झारखंड में साझा संस्कृति की परंपरा पुरानी : हफीजुल हसन

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झारखंड में साझा संस्कृति की परंपरा पुरानी : हफीजुल हसन


झारखंड में साझा संस्कृति की परंपरा पुरानी : हफीजुल हसन


रांची, 14 मई (हि.स.)। राज्य के कला-संस्कृति मंत्री हफीजुल हसन ने कहा कि झारखंड में साझा संस्कृति की पुरानी परंपरा रही है। यहां के साहित्य में मानवीयता का पक्ष धवल रहा है, लेकिन कुछ लोग इसे मटियामेट करने की साज़िश में लगे हैं, लेकिन वे कभी कामयाब नहीं हो सकते।

हसन शनिवार को रांची प्रेस क्लब में दो दिवसीय कविता संवाद शिविर के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे। ‘कविता भीड़ में बौखलाये आदमी का हलफनामा है’ के मुख्य टैग के साथ कार्यक्रम का आगाज़ हुआ। एक दैनिक, न्यूज़ पोटल और जुटान की ओर से आयोजन किया गया ।

पहले सत्र के विषय ‘झारखंड में कविता की ज़मीन’ पर बोलते हुए समीक्षक मिथिलेश कुमार सिंह ने कहा कि कविता ज़िन्दगी की जद्दोजहद में साथ देने वाला हथियार है। वो समुंदर है। जंगल है। पहाड़ है।

सबकुछ हो जाने के बावजूद थोड़ी सी आग और धुआं बचा हुआ है। जबकि गुंजन सिन्हा बोले कि उन्हें आदिवासी जीवन को क़रीब से देखने का मौक़ा मिला। लेकिन आज साहित्य और कविता इस समाज के साथ न्याय नहीं कर रहा है। कवि अश्विनी कुमार का कहना था कि झारखंड में कई भाषाएं हैं। ये भाषाओं का भी जंगल है। क्या ये जंगल भी कट जायेंगे। संचालन संजय झा ने किया। कार्यक्रम के दौरान न्यूज पोटल के प्रबंध निदेशक विपिन सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता अनु पोद्दार, प्रशिक्षक कविता झा एवं अनिता यादव को अलग-अलग क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

रविवार को झारखंड की पत्रकारिता और आदिवासी सवाल के अलावा झारखंड का सिनेमा उसकी संभावनाएं विषय पर परिचर्चा होगी।

मौके पर शिल्पी चौधरी, संगीता अग्रवाल और एजाज़ अनवर आदि कवियों ने कविता पाठ भी किया। कार्यक्रम में विधायक राजेश कच्छप, शम्भुनाथ चौधरी सहित कई लोग शामिल थे।

हिन्दुस्थान समाचार/ विकास