बंगाल सरकार ने पार्थ चटर्जी के विश्वासपात्र नौकरशाहों पर कड़ी कार्रवाई शुरू की

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बंगाल सरकार ने पार्थ चटर्जी के विश्वासपात्र नौकरशाहों पर कड़ी कार्रवाई शुरू की


बंगाल सरकार ने पार्थ चटर्जी के विश्वासपात्र नौकरशाहों पर कड़ी कार्रवाई शुरू की


बंगाल सरकार ने पार्थ चटर्जी के विश्वासपात्र नौकरशाहों पर कड़ी कार्रवाई शुरू की


कोलकाता, 06 अगस्त (हि.स.)। शिक्षक नियुक्ति भ्रष्टाचार मामले में गिरफ्तार पार्थ चटर्जी से उनके सभी मंत्रालय और पार्टी के सभी पद छीन लिए जाने के बाद, उनके करीबी माने जाने वाले नौकरशाहों को प्रशासनिक सख्ती का अहसास होने लगा है। इनमें से दो नौकरशाहों को राज्य के कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा अनिश्चित काल के लिए अनिवार्य प्रतीक्षा पर भेजा गया है। यह फैसला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सीधे हस्तक्षेप से लिया गया है।

इन दोनों में से सबसे अधिक विश्वासपात्र पश्चिम बंगाल सिविल सेवा (कार्यकारी कार्यालय) सुकांत आचार्य हैं, जो भारत के शिक्षा मंत्री रहते हुए भी और उद्योग मंत्री रहते हुए भी उनके साथ रहे हैं। मंत्रिमंडल के दोनों टर्म के दौरान वह पार्थ चटर्जी के निजी सहायक थे। 2016 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में, आचार्य बेहाला (पश्चिम) निर्वाचन क्षेत्र के लिए रिटर्निंग ऑफिसर भी थे, जहां चटर्जी 2001 से तृणमूल कांग्रेस के पांच बार विधायक रहे थे।

अनिश्चित काल के लिए इसी तरह के अनिवार्य प्रतीक्षा आदेश झेलने वाले दूसरे नौकरशाह प्रबीर बनर्जी हैं, जो राज्य संसदीय मामलों के विभाग के ओएसडी हैं। 34 सालों के लंबे मोर्चा शासन को खत्म करने के बाद जब 2011 में पहली बार ममता बनर्जी की सरकार बनी थी उसके बाद से लगातार संसदीय कार्य मंत्रालय उन्हीं के पास था और यह अधिकारी भी ओएसडी थे। आचार्य प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के दायरे में हैं। उनसे कई बार पूछताछ की गई और उनके आवास पर भी जांच एजेंसी ने छापेमारी की थी। वहीं दूसरी ओर राज्य कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के सूत्रों के अनुसार बनर्जी के खिलाफ अभी तक ऐसी कोई केंद्रीय एजेंसी कार्रवाई नहीं हुई है। विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि उन्हें अनिश्चित काल के लिए अनिवार्य प्रतीक्षा पर भेजने के निर्देश शीर्ष स्तर से आए हैं। हमें लगता है कि आने वाले दिनों में इस तरह के और भी अनिवार्य प्रतीक्षा आदेश आएंगे।

उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल में नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों को अनिवार्य प्रतीक्षा पर भेजना 2011 से एक नियमित आदेश बन गया है। सबसे प्रासंगिक उदाहरण भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के पूर्व अधिकारी गौरव चंद्र दत्त का था, जिन्होंने लगभग सात साल तक अनिवार्य प्रतीक्षा पर रहने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और बाद में कुछ सेवानिवृत्ति लाभों से वंचित होने के बाद आत्महत्या भी कर ली। हिन्दुस्थान समाचार /ओम प्रकाश/गंगा