समान थी। इसके बावजूद, महिला ने तलाक के बाद पति से गुजारा भत्ता मांगने का फैसला किया। उनका दावा था कि वह अपने जीवन स्तर को बनाए रखने के लिए पति की मदद की हकदार हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि जब कोई महिला आत्मनिर्भर है और अपनी मेहनत से अच्छी कमाई कर रही है, तो उसे पति पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए। क्या हर महिला को गुजारा भत्ता मिलना चाहिए, भले ही वह खुद सक्षम हो? हमारे समाज में अक्सर यह धारणा रही है कि तलाक के बाद पति को पत्नी की आर्थिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन इस मामले में कोर्ट ने एक नया नजरिया पेश किया। जजों ने अपने फैसले में जोर दिया कि आत्मनिर्भरता और बराबरी आज के समय की मांग है। अगर एक महिला अपने दम पर अपनी जिंदगी चला सकती है, तो उसे गुजारा भत्ते का हक नहीं बनता। यह फैसला न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक सोच को भी बदलने की दिशा में एक कदम है।