महिलाओं को हेलीकॉप्टर की तरह निगरानी में रखने की जरूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट

भारत की महिलाएं सदियों से अपने हक और सम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी की, जो न केवल महिलाओं की स्वतंत्रता को बल देती है, बल्कि समाज को एक नई सोच की ओर ले जाती है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि महिलाओं को निगरानी या पाबंदियों की नहीं, बल्कि आजादी और सुरक्षित माहौल की जरूरत है। यह टिप्पणी हर भारतीय के लिए एक विचारणीय संदेश है।
महिलाओं को चाहिए सम्मान और स्वतंत्रता
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में साफ किया कि महिलाओं को हेलीकॉप्टर की तरह निगरानी में रखने की जरूरत नहीं है। उन्हें अपने तरीके से जीने और आगे बढ़ने का मौका देना होगा। जस्टिस नागरत्ना ने कहा, "महिलाएं बस इतना चाहती हैं कि उन्हें बिना किसी डर या बंधन के अपने सपने पूरे करने की आजादी मिले।" यह बयान न केवल महिलाओं की भावनाओं को दर्शाता है, बल्कि समाज से यह सवाल भी करता है कि हम उन्हें कितना सुरक्षित और स्वतंत्र माहौल दे पा रहे हैं। कोर्ट ने लैंगिक समानता पर जोर देते हुए कहा कि जब तक महिलाओं को उनके अधिकारों और सम्मान के प्रति जागरूकता नहीं मिलेगी, तब तक सच्ची समानता संभव नहीं है।
सुरक्षा का बोझ: एक कड़वी हकीकत
जस्टिस नागरत्ना ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब कोई महिला घर से बाहर कदम रखती है, चाहे वह सड़क हो, बस हो या रेलवे स्टेशन, वह अपनी सुरक्षा की चिंता का एक अनदेखा बोझ ढोती है। यह बोझ उनकी हर जिम्मेदारी—घर, काम, और समाज—के साथ जुड़ा रहता है। कोर्ट ने ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालयों की कमी को भी एक गंभीर मुद्दा बताया। इस कमी के कारण महिलाएं खुले में जाने को मजबूर होती हैं, जिससे यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं बढ़ती हैं। यह स्थिति न केवल शर्मनाक है, बल्कि महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा पर सवाल उठाती है।
समाज को बदलने की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी समाज के लिए एक आह्वान है। हमें यह समझना होगा कि महिलाओं की प्रगति और सुरक्षा के बिना देश का विकास अधूरा है। कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को न केवल सुरक्षित माहौल देना होगा, बल्कि उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों को भी सम्मान देना होगा। यह तभी संभव है जब हम लैंगिक समानता को न सिर्फ कानून में, बल्कि अपनी सोच और व्यवहार में भी अपनाएं। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं, जैसे शौचालय और सुरक्षित सार्वजनिक स्थानों, को बढ़ावा देना होगा।
एक नई शुरुआत की ओर
सुप्रीम कोर्ट का यह बयान न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक बदलाव की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। यह हमें याद दिलाता है कि महिलाएं न तो कमजोर हैं और न ही उन्हें हर कदम पर निगरानी की जरूरत है। उन्हें बस एक ऐसा समाज चाहिए, जहां वे बिना डर के अपने सपनों को उड़ान दे सकें। यह टिप्पणी हर भारतीय को यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने आसपास की महिलाओं को कितना सम्मान और आजादी दे रहे हैं।